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*गोरख लो गोपाल लो*
जैसलमेर के राव जेतसिंह को कुष्ठ रोग हो गया था, जो श्री जंभेश्वर भगवान की शरण में आने से दूर हो गया। जेतसिंह ने उसकी प्रसन्नता एंव श्रद्धावश अपने शहर जैसलमेर में एक यज्ञ महोत्सव किया। वहां गुरु जंभेश्वर को आमंत्रित किया।उस यज्ञ महोत्सव में हजारों साधु-संत एवं राजा महाराजा एकत्रित हुए। यज्ञ संपन्न होने के पश्चात जब सब आगंतुक विदा होने लगे,उस समय गुरु महाराज ने जेतसिंह एवं अन्य लोगों के प्रति यह शब्द कहा:-
*गोरख लो, गोपाल लो, लाल गवाल लो लाल लीलंग देवूं*
हे श्रद्धालु भक्त जनो!अपनी इन्द्रियों के स्वामी बनो।उनके दास बन कर मत रहो।जैसे गोरखनाथ ने अपनी इन्द्रियों को वश में रखते हुए सिद्धि प्राप्त की,उसी प्रकार तुम इस संसार में रहते हुए अपनी कामनाओं को वश में रखते हुए संयमित जीवन जीवो।
*नव खण्ड प्रथमी परगटियौ कोई कोई बिरला जांणंत म्हारा आद मुल का भेवूं।*
हम इस पृथ्वी के नौ खण्डों में समय समय पर प्रकट होते रहते हैं, परन्तु हमारे आदि मूल स्वरूप का रहस्य कोई- कोई बिरला साधुसंत ज्ञानी जन ही पहचान सकता हैं।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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*जाम्भाणी शब्दार्थ*
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