

सबद-17 : ओ३म् मोरै सहजे सुन्दर लोतर बाणी, ऐसो भयो मन ज्ञानी।
‘दोहा‘‘ जाट परच पाऐ लग्यो, हृदय आई शांत। सतगुरु साहब एक है, गई हृदय की भ्रान्त। प्रसंग दोहा विश्नोईयां ने आयके, इक बूझण लागो जाट। जाम्भोजी के अस्त्री है, ओके म्हासूं घाट। विश्नोई यूं बोलियां, नहीं लुगाई कोई। निराहारी निराकार है, पुरू पुरूष परमात्म सोई। झगड़त झगड़त उठ चल्या, जम्भ तंणै दरबार। जायरूं पूछै देव ने, इसका कहो विचार। जम्भेश्वर इण विधि कह्यो, थे जु लुगाई जान। विश्नोई ऐसे कह्यो, दीठी सुणी न कान। सबद सुणायों देवजी, ऐसे कह्यो विचार।…