सबद-37 ओ३म् लोहा लंग लुहारूं, ठाठा घड़ै ठठारूं, उतम कर्म कुम्हारूं।

ओ३म् लोहा लंग लुहारूं, ठाठा घड़ै ठठारूं, उतम कर्म कुम्हारूं। भावार्थ – धरती एक तत्व रूप से विद्यमान है इसी धरती का अंश लोहा, पीतल, चांदी तथा कंकर पत्थर है इसी धरती रूप लोहे को लेकर लुहार उसे तपाकर के…

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सबद-38 ओ३म् रे रे पिण्ड स पिण्डूं, निरघन जीव क्यूं खंडूं, ताछै खंड बिहंडूं।

ओ३म् रे रे पिण्ड स पिण्डूं, निरघन जीव क्यूं खंडूं, ताछै खंड बिहंडूं। भावार्थ- अरे गोंसाई! जैसा तुम्हारा यह पंचभौतिक पिण्ड अर्थात् शरीर है वैसा ही अन्य सभी जीवों का शरीर है। कोई ठुमरा, माला तिलक से शरीर में परिवर्तन…

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सबद-39 ओ३म् उतम संग सूं संगूं, उतम रंग सूं रंगूं, उतम लंग सूं लंगूं।

ओ३म् उतम संग सूं संगूं, उतम रंग सूं रंगूं, उतम लंग सूं लंगूं। भावार्थ- यदि तुम्हें भवसागर से पार होना है तो सर्वप्रथम तुम्हारा कर्तव्य बनता है कि उतम संगति करना। उतम पुरूष के साथ वार्तालाप करना ही अच्छा संग…

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सबद-40 ओ३म् सप्त पताले तिहूं त्रिलोके, चवदा भवने गगन गहीरे। बाहर भीतर सर्व निरंतर, जहां चीन्हों तहां सोई।

“दोहा” लोहा पांगल वाद कर आवही गुरु दरबार। प्रश्न ही लोहा झड़ै, बोलेसी गुरु आचार। प्रश्न एक ऐसे करी, काहां रहो हो सिद्ध। तुम तो भूखे साध हो, हमरै है नव निध।  लोहा पांगल नाथ पंथ का प्रसिद्ध साध्धु था।…

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सबद-41 ओ३म् सुण राजेन्द्र, सुण जोगेन्द्र, सुण शेषिन्द्र, सुण सोफिन्द्र। सुण काफिन्द्र, सुण चाचिन्द्र, सिद्धक साध कहाणी

ओ३म् सुण राजेन्द्र, सुण जोगेन्द्र, सुण शेषिन्द्र, सुण सोफिन्द्र। सुण काफिन्द्र, सुण चाचिन्द्र, सिद्धक साध कहाणी। भावार्थ- हे राजेन्द्र, हे योगीन्द्र, हे शेखेन्द्र, हे सूफीन्द्र, हे काफिरेन्द्र, , हे चिश्ती आप लोग सभी ध्यानपूर्वक सुनों! आप लोग अपने को सिद्ध,…

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शब्द 42 ओ३म् आयासां काहे काजै खेह भकरूडो ।

ओ३म् आयासां काहे काजै खेह भकरूडो । सेवो भूत मसांणी ।। घडै ऊंधै बरसत बहु मेहा । तिहिंमा कृष्ण चरित बिन पडयो न पडसी पाणी ।। भावार्थ:- हे आयस योगी! इस शरीर पर राख की विभूति किस लिए लगाई है।…

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शब्द 43 ज्यूँ राज गए राजिन्द्र झूरै

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 लोहा पांगल ने पूर्वोत्तर शब्द सुनने के पश्चात जाम्भोजी से कहा कि हमारा जोग अपार है।हमने योग द्वारा सिद्धि प्राप्त कर ली है।आप हमारी सिद्धि पर कुछ अपना मत प्रकट करें।योगी के कथन को जान गुरु महाराज ने उसे…

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सबद-44 ओ३म् खरतर झोली खरतर कंथा, कांध सहै दुख भारूं।

ओ३म् खरतर झोली खरतर कंथा, कांध सहै दुख भारूं। जोग तणी थे खबर नहीं पाई, कांय तज्या घर बारूं भिक्षा मांगने की झोली और ओढ़ने की गूदड़ी ये खरतर ही होनी चाहिये अर्थात् यदि तुम्हें भिक्षा के लिये झोली रखना…

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सबद-45 ओ३म् दोय मन दोय दिल सिवी न कंथा, दोय मन दोय दिल पुली न पंथा

ओ३म् दोय मन दोय दिल सिवी न कंथा, दोय मन दोय दिल पुली न पंथा। दोय मन दोय दिल कही न कथा, दोय मन दोय दिल सुणी न कथा। संकल्प विकल्पात्मक मनः, मन का स्वभाव, संकल्प तथा विकल्प करना है।…

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सबद-46 ओ३म् जिहिं जोगी के मन ही मुद्रा, तन ही कंथा पिण्डे अगन थंभायो।

ओ३म् जिहिं जोगी के मन ही मुद्रा, तन ही कंथा पिण्डे अगन थंभायो। जिहिं जोगी की सेवा कीजै, तूठों भव जल पार लंघावै। भावार्थ- जिस योगी के मन मुद्रा है , शरीर ही गुदड़ी है और धूणी धूकाना रूप अग्नि…

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सबद-47 ओ३म् काया कंथा मन जो गूंटो, सीगी सास उसासूं।

ओ३म् काया कंथा मन जो गूंटो, सीगी सास उसासूं। मन मृग राखले कर कृषाणी, यूं म्हे भया उदासूं। भावार्थ- वस्त्र से बनी हुई भार स्वरूप कंथा रखना योगी के लिये अत्यावश्यक नियम- कर्म नहीं है तथा गले में गूंटो हाथ…

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सबद-48 ओ३म् लक्ष्मण लक्ष्मण न कर आयसां, म्हारे साधां पड़ै बिराऊं

प्रसंग-21 दोहा' नाथ एक विश्नोई भयो, करै भण्डारै सेव। टोघड़ी सोधण टीले गयो, जोगी भुक्त करैव। जोगी आया भुक्त ले, विश्नोई लेवे नांहि। जोगी इण विध बोलियो, हमारी भुक्त में औगुण काहि। घर छोड़या तै नाथ का, हम सूं कीवी…

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