शब्द नं 102

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विसन विसन भणि अजर जरिजै
एक समय की बात है कि बूढ़ा खिलेरी नाम के व्यक्ति ने आकर गुरु महाराज से कहा कि वह अपने घर परिवार को तो छोड़ नहीं सकता,परंतु इस संसार में जन्म मरण के चक्कर से मुक्ति पाना चाहता है। गुरु महाराज उसे कोई ऐसा मार्ग बतलावे, जिस पर चलकर वह घर संसार में रहते हुए मुक्ति पा ले। उसका यह प्रश्न सुनकर गुरु महाराज ने यहशब्द कहा:-
विसन विसन भण अजर जरीजै लाहो लीजै पह जाणीजै धरंम हुवै पापां छुटीजै हरषै हरि पर हरि को नाम जपीजै

हे प्राणी! तू निरन्तर विसन का जपकर काम क्रोधादि शत्रुओं को बस में कर सुपथ को जान ओर मानव जीवन पाने का लाभ उठा प्रसन्नतापूर्वक हरि का नाम जप कर इस प्रकार सृकृत करता हुआ तु पाप बन्धन से मुक्त हो जाएगा।

हरियालो हरि आण हरूं हरी नारायण देव नरूं आशा सास निराश भईलो

प्रसन्नचित रहते हुए प्रत्येक जीव और पदार्थ में सर्वत्र हरि को देख क्योंकि प्रत्येक में नारायण देव हरी वर्तमान है।हरी को छोड़ किसी अन्य की आश मत करो। केवल मात्र हरि नाम पर दृढ़ प्रतिज्ञ होकर अटल रहो।अन्य देवताओं और मनुष्यों को उसी एक मात्र नारायण, हरि विसन का रूप जानो।

पाइलो मोक्ष द्वार खिणुं

इसी प्रकार का जीवन जीते हुए जिस क्षण साँस की आश टूट जायेगी,मौत द्वार पर खड़ी होगी, उसी क्षण तुझे मोक्ष का द्वार मिल जायेगा।इधर सांस टूटी-उधर मोक्ष प्राप्त हुआ।

क्षमा सहित निवण प्रणाम
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जाम्भाणी शब्दार्थ व जम्भवाणी टीका

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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