

English: The second Shabad is, “Om more chhaayaan maaya, loh na maansu. Na tess rakat na roopu, na tess bhookh na pyaasu.” This means, “My true essence is an illusion-like shadow; it has no blood or flesh. It has neither blood nor form, neither hunger nor thirst.“
This teaching distinguishes between the temporary physical body and the eternal soul (Atma). The body, which we see and feel, is a temporary vessel made of elements. It experiences hunger, thirst, and decay. However, our true self—the soul—is formless, timeless, and not subject to these physical limitations. The Shabad continues by stating that this body, a combination of water and air (the five elements), will eventually perish. Therefore, one should chant the name of the Divine (Vishnu) so that at the end of life, the soul is not trapped in the cycle of rebirth.
Relevance in Modern Life: In today’s world, there is an immense focus on physical appearance, material possessions, and sensory pleasures. This Shabad is a powerful antidote to that obsession. It teaches us to identify with our inner, eternal self rather than our temporary, physical form. This perspective helps reduce anxiety about aging, death, and material loss. It encourages us to invest in spiritual and ethical growth—qualities of the soul—rather than solely in the perishable body and its desires. Practicing this detachment leads to lasting peace and fearlessness.
हिन्दी: दूसरा शब्द है, “ॐ मोरे छायान माया, लोह न मांसु। न तेस रकत न रूपु, न तेस भूख न प्यासु।” इसका अर्थ है, “मेरा वास्तविक स्वरूप एक छाया-रूपी माया है; इसमें न रक्त है और न मांस। इसका न कोई रक्त है, न रूप, और न इसे भूख लगती है और न प्यास।“
यह शिक्षा नश्वर भौतिक शरीर और शाश्वत आत्मा के बीच के अंतर को स्पष्ट करती है। यह शरीर, जिसे हम देखते और महसूस करते हैं, तत्वों से बना एक अस्थायी पात्र है। यह भूख, प्यास और क्षय का अनुभव करता है। हालाँकि, हमारा वास्तविक स्वरूप—आत्मा—निराकार, कालातीत है और इन भौतिक सीमाओं के अधीन नहीं है। शब्द आगे कहता है कि यह शरीर, जो जल और वायु (पंचतत्व) का एक संयोजