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ओ३म् लोहे हूंता कंचन घड़ियो, घड़ियो ठाम सु ठाऊं। जाटा हूंता पात करीलूं, यह कृष्ण चरित परिवाणों।
भावार्थ- प्रारम्भिक अवस्था में सोना भी लोहा जैसा ही विकार सहित होता है। खानों से निकालकर उसे अग्नि के संयोग से तपाकर विकार रहित करके सोना बनाया जाता है तथा उस पवित्र स्वर्ण से अच्छे से अच्छा गहना आभूषण बनाया जाता है जिसे युवक युवतियां पहनकर आनन्दित होते है। उसी प्रकार से इस मरूदेशीय जाट भी लोहे जैसे ही थे किन्तु अब मेरी संगति में आ जाने से ये सभी पवित्र देव तुल्य हो गये है। इन लोगों ने सबदवाणी रूपी ताप से अपने को पवित्र बना लिया है। इस प्रकार से ये जाट पवित्र हुऐ है। इनकी पवित्रता में सबसे बड़ा हेतु तो कृष्ण परमात्मा का दिव्य अलौकिक चरित्र है। कृष्ण की अपार शक्ति कृपा ने इनको वास्तव में सहयोग दिया है।
बेड़ी काठ संजोगे मिलिया, खेवट खेवा खेहूं। लोहा नीर किसी विध तरिबा, उतम संग सनेहूं।
लकड़ी से बनी हुई नौका के साथ संयोग होने से लोहा भी नदी जल से पार हो जाता है डूबने का डर नहीं होता है। क्योंकि उस लोहे ने उतम लकड़ी का संग किया है और फिर अच्छा केवट नौका चलाने वाला भी प्राप्त हो जाता है। तो हजारों मन लोहा अपने गन्तव्य स्थान पर पहुंच जाता है। उसी प्रकार से जाट लोग भी अब निश्चित ही संसार सागर से पार उतर जायेंगे, क्योंकि इन्होंने समयानुसार मेरे से संगति की है। अपने जीवन को उतम बनाया है और अब इनके केवट रूपी सतगुरु का हाथ सिर पर आ गया है। अब डूबने की कोई आशंका नहीं है।
बिन किरिया रथ बैसैला, ज्यूं काठ संगीणी लोहा नीर तरीलूं। नांगड़ भांगड़ भूला महियल, जीव हतै मड़ खाइलो।
शुद्ध क्रिया रहित यह शरीर रूपी रथ इस अथाह संसार सागर में डूब जायेगा। जिस प्रकार से लोहा काठ संगति रहित डूब जाता है तथा सत्संगति से लोहा तथा मानव दोनों ही पार उतर जाते है। संसार में सतगुरु मिलना अति दुर्लभ है। वैसे आप किसी सतगुरु की खोज के लिये प्रयास करोगे तो आपके सामने अनायास ही नंगे रहने वाले साध्धु, सन्यासी, भांग पीकर मदमस्त रहने वाले जो अपने आप को भूले हुए है और दूसरों को भी भुलावे में डालकर धन ऐंठते है। ऐसे ऐसे लोग जो जीवों को मारकर मुरदों को खाते है सभी नशीली वस्तुओं का सेवन करते है फिर भी ज्ञान देने का दावा करके जिज्ञासुओं को अपने जाल में फंसा लेते है। ऐसे लोगों से सावधान रहकर ही सत्संगति पायी जा सकती है|
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