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“बाल तरण अर व्रधपणा,
हेत करे हरि ध्याय।
जब लग सांस सरीर मां,
हरख्य हरख्य गुण गाय।
-(परमानन्दजी वणियाल)
-भावार्थ-‘ जब तक इस नश्वर शरीर में श्वास चल रही है, बाल, युवा या वृद्ध कोई भी अवस्था हो प्रेम पूर्वक भगवान का स्मरण करना चाहिए।(क्योंकि मृत्यु अवस्था नहीं देखती)।’
🙏 -(जम्भदास)
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