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*नवै पाल,नवै दरवाजा*
श्री बालनाथ जोगी ने गुरु जंभेश्वर से योग साधना एवं उसके प्रभाव के विषय में जानना चाहा।जोगी की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने उसे यह शब्द कहा:-
*नवै पोल नवै दरवाजा अहुंठ कोड़रू* *रायजड़ी*
हे मन रूपी माली!तुम्हारा यह शरीर रूपी बगीचा, जिस के नव तोरण द्वार आँख,कान,नाक, मुँह, मल-मुत्र द्वार आदि नव बड़े-बड़े दरवाजे लगे हुए हैं तथा साढे तीन करोड़ रोमावलियाँ जिस देह बाडी पर जडी हुई है।
*कांय रे सीचों वनमाली इहिं वाड़ी तो* *भेल पड़सी*
एक दिन तुम्हारी यह देह बाड़ी ऊजड जाने वाली है। इसके पाँचो तत्त्व अपना-अपना भाग लेकर अलग हो जाने वाले हैं। तुम चाह कर भी इसके प्राण फल की रक्षा नहीं कर सकोगे। इसलिए तुम्हारा इस देह रूपी बाड़ी को कामनाओं के जल से सींचना व्यर्थ है।
*सुवचन बोल सदा सुहलाली नाम विष्णु के हरे सुणो*
अतः हे प्राणी! तुम नित्य सत्य और मधुर वचनों का उच्चारण करो तथा अपने हक की कमाई पर ध्यान रखो।व्यर्थ की बक-बक करने में कोई लाभ नहीं है। तुम केवल विष्णु नाम का स्मरण एवं श्रवण करो।
*घण तण गड़ बड़ कायों बायों निज* *मारग तो बिरला कायो*
इस संसार में अपने आत्मस्वरूप को पहचानने वाले मार्ग पर तो कोई विरला ही चलता है।दूसरों के बताएं सब मार्ग व्यर्थ है। साधक को अपने आत्मज्ञान के मार्ग पर चलने से ही सिद्धि प्राप्त होती है।
*निज पोह पाखो पार असी पर जाणम* *गाहिम गायो गुणों*
हे प्राणी! यह जो तुम्हारा अहम् भाव है, इसे इसी संसार में रहते हुए छोड़ दो।यदि अपना निजपना,अहमभाव साथ रखा तो मुक्ति न पा सकोगे।मेरापन ही बंधन का कारण है।इन सारी बातों को जानते हुए,व्यर्थ के क्रियाकलापों में पडना, जानबूझ कर थोथे गुणें का गाहटा करने के समान है।
*श्रीराम में मति थोड़ी जोय जोय कण* *बिना कुकस काय लेणों*
प्रायः यह देखा जाता कि सांसारिक लोगों की विष्णु भगवान में कोई रुचि नहीं होती।वे बार-बार व्यर्थ के कर्मकांड में पड़कर, जानते बूझते सार तत्व हीन,बिना कणों की भूसी का गाहन करते रहते हैं।अर्थात विष्णु भजन के अलावा शेष सारी बातें थोथी और कचरे के समान है। केवल विष्णु का भजन करना ही एकमात्र मुक्ति का मार्ग है।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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*जाम्भाणी शब्दार्थ*
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