

शब्द – 19 ओ३म् रूप अरूप रमूं पिण्डे ब्रह्मण्डे, घट घट अघट रहायो।
ओ३म् रूप अरूप रमूं पिण्डे ब्रह्मण्डे, घट घट अघट रहायो। भावार्थ- रूपवान अरूपवान प्रत्येक शरीर तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में मैं ब्रह्म रूप से रमण करता हूं। दृष्ट रूप कण कण मे तथा अदृष्ट रूप कण कण में मैं सर्वत्र तिल में तेल, फूल में सुगन्ध्धी की तरह हर जगह प्रत्येक समय में समाया हुआ हूं। इसलिये सर्व व्यापकत्व परमात्मा स्वतः ही सिद्ध होता है। अनन्त जुगां में अमर भणीजूं, ना मेरे पिता न मायो। मैं देश तथा काल से भी…