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*भूला लो भल भूला लो*
एक समय बाल नाथ योगी ने जाम्भोजी के सन्मुख अपनी जिज्ञासा प्रकट की कि जो लोग भैरुंजी और जोगनियों का जाप करते हैं,उन्हें पूजते हैं।ऐसे भैरुं भक्तों को किन फलों की प्राप्ति होती है?बाल नाथ की जिज्ञासा जान ,गुरु महाराज ने उसे यह शब्द कहा:-
*भूला लो भल भूला लो भूला भूल न* *भूलूं*
हे अज्ञान में भूले हुए लोगों!तुम बड़े भोले हो जो अभी भी अज्ञान के इस रास्ते में भूलकर भटक रहे हो।हे अज्ञानी लोगों!अब कभी भूल कर भी अज्ञान के अंधकार में मत भटकना।
*जिहिं ठूंठडियै पान न होता ते क्युं चाहत फुलूं*
जिस सूखे पेड़ के ठूँठ पर कभी पत्ते भी नहीं आते,तुम उस पर फूल ढूँढ रहे हो।अर्थात भैरूं भोपे जो स्वयं माया के जाल में बंधकर भटक रहे हैं। तुम उन से मुक्ति की कामना कर रहे हो?सूखे ठूंठ पर जिस प्रकार पत्ते और पुष्प नहीं खिल सकते, उसी प्रकार भैरुओं जोगनियों के पास मुक्ति नहीं मिल सकती।
*कोको कपूर घूंटीलो बिन घूंटी नहीं जाणी*
जिस प्रकार नजले से पीड़ित व्यक्ति, कपूर की घुट्टी पीने के पश्चात ही जान सकता है कि कपूर में कैसी शक्ति और सुगंध है, उसी प्रकार जिसने गुरु ज्ञान की घुट्टी ले ली है,वही परमात्मा के सच्चे ज्ञान और आत्मानंद के रहस्य को जान सकता है।
*सतगुरु होयबा सहजे* *चीन्हबा जाचंध आल* *बंखाणी*
जो साधक सतगुरु की शरण में आ गया, वह अत्यंत सहज भाव से आत्मा व परमात्मा के रहस्य को जान लेता है।अन्यथा वह भ्रम में पड़ा हुआ,झूठी,थोथी बातों का बखान करता रहता है।
*ओछी किरिया आवै फिरिया भिरान्ती सुरग न जाई*
जो लोग अज्ञानता वश, भैरू -भोपों एवं देवी देवताओं के चक्कर में पड़े हुए,तुच्छ, हीन क्रिया कर्म करने में लगे हुए हैं,उन्हें बार-बार इस जन्म मरण के चक्कर में,इस संसार में आना पड़ता है, क्योंकि बिना सच्चे ज्ञान के कोई स्वर्ग नहीं जा सकता। भ्रम भटकन देता है और सत्य ज्ञान स्वर्ग देता है।
*अंत निरंजन* *लेखो लेसी पर चीन्है नहीं* *लौकाई*
इस संसार के लोग कितने भोले और अज्ञानी है कि वे इस बात को नहीं पहचानते की अंत समय, मृत्यु के बाद, ईश्वर,जीव से इस मृत्यु जन्म का हिसाब माँगेगा कि उसने संसार में जाकर कौन-कौन से शुभ कर्म किए हैं? उस समय इस जीव को बड़ा भारी पश्चाताप होगा।
*कण बिन कुकस रस बिन बाकस बिन* *किरिया परिवारू*
जैसे अनाज के कण-दाणों के बिना थोथी भूसी बिना मधुर रस के गन्ने के डणठल, बिना कर्म एवं श्रम के घर परिवार किसी काम के नहीं होते।
*हरि बिन देह रै जाण न* *पावै अम्बाराय दवारूं*
उसी प्रकार बिना ज्ञान एवं विष्णु भक्ति के बिना यह मानव जीवन थोथा,व्यर्थ और सारहीन है।गुरु कृपा और परमात्मा की भक्ति के बिना स्वर्ग में प्रवेश करना तो दूर रहा,कोई उस देव लोक के दरवाजे तक भी नहीं जा सकता।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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*जाम्भाणी शब्दार्थ*
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