Jambhguru samadhi

शब्द नं 106

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सुंण रे काजी- सुंण रे मुल्ला
एक समय श्री जंभेश्वर महाराज काबुल मुल्तान होते हुए हज-काबे पहुँचे।वहां दरिया के किनारे एक मछुआरा मछली पकड़ रहा था।जाम्भोजी ने उसे मछली मारने से मना किया उसे तथा काजी को चमत्कार दिखाकर उन्हें जीव हिंसा से रोका तथा अपना शिष्य बनाया।गुरु महाराज की महिमा सुन उन्हें सच्चा पीर जान बारह काजी और तेरह खान उनके पास आये। उन्होंने एक-एक कर गुरु महाराज को नमस्कार किया तथा कहा कि वे उनके शिष्य बन सकते हैं, बशर्ते जाम्भोजी उन्हें ये चार चमत्कार दिखाये।पहला परचा , धरती में गड़ा हुआ धन बता दें। मेरी खाल से उस पशु को जीवित कर दें, उनका शरीर तलवार से ना कटे तथा वे अन्न-जल ग्रहण न करें।गुरु महाराज ने अपनी दैविय शक्ति से यह जानकर कि यह पच्चीस जीव पूर्व में प्रह्लाद पंथी रहे हैं उन्हें तथा अन्य उपस्थित समूह के सम्मुख यह शब्द कहा:-
सुण रे काजी सुणरे मुल्ला, सुणियो लोग लुगाई।

हे काजी ! सुणो, हे मुल्ला ! सुणो, हे समस्त स्त्री – पुरुषों तुम सब सुनो!

नर निरहारी एकल वाई, जिणयों राह फुरमाई।

हम केवल अपने आत्मस्वरूप में अवस्थित केवल्य- ज्ञान,ज्योति स्वरूप में प्रकट होकर, हम तुम्हें सच्चाई और धर्म का रास्ता बतला रहे हैं।

जोर जबर करद जे छाड़ो, तो कलमा नाम खुदाई।

किसी जीव पर अपनी शक्ति मत लगाओ, उन पर चोट मत करो ।उनको मारने के लिए धारण की हुई छुरी को छोड़ो, ऐसा करना ही सच्ची ईश्वरीयता हैं।

जिनके साथ सिदक इमान सलामत जिण या भिस्त उपाई।

जिनके हृदय में न्याय, ईमान, सच्चाई एवं ईमानदारी कायम है, वहीं स्वर्ग जाने का अधिकारी है, क्योंकि भिस्त को जाने का यही मार्ग है। कोई भी स्त्री-पुरुष सच्चाई, ईमानदारी न्याय और धर्म के रास्ते पर चलकर ही स्वर्ग जा सकता है।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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