
सबद-48 ओ३म् लक्ष्मण लक्ष्मण न कर आयसां, म्हारे साधां पड़ै बिराऊं
प्रसंग-21 दोहा' नाथ एक विश्नोई भयो, करै भण्डारै सेव। टोघड़ी सोधण टीले गयो, जोगी भुक्त करैव। जोगी आया भुक्त ले, विश्नोई लेवे नांहि। जोगी इण विध बोलियो, हमारी भुक्त में औगुण काहि। घर छोड़या तै नाथ का, हम सूं कीवी भ्रान्त। गेडी ले जोगी उठयो, स्याह मूंढ़े की कांत। और जोगी झालियो, छिमा करो तुम वीर। इसकै मारै क्या हुवै, बुझेंगे गुरु पीर। जोगी सब भेला हुवा, चाल्या जम्भ द्वार। दवागर उन मेल्हियो, आय र करो जुहार। पग चालो तुम…













