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वाद विवाद फिटाकर प्राणी
एक ज्योतिषी ने जोम्भोजी से प्रश्न किया कि ज्ञान तो वेद- शास्त्रों पर विचार मंथन करने से तथा शास्त्रार्थ करने से आता है और इस कार्य के लिए कोई जल्दी भी नहीं है। बहुत बड़ी उम्र पड़ी है।अब तो सांसारिक जीवन के सुख भोग का समय है। ज्योतिषी के उपर्युक्त विचार जान, जाम्भोजी ने उसके सम्मुख यह शब्द कहां:-
वाद विवाद फिटाकर पिराणी छाड़ो मनहट मन को भाणों
हे प्राणी!वाद-विवाद करना छोड। व्यर्थ का तर्क-वितर्क करना हर समय मन को द्वन्द्व में उलझाए रखना,सारहिन हैं। यह मन बड़ा जिद्दी है। यह अपनी चाह के पीछे भागता रहता है। मन को जो अच्छा लगे, वह हमेशा अच्छा ही नहीं होता।
कांही कै मन भयो अन्धरों कांही सुर उगाणों
मन की चाह्त को त्याग कर अहंकार से छुटकारा पा। यह जान की किसका मन अज्ञान के अंधेरे में भटक रहा है और किसके मन में ज्ञान का सूर्य उदय हुआ है।
नुगरा के मन भयो अंधेरो सुगरा सुर उगाणों
जो गुरुहीन, मनमुखी, मनचाही करने में लगा है, उसका मन अंधकार में है और जिसने सतगुरु के दिए सच्चे ज्ञान के पंथ को पहचान लिया है।उसके मन से अज्ञान का अंधेरा दूर हट जाता हैं ।वहाँ ज्ञान की जोत जल उठती हैं।
चरणाभि रहीया लोयण झुरीया पिंजर पडयो पुराणों
वृद्धावस्था में व्यक्ति चलते फिरते से रह जाऐगा,आंखों में पानी बहने लगेगा।ये ठीक से देखना बंद कर देगी और यह तुम्हारा शरीर रुपी पिंजडा शिघ्र ही पुराना पड़ जायेगा।
बेटा बेटी बहनरू भाई सबसे भयो अभाणो
उस समय तुम्हारे बेटे- बेटियाँ, बहन और भाइ तुम्हें चाहना छोड देंगे।तुम उन्हें अनावश्यक बोझ लगने लगोगे।
तेल लियो खल चौपे जोगी रीता रहीयो घाणौं
जिस प्रकार तिलों में से तेल निकालने के पश्चात शेष बची खल, केवल चौपाये जानवरों के लायक रह जाती है। वह घाणी, जिसमें पिराई कर तेल निकाला वह भी खाली पड़ी रह जाती है। उसी प्रकार तुम्हारा यह शरीर, जिसमें से तेल रूपी तुम्हारी कार्य क्षमता चुक जाने के बाद परिवारजनों के लिए तुम पूर्णतः खल के समान व्यर्थ बन जावोगे।
हंस उडाणों पंथ विलब्यो कीयो दूर पयाणों
जिस समय तुम्हारी यह जीवात्मा शरीर से निकलकर अपने मार्ग पर लग जायेगी और इसे बहुत लम्बा मार्ग पार करना पडेगा।
आगे सूरपति लेखो मांगै कह जीवड़ा कै करण कमाणो
वहां धर्मराज अपनी करनी का हिसाब मांगेंगे हैं वे पूछेंगे की हे जीव बता तूने क्या कमाई की है ?कौन से सुकृत किये हैं
जीवड़ा ने पाछौ सुझण लागो सुकृत नै पछताणो
उस समय तुम्हारे इस जीव को अपने मनुष्य जीवन में किए गये संपूर्ण कर्मों का ध्यान आयेगा और इसे यह पश्चाताप रहेगा कि इसने मनुष्य जीवन पाकर भी अच्छे कर्म नहीं किए, परंतु उस समय पश्चाताप करने से कुछ नहीं होगा।अतः हे प्राणी!अभी समय है,व्यर्थ का वाद-विवाद छोड़कर शुभ कर्म करने में लग जावो।
क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ व जम्भवाणी टीका
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