
” लाय बुझावण नै मन हुवो,
तदे घर जल खैणावै कुवो।
उत में लोग हंसै जग जोय,
घर जलता कुवो कदि होय।
-(केसोजी)
-भावार्थ-‘ समय बितने पर किया गया कार्य उसी प्रकार व्यर्थ है जैसे कोई घर में लगी आग बुझाने के लिए कुआं खोदने का उपक्रम करे,यह स्वयं की हानि और जगत में उपहास का कारण बनता है।
(जम्भदास)






