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ओ३म् दिल साबत हज काबो नेड़ै, क्या उलबंग पुकारो।
भावार्थ- यदि तुम्हारे दिल शुद्ध सात्विक विकार रहित है तो तुम्हारे काबे का हजा नजदीक ही है अर्थात् हृदय ही तुम्हारा काबै का हज है तो फिर क्यों मकानों की दिवारों पर चढ़कर ऊंची आवाज से उस अल्ला की पुकार करते हो, , यह तुम्हारी बेहूदी उलबंग तुम्हारा अल्ला नहीं सुन सकेगा क्योंकि वह अल्ला तो तुम्हारे दिल में ही है।
भाई नाऊ बलद पियारो, ताकै गलै करद क्यूं सारों।
अपने प्रियजन भाई से भी हल चलाने वाला बैल प्रिय होता है, भाई मौके पर कभी भी जबाब दे सकता है किन्तु वह भोला-भाला बैल कभी भी संकट की घड़ी में जबाब नहीं देगा। आप लोग महा मूर्ख हो जो उस बैल के गले पर भी करद चलाते हो, यदि आप लोग जरा भी सोच-समझ रखते हो तो फिर ऐसा क्यों करते हो।
बिन चीन्है खुदाय बिबरजत, केहा मुसलमानों।
तुम लोगों ने ईश्वर को तो पहचाना नहीं है। उस खुदा ने भी तो जीव हत्या करना मना किया है फिर भी जीव हत्या करते हो, तो तुम सच्चे मुसलमान कैसे हो सकते हो। शिष्य यदि गुरु का कहना नहीं माने तो फिर कैसा गुरु और कैसा शिष्य।
काफर मुकर होकर राह गुमायो, जोय जोय गाफिल करें धिंगाणों।
अपने गुरु के वचनों को छोड़कर आप लोग वास्तव में काफिर-नास्तिक हो चुके हो और अपने पथ से भ्रष्ट होकर जबरदस्ती करते हो। वास्तव में अपने मार्ग का पता तो तुम्हें है किन्तु जानते हुऐ भी अनजान बनकर पाप कर्म करने में प्रवृत हो गये, यही तुम्हारी जबरदस्ती है।
ज्यूं थे पश्चिम दिशा उलबंग पुकारो, भल जे यो चिन्हों रहमाणों।
जिस प्रकार से आप लोग पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बड़े जोर से हेला(आवाज) मारते हो ठीक उसी प्रकार से यदि उस दया-ज्ञान सिन्धु रहम करने वाले परमेश्वर को सच्चे दिल से याद करो तो तुम्हारा भला होना निश्चित ही है।
तो रूह चलंते पिण्ड पड़ंतै, आवै भिस्त विमाणों।
यदि आप लोग सच्चे मन से नमाज की तरह ही परमात्मा का स्मरण करो तो जब यह आत्मा शरीर से विलग हो जायेगी यह शरीर गिर जायेगा, उस समय स्वर्ग से विमान तुम्हारे लिये अवश्य ही आयेगा।
चढ़ चढ़ भींते मड़ी मसीते, क्या उलबंग पुकारो।
बीना सच्चाई के तो केवल भींत, मेड़ी , मस्जिद आदि पर चढ़कर पुकार करने से कोई लाभ नहीं कभी स्वर्ग की आशा नहीं करना।
कांहे काजै गऊ विणासै, तो करीम गऊ क्यूं चारी|
भगवान श्री कृष्ण ने गऊवें चराई थी यदि गउवों को मारना ही इष्ट होता तो वे समर्थ पुरूष कभी भी गउवें नहीं चराते। अब तक तो यहां संसार में एक भी गऊ जीवित नहीं होती तो फिर तुम लोग क्यों गउवों का विनाश करते हो।
कांही लीयो दूधूं दहियूं, कांही लीयूं घीयूं महीयूं। कांही लीयूं हाडूं मासूं, काहीं लीयूं रक्तूं रूहियूं।
यदि तुम लोग गऊवों का विनाश करना ठीक मानते हो तो फिर उनका अमृतमय दूध, दही, घी , मेवा आदि क्यों ग्रहण करते हो? इन वस्तुओं से सदा परहेज रखो और यदि घी, दूध आदि ग्रहण करते हो तो फिर उनके हाड़, मांस, रक्त और जीव को क्यों खा जाते हो? यह तुम्हारा न्याय नहीं हो सकता।
सुणरे काजी सुणरे मुल्ला, यामै कोण भया मुरदारूं।
रे काजी, रे मुल्ला! ध्यानपूर्वक सुनों! इसमें मुर्दा कौन हुआ? मारने वाला या मरने वाला? यहां तो ऐसा ही लगता है कि मुर्दे को खाने वाला ही मुर्दा(मृत) है। जो मर चुका है वह तो नया शरीर धारण कर ही लेगा, किन्तु मरे हुऐ को खाने वाला तो रोज मुर्दा-मृत होता है अर्थात् तुम लोग सभी मुर्दे हो।
जीवां ऊपर जोर करीजै, अंत काल होयसी भारूं।
इस समय यदि जीवों पर जोर जबरदस्ती करते हो तो अन्त समय में तुम्हारे लिये मुश्किल पैदा हो जायेगी। तुम्हारा यह जीवन मूल ही नष्ट हो जायेगा।
साभार – जंभसागर
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