परमानन्दजी वणियाल जो करता सोइ भोग्यता, आडो आवत सोय। अपणौ कीयो भोगवै, हरि कूं दोस न कोय। भावार्थ जीव जैसा कर्म करता है वैसा ही उसे फल मिलता है, अपने बुरे कर्मों का फल भोगते समय भगवान को दोष नहीं देना चाहिए। Sanjeev Moga Articles: 782 Previous Post Eco Dharma part 2 Next Post Basic Meditation By Sandeep maheshwari