1864344 orig removebg preview

श्री गुरु-वंदना

सुख के सागर सतगुरु जाम्भोजी, परम् शांति के धाम। श्री युग सरोज में,पुनि पुनि करू प्रणाम।। पद पंकज गुरुदेव के,राखू हिय बसाय। बार बार वंदना करू,शीश निवाय निवाय।। जीव काज हित जगत में,लीन्हा प्रभु अवतार। श्री गुरुजाम्भो जी के रूप प्रकटे स्वयं करतार।। दुःखी जीवो की लख दशा,समराथल रचा दरबार। दुःख कष्ठ सब हर लिए,दीन्हा सुख अपार।। जो आया चरणार में,तिसको किया निहाल। ज्ञान सबद बतलाकर के,कर दिया मालामाल।। नियम बनाये भक्ती के,सतगुरु परम् उदार। जो जन नित पालन करे,निश्चय…

Read Moreश्री गुरु-वंदना
Jambhguru samadhi

सबद-29 (इलोल सागर) ओ३म् गुरु के शब्द असंख्य प्रबोधी, खार समंद परीलो। खार समंद परै परै रे, चैखण्ड खारूं, पहला अन्त न पारूं। 

ओ३म् गुरु के शब्द असंख्य प्रबोधी, खार समंद परीलो। खार समंद परै परै रे, चैखण्ड खारूं, पहला अन्त न पारूं।  भावार्थ-‘‘स तु सर्वेषां गुरु कालेनानवच्छेदात्‘‘ ‘योग दर्शन‘ वह परम पिता परमात्मा ही सभी का गुरु है तथा काल से परे है। ऐसे सतगुरु के शब्द व्यर्थ नहीं हुआ करते, वे तो असंख्य जनों को प्रबोध-ज्ञान कराने वाले होते हैं। गुरु जाम्भोजी कहते हैं कि इन मेरे शब्दों ने असंख्य जनों को ज्ञानी बनाया है। इस जम्बू दीप भारत खण्ड से…

Read Moreसबद-29 (इलोल सागर) ओ३म् गुरु के शब्द असंख्य प्रबोधी, खार समंद परीलो। खार समंद परै परै रे, चैखण्ड खारूं, पहला अन्त न पारूं। 
64987 458344637628932 953294699 n

सबद-30 (कूंचीवाला) ओ३म् आयो हंकारो जीवड़ो बुलायो, कह जीवड़ा के करण कमायो। थर हर कंपै जीवड़ो डोलै, उत माई पीव न कोई बोलै।

ओ३म् आयो हंकारो जीवड़ो बुलायो, कह जीवड़ा के करण कमायो। थर हर कंपै जीवड़ो डोलै, उत माई पीव न कोई बोलै। भावार्थ-मृत्युकाल रूपी हंकारो जब आता है तो इस जीव को शरीर से बाहर बुला लेता है। आगे स्वर्ग या नरक रूपी न्यायालय में पेश किया जाता है, वहां पर न्यायाधीश यमराज या धर्मराज उसे पूछते हैं कि जीवड़ा तूं सच्ची बात बतला दे कि संसार में रहकर तुमने क्या कर्म किये? वैसे तो कर्मों की सूचि पहले ही उनके…

Read Moreसबद-30 (कूंचीवाला) ओ३म् आयो हंकारो जीवड़ो बुलायो, कह जीवड़ा के करण कमायो। थर हर कंपै जीवड़ो डोलै, उत माई पीव न कोई बोलै।
37ae5638 1270 4b48 9c71 48203a3c1950

सबद-31 ओ३म् भल मूल सींचो रे प्राणी, ज्यूं का भल बुद्धि पावै। जामण मरण भव काल जु चूकै, तो आवागवण न आवै। भल मूल सींचो रे प्राणी, ज्यूं तरवर मेल्हत डालूं।

ओ३म् भल मूल सींचो रे प्राणी, ज्यूं का भल बुद्धि पावै। जामण मरण भव काल जु चूकै, तो आवागवण न आवै। भल मूल सींचो रे प्राणी, ज्यूं तरवर मेल्हत डालूं। भावार्थ- -हे प्राणी!इन कल्पित भूत , प्रेत, देवी,देवता को छोड़कर भगवान विष्णु की ही सेवा तथा समर्पण करो। जिस प्रकार से सुवृक्ष के मूल में पानी देने से डालियां, पते,फल,फूल सभी प्रफुलित प्रसन्न हो जाते है। उसी प्रकार सभी के मूल रूप परमात्मा विष्णु का जप, स्मरण करने से अन्य…

Read Moreसबद-31 ओ३म् भल मूल सींचो रे प्राणी, ज्यूं का भल बुद्धि पावै। जामण मरण भव काल जु चूकै, तो आवागवण न आवै। भल मूल सींचो रे प्राणी, ज्यूं तरवर मेल्हत डालूं।
69648528 642046616282790 7077355880395571200 n

सबद-32 ओ३म् कोड़ गऊ जे तीरथ दानों, पंच लाख तुरंगम दानों। कण कंचन पाट पटंबर दानों, गज गेंवर हस्ती अति बल दानों।

ओ३म् कोड़ गऊ जे तीरथ दानों, पंच लाख तुरंगम दानों। कण कंचन पाट पटंबर दानों, गज गेंवर हस्ती अति बल दानों। भावार्थ- यदि कोई तीर्थों में जाकर करोड़ों गउवों का दान कर दे तथा किसी अधिकारी अनधिकारी को पांच लाख से भी अधिक घोड़ों का दान कर दे या अन्नादि खाद्य वस्तु, स्वर्ण ,अलंकार सामान्य ऊनी वस्त्र एवं कीमती रेशमी वस्त्रों का भी दान कर दे और सामान्य हाथी तथा हौंदा आदि से सुसज्जित करके भी अत्यधिक दान कर दे…

