

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*उरधक चन्दा निरधन सूरुं*
बाजेजी के साथ आए मलेर कोटले के शेख -सदू ने श्री जंभेश्वर महाराज का शिष्यत्व स्वीकार किया एवं विश्नोई बनकर अपने पूर्व पापों का प्रायश्चित किया। इस अवसर पर भगत बाजेजी ने गुरु महाराज के सम्मुख जिज्ञासा प्रकट की कि सत्य लोक कितने योजन दूर है? सूर्य,चंद्रमा एवं तारामंडल के तारे कितनी दूर है? गुरुदेव कृपा शून्य मंडल और उससे परे की बातें बतलाने की कृपा करें। भक्त के प्रश्न को जान गुरु महाराज ने उस समय यह शब्द कहा:-
*उरधक चन्दा निरधक सुरूं नव लख* *तारा नेड़ा न दुरूं*
शरीर में चंद्रमा ऊपर गगन मण्डल में है और सूर्य नीचे मूलाधार चक्र में,नव लाख नाडियों रुपी तारे जो दूर-दूर शक्ति पुंजों के रुप में सम्पूर्ण शरीर में फैली हुई हैं।
*नव लख चन्दा नव लख सुरूं नव लख* *धंधूकारूं*
शरीर में नौ द्वार हैं मन की चंचलता के कारण गगनमण्डल में स्थित चंद्रमा का अमृत मनुष्य की जीवनीशक्ति, इन नौ द्वारों के माध्यम से धीरे धीरे नष्ट होती जाती है।सामान्य स्थिति में नौ द्वारों के खुला रहने के कारण गगनमडल में स्थित चन्द्रमा से होने वाला अमृतस्त्राव मूलाधारस्थ सूर्य द्वारा सोख लिया जाता हैं तथा धीरे-धीरे जरा और मृत्यु आती है।
*ताह परे रै तेपण होता तांका करूं विचारूं*
मैं उसकी बात करता हूं जो इससे परे ऊधर्वरेता होने पर कुंडलीनी द्वारा निरन्तर इस अमृत के पान किए जाने की स्थिति है।मैं उसकी बात कहता हुँ।सुषुम्ना नाडी के माध्यम से छह चक्रों के सहारे कुंडलिनी को शुन्यमडल में ले जाना चाहिए। ताकि वह वहाँ स्थित चंद्रमा के अमृत का पान कर सके। इसके लिए नौ द्वारों को बंद कर दसवां ब्रह्मारंध खोलना चाहिए।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*जाम्भाणी शब्दार्थ व जम्भवाणी टिका*
Discover more from Bishnoi
Subscribe to get the latest posts sent to your email.