जो बाह्य चिह्नों से उदासीन होकर केवल आन्तरिक चिह्नों को धारण करेगा वही सच्चा योगी होगा। वही पूर्ण यती होगा और वही सती तथा समाधिस्थ होकर ब्रह्म का साक्षात्कार करने वाला होगा। हे योगी! मैने तो यह सभी कुछ धारण कर लिया है। इसलिये मैं अपने को योगी, यति , सति तथा सिद्ध पुरूष कह सकता हूं। किन्तु हे अनादि नाथ के भक्त! तुम्हारे में अभी ये लक्षण नहीं आये है। यदि तुम्हें भी सच्चा योगी बनना है तो सर्वप्रथम तो पांच प्राणों की गति अवरोध कर क्योंकि ये पांच ही शरीर को जीने की शक्ति देते हैं। ये जब निकल जाते हैं तो यह शरीर मृत हो जाता है इसलिये ये पट यानि श्रेष्ठ है। जब प्राणों की गति में प्राणायाम द्वारा अवरोध्ध होगा तब इनसे जुड़े हुऐ मन, बुद्धि, चित, अहंकार स्वतः ही शांत हो जायेंगे तथा इन चतुर्विध्ध अन्तःकरण से जुड़ी हुई पांच ज्ञानेन्द्रियां भी साधित हो जायेगी। इसलिये पांच पटण एवं नव थानकों की साधना करनी होगी।