साक्षरता का कथा-गीत (दो)

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।

थार धरा में नाम सवाई ,
परमगुरु जम्भेश्वर का |
‘विष्णु विष्णु तूं भण रे प्राणी,
जाप धरा औ अम्बर का ||
विकट काल जिसमें सत्ता ने,
नैतिकता ठुकराई थी |
चारों और अधमता नाचे,
और नीचता छाई थी ||
सिंहासन के लिए कलह था,
चारों ओर तबाही थी ||
दो पाटों के बीच मनुजता,
पिसती राई राई थी|
भूख, अकाल दहकती दुनिया,
घड़ी काल की आई थी ||
काम नहीं था कुछ करने को,
नहीं खेत में दाना था|
भूख तबाही थी चारों दिस,
और मौत का गाना था ||
केवल गर्जन करते बादल,
उमड़ घुमड़ लहराते थे|
मानव के दुष्कर्म देखकर,
बिन बरसे ही जाते थे ||
भूख, गरीबी मर पिसते उस,
मेहनतकश की ख़ैर नहीं |
जो किसान अन्न का दाता,
कभी किसी से बैर नहीं ||
उसकी खड़ी फसल लुटती थी,
चारों ओर कलह भारी |
मारकाट और लूटपाट से,
सभी दुखी थे नर-नारी ||
ऐसे में इक ज्योति प्रकाशी,
पाखंडों को दूर किया |
सच्चा ज्ञान,ध्यान बतलाया|
नुगरों को बेनूर किया ||
पीपासर की उस ज्योति का,
माँ हंसा ने किया उछाव |
लोहटजी परमार पिटा के,
पूरे हुए मनस के भाव||
प्रथम सबद था जाम्भोजी का,
हे पुरोहित ! गुरु को पहचानो |
सहज,शील,नाद अरु बिंदु ,
गुरु के आभूषण ही जानो ||
एक रखे ‘करनी-कथनी’ को,
बन कर जग जितेन्द्रिय रहे |
ब्रह्म और आतम को जाने,
जग उसको ‘गुरु’ नाम कहे ||
गुरु ज्ञान ही इस जगती में ,
सभी रसों अरु सुख का मूल |
खुरसाणी पत्थर सम काटे,
मोह माया गुरु जग की धुल|
मशक पानी की यह काया तो,
शूल निकाले सतगुरु ही |
काया के कच्चे ‘करवे’ की ,
पहचान करावे सतगुरु ही ||
परम गुरु की उस वाणी का,
जिसने जान लिया था सार |
उनके परचे पर मेड़तिये,
‘दूदे’ काठ गही तलवार ||
‘बैरीसाल’ नगाड़ा अद्भुत,
गुरुवर ने ‘जोधा’ को दीन्हा |
और तपस्या तीरथ धोरा .
समराथल पावन गुरु कीन्हा ||
उनका जीवन परम-प्रेरणा ,
सब जग में मुद-मंगलकारी |
आत्मज्ञान’ रु गुरु कृपा से,
जगती बने ‘स्वर्ग की क्यारी’||

कवि व राजस्थानी साहित्यकार डा. आईदान सिह जी भाटी

गूगल प्ले स्टोर से हमारी एंड्रॉइड ऐप डाउनलोड जरूर करें, शब्दवाणी, आरती-भजन, नोटिफिकेशन, वॉलपेपर और बहुत सारे फीचर सिर्फ मोबाइल ऐप्प पर ही उपलब्ध हैं धन्यवाद।


Discover more from Bishnoi

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
Articles: 1370

One comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *