सबद-21 ओ३म् जिहिं के सार असारूं, पार अपारूं, थाघ अथाघूं। उमग्या समाघूं, ते सरवर कित नीरूं।
देव दवारै चारणी, चल कै आयी एक। बाललो चाड़यो गले को, लीयो नहीं अलेख। देव कहै सुण चारणी, मेरे पहरै कोय। बेटा बहु मेरे न कछु, बाललो पहरै सोय। चारणी कहै सुण देवजी, ऊंठ दरावों मोय। घणी दूर मैं नाव को, प्रगट करस्यो तोहि। बाजा खूब बजाय के, कहूं तुम्हारो जस। मो दीने बड़पण मिले, नित मिले अजस। किति एक दूर प्रगट करे, कही समझावो भेव। आठ कोठड़ी मैं फिरूं, सब जाणै गुरु देव। गुरु जाम्भोजी के पास सम्भराथल पर…