Sanjeev Moga

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सबद-51 ओ३म् सप्त पताले भुंय अंतर अंतर राखिलो, म्हे अटला अटलूं।

ओ३म् सप्त पताले भुंय अंतर अंतर राखिलो, म्हे अटला अटलूं। भावार्थ- इस शरीर के अन्दर ही सप्त पाताल है जिसे योग की भाषा में मूलाधार चक्र जो गुदा के पास है इनसे प्रारम्भ होकर इससे उपर उठने पर नाभि के पास स्वाधिष्ठान चक्र है इससे आगे हृदय के पास मणिपूर चक्र, कण्ठ के पास अनाहत चक्र, भूमण्डल में विशुद्ध चक्र तथा उससे उपर आज्ञा चक्र है। इन छः पाताल यानि नीचे के चक्रों को भेदन करता हुआ सातवें सहस्रार ब्रह्मर्ध्र…

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सबद-52 ओ३म् मोह मण्डप थाप थापले, राख राखले, अधरा धरूं। आदेश वेसूं ते नरेसूं, ते नरा अपरंपारूं।

दोहा जोगी इस विधि समझिया, आया सतगुरु भाय। देव तुम्हारे रिप कहो, म्हानै द्यो फुरमाय। सतगुरु कहै विचार, तुम्हारा तुम पालों। जोगी कहै इण भाय, नहीं दुसमण को टालों। देव कहै खट् उरमी, थारे दुसमण जोर। भूख तिस निद्रा घणी, तुम जांणों कई और। तुम्हारा तुम पालो सही, हमारा हम पालेस। सतगुरु शब्द उचारियो, जोग्या कियो आदेष। उपर्युक्त सबदों की बात योगियों के कुछ समझ में आयी,  सभी ने प्रेम पूर्वक भोजन किया सतगुरु सभी को अच्छे भी लगे। भोजन…

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सबद-53 ओ३म् गुरु हीरा बिणजै, लेहम लेहूं, गुरु नै दोष न देणा

" ‘दोहा‘‘ सुणते ही जोगी गया, सतगुरु के सुण वाच। दुभद्या मन की सब गई, आयो तन में साच। प्रसंग-22 दोहा तब ही जमाती बोल उठे, समझावो गुरु ज्ञान। ज्ञान पाय गुरु आप से, सुखी भये कति जान। भूत भावी यह काल की, हम नहीं जाणै सार। लक्ष्मण पांगल की सुणी, जानन चहि कछु पार।   लोहा पांगल और लक्ष्मण नाथ को सबद श्रवण करवा रहे थे तभी अन्य साधु भक्तों की जमात ने भी ध्यान पूर्वक वार्तालाप को श्रवण…

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सबद-54 ओ३म् अरण विवाणे रै रिव भांणे, देव दिवाणें, विष्णु पुराणें। बिंबा बांणे सूर उगाणें, विष्णु विवाणे कृष्ण पुराणे।

दोहा‘‘ अज्ञानी हम अन्ध भये, नहिं जानत दिन रैण। कृपा करो यदि पूर्ण गुरु, खुल जाये दिव्य नैण। तत विवेक ज्ञाता बने, रहे शांत प्रभु चित। रवि स्वयं ही रमण करे, या कछु और उगात। ऊपर के शब्द को श्रवण करके फिर उन्हीं जमाती लोगों ने प्रार्थना की और कहने लगे – हे प्रभु! आप तो अन्तर्यामी सर्व समर्थ हैं किन्तु हम तो सांसारिक अज्ञानी जीव हैं। हमें तो सत्य असत्य का कुछ भी विवेक नहीं है और न ही…

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शब्द 55

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 *रिणघटिये के खोज फिरंता सुण सेवन्ता* नाथपंथी जोगी लोहा पांगल श्री जंभेश्वर का शिष्य बन, रूपा नाम धारण कर धरनोक गांव में एक प्याऊ पर पानी पिलाया करता था।एक समय घास कड़वी काटने वाले कुछ मजदूर किसान रूपा के पास पानी पीने आये और उन्होंने रूपे के साथ छेड़-छाड़ की। उसे ताना दिया कि पहले इतने बड़े महंत,सिद्ध योगी कहलाते थे।अब यहाँ प्याऊ पर पानी पिला रहा है?रूपे को क्रोध आ गया।उसने अपनी सिद्धि के बल पर उन मजदूरों…

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IAS परी बिशनोई ऑलइंडिया रैंक 30

“बधाई थानै घणी बधाई, बिटिया परी बणी आईएएस” परी बिश्नोई हम सब प्रसन्न है, नाम बिश्नोई पंथ का रोशन है। बधाई थानै घणी घणी बधाई, शानदार उपलब्धी तूने पाई।। माँ श्रीमती सुशीला बिश्नोई, जगत में तुमसा नहीं कोई। गौत्र डेलू शिरोमणी बिश्नोई, बेटी परी जैसा नहीं है कोई।। बिश्नोई हार्दिक शुभकामना है, होना खुशहाली से सामना है। सीआई जीआरपी अजमेर है, ये बेटी देश भर में सिरमोर है।। भारतीय प्रशासनिक सेवा में, चयन भारत माँ की सेवा मे। आईएएस बनी…

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बिशनोई पंथ का मूल उद्देश्य

श्री गुरु जम्भेश्वरजी ने जिस पंथ की स्थापना की थी उसका मूल उद्देश्य क्या था और आज हम उस पंथ को कहा तक चला पाए यानी कि उसकी सँभाल किस तरह कर रहे हैं। पंथ का मूल उद्देश्य है कि जिया न जुक्ति ओर मुआ न मुक्ति देना। जुक्ति मतलब जीने की कला,जीने का सही ढंग,इस तरीके से जीवन यापन करने का सरल राह दिखाया और मरने उपरांत चौरासी लाख योनिया के बंधन से मुक्ति करना। जीवन जीने की राह…

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शब्द 56

कुपात्र कू दान जु दीयों जाणे रैण अंधेरी चोर जु लीयो* कुपात्र को दिया गया दान जैसे अंधेरी रात मैं चोर द्वारा चुराये गये धन के समान है *चोर जु लेकर भाखर चढ़ियो* *कह जीवड़ा तै कैने दीयों* कुपात्र उन चोरों के समान है जो सामान चुराकर पहाड़ों में छुप गया हो उसको दिये गये दान का फल नहीं मिलता है हे जीव बता तूने दान किसको दिया है *दान सुपाते बीज सुखेते* *अमरत फूल फलीजे* अतःदान सदैव सूपत्रों को…

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