

“सत सीतां जत लखमंणां,
सबळाई हंणवंत।
जे आ सीत न जावही,
अै गुंण मांहि गळंत।।
-(मेहोजी गोदारा थापन)
-भावार्थ-‘सीता का हरण होने पर ही उनके सतीत्व,लक्ष्मण के जतीपने और हनुमान के बल-पराक्रम का संसार को पता चला अन्यथा तो ये गुण छुपे ही रह जाते। आपत्तिकाल में ही मनुष्य के सुषुप्त गुण प्रकट होते हैं।
🙏 -(जम्भदास)
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