सबद-26 ओ३म् घण तण जीम्या को गुण नांही, मल भरिया भण्डारूं। आगे पीछे माटी झूलै, भूला बहैज भारूं।

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ओ३म् घण तण जीम्या को गुण नांही, मल भरिया भण्डारूं। आगे पीछे माटी झूलै, भूला बहैज भारूं।
भावार्थ- यह जमात का महंत अध्धिक भोजन खाने से मोटा-स्थूल हो गया है। किन्तु अधिक खाकर मोटा होने में कोई गुण नहीं है। यह शरीर रूपी भण्डार मल से ही तो भरा हुआ है। इसके आगे और पीछे चर्बी रूपी माटी ही तो झूल रही है। यह बेचारा अपनी भूल के कारण ही तो भार उठाकर घूम रहा है। बिना परिश्रम के स्वाद के लिये खाया हुआ अत्यधिक गरिष्ठ भोजन करने से यही मोटापा रूप दण्ड शरीर को मिलता है। इसलिये साधक के लिये तो युक्ताहार – विहार ही श्रेष्ठ है।

घणा दिनां का बड़ा न कहिबा, बड़ा न लंघिबा पारूं। उतम कुली का उतम न होयबा, कारण किरिया सारूं।
अधिक आयु होने से बड़ा महापुरूष नहीं हो सकता और न ही बड़ा होने से कोई संसार सागर से पार ही उतर सकता। थोड़ी आयु होने से भी यदि गुणी है तो महान और ज्ञानी है। वह अपना कल्याण भी कर सकता है। उतम कुल-वंश में जन्म लेने से कोई उतम महान नहीं हो सकता। यदि जन्म से तो उतम ब्राह्मण है किन्तु कर्म से चाण्डाल है तो उसे ब्राह्मण कदापि नहीं कहना चाहिये। उतम और कनिष्ठ होने में क्रिया और कर्म ही कारण है न कि जाति। प्राचीन काल में जन्म से जाति नहीं मानी जाती थी किन्तु कर्म से जातियों का निर्धारण होता था। आज कल इस विधान का व्यक्तिक्रम खत्म हो गया है।

गोरख दीठा सिद्ध न होयबा, पोह उतरबा पारूं।
केवल सिद्ध गोरखनाथ जी के दर्शन करने से ही सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती। यदि गोरखनाथ जी की तरह ही सिद्धि प्राप्त करनी है तो जैसा उन्होंने अपनी वाणी में बतलाया है वही मार्ग अपनाकर साधना करो तभी संभव है। अर्थात् यदि जीवन में महानता प्राप्त करनी है तो उस महानता की सिद्धि के लिये वैसा ही मार्ग अपनाकर कठिन परिश्रम एवं लग्न से कार्य करना ही फलदायी गोरख दर्शन का लाभ है।

कलयुग बरतै चेतो लोई, चेतो चेतण हारूं।
इस समय कलयुग चल रहा है। यह कलयुग समय अति शीघ्रता से व्यतीत हो रहा है क्योंकि कार्य अधिक है, जीवन की आयु थोड़ी है। इस अल्प समय में ही हे लोगों! सावधान हो जाओ! यदि सभी लोग नहीं चेत सको तो चेतने योग्य जन तो अवश्य ही सचेत हो जाओ क्योंकि-

सतगुरु मिलियो सतपन्थ बतायो, भ्रान्त चुकाई, विदगा रातै उदगा गारूं।
इस समय आपको सतगुरु सहज में ही प्राप्त हो चुके है। सतपन्थ बता दिया है। भ्रान्ति की निवृति हो चुकी है। क्योंकि सतगुरु की बाणी वेद ग्रन्थों का उद्गार रूप ही है। सम्पूर्ण वेद ग्रन्थों का पढ़ना असंभव है इसलिये वेदों की सार रूपी यह वाणी ही तुम्हारे लिये सच्ची ज्ञानदात्री है।
साभार – जंभसागर

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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