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“मान बड़ाई तेज धन,
तन जाव शरम लाज।
भगति मुगति अर ग्यान ध्यान,
एते नै जावै भाज।
नर नारी कारण नहीं,
जांकै अंतरि काम।
कामी कदै न हरि भजै,
निसदिन आठोंजाम।
-(परमानन्दजी वणियाल)
-भावार्थ-‘ मान-सम्मान,तेज,धन,तन, लज्जा, भक्तिभावना, मुक्तिकामना, ज्ञान, ध्यान सब भाग जाते हैं जब जीव काम के वशीभूत हो जाता है।कामी कभी भगवान का भजन नहीं कर सकता।
🙏 – ( जम्भदास)
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