Read Moreसबद-32 ओ३म् कोड़ गऊ जे तीरथ दानों, पंच लाख तुरंगम दानों। कण कंचन पाट पटंबर दानों, गज गेंवर हस्ती अति बल दानों।
69648528 642046616282790 7077355880395571200 n

सबद-33 ओ३म् कवण न हुवा कवण न होयसी, किण न सह्या दुख भारूं।

ओ३म् कवण न हुवा कवण न होयसी, किण न सह्या दुख भारूं। भावार्थ- कौन इस संसार में नहीं हुआ तथा कौन फिर आगे नहीं होंगे अर्थात् बड़े बड़े धुरन्धर राजा, तपस्वी, योगी, कर्मठ इस संसार में हो चुके हैं और भी भविष्य में भी होने वाले है। इनमें से किसने भारी दुख सहन नहीं किया अर्थात् ये सभी लोग दुख में ही पल कर बड़े हुए है तथा जीवन को तपाकर कंचनमय बनाया है। दुखों को सहन करके भी कीर्ति…

Read Moreसबद-33 ओ३म् कवण न हुवा कवण न होयसी, किण न सह्या दुख भारूं।
Showlettercabvvzy2

सबद-34 ओ३म् फुंरण फुंहारे कृष्णी माया, घण बरसंता सरवर नीरे। तिरी तिरन्तै तीर, जे तिस मरै तो मरियो।

ओ३म् फुंरण फुंहारे कृष्णी माया, घण बरसंता सरवर नीरे। तिरी तिरन्तै तीर, जे तिस मरै तो मरियो।  भावार्थ – भगवान श्री कृष्ण की त्रिगुणात्मिका माया फुंहारों के रूप में वर्षा को कहीं अधिक तो कहीं कम बरसाती है। जिससे तालाब नदी नाले भर जाते हैं। इन भरे हुए तालाबों में कुछ लोग स्नान करते हैं। उनमें तैरू तो स्नान करके पार भी निकल जाते हैं और जिसे तैरना नहीं आता है वह डूब जाता है तथा कुछ ऐसे लोग भी…

Read Moreसबद-34 ओ३म् फुंरण फुंहारे कृष्णी माया, घण बरसंता सरवर नीरे। तिरी तिरन्तै तीर, जे तिस मरै तो मरियो।
69648528 642046616282790 7077355880395571200 n

सबद-35 : ओ३म् बल बल भणत व्यासूं, नाना अगम न आसूं, नाना उदक उदासूं। 

ओ३म् बल बल भणत व्यासूं, नाना अगम न आसूं, नाना उदक उदासूं।  भावार्थ- वेद में जो बात कही है वह सभी कुछ व्यवहार से सत्य सिद्ध नहीं होते हुए भी उस समय जब कथन हुआ था तब तो सत्य ही थी तथा वे मेरे शब्द इस समय देश काल परिस्थिति के अनुसार कलयुगी जीवों के लिये कथन किये जा रहे हैं। इसलिये इस समय तुम्हारे लिये वेद ही है। वैसे तो व्यास लोग गद्दी पर बैठकर बार बार वेद का…

Read Moreसबद-35 : ओ३म् बल बल भणत व्यासूं, नाना अगम न आसूं, नाना उदक उदासूं। 
69648528 642046616282790 7077355880395571200 n

सबद-36 : ओ३म् काजी कथै कुराणों, न चीन्हों फरमांणों, काफर थूल भयाणों।

ओ३म् काजी कथै कुराणों, न चीन्हों फरमांणों, काफर थूल भयाणों।  भावार्थ- काजी लोग तो केवल कुरान का पाठ करना तथा कहना ही जानते हैं पर उपदेश कुशल ही होते हैं। जो पर उपदेश देने में रस लेगा वह उसे धारण नहीं कर सकेगा और जब तक यथार्थ कथन को स्वयं स्वीकार करके वैसा जीवन यापन नहीं करेगा तब तक वह कथा वाचक स्वयं नास्तिक-काफिर है तथा स्थूल व्यर्थ का बकवादी नास्तिक है उनका जन्म मृत्यु संसार भय निवृत्त नहीं हुआ…

Read Moreसबद-36 : ओ३म् काजी कथै कुराणों, न चीन्हों फरमांणों, काफर थूल भयाणों।
Khej

सबद-37 ओ३म् लोहा लंग लुहारूं, ठाठा घड़ै ठठारूं, उतम कर्म कुम्हारूं।

ओ३म् लोहा लंग लुहारूं, ठाठा घड़ै ठठारूं, उतम कर्म कुम्हारूं। भावार्थ – धरती एक तत्व रूप से विद्यमान है इसी धरती का अंश लोहा, पीतल, चांदी तथा कंकर पत्थर है इसी धरती रूप लोहे को लेकर लुहार उसे तपाकर के घण की चोट से घड़कर लोहे के अस्त्र शस्त्र औजार बना देता है। लोहा एक था औजार आदि अनेक हो जाते हैं उसी प्रकार से ठठेरा उसे धरती का अंश रूप पीतल लेता है उसे कूट-पीट तपा करके अनेकानेक बर्तन…

Read Moreसबद-37 ओ३म् लोहा लंग लुहारूं, ठाठा घड़ै ठठारूं, उतम कर्म कुम्हारूं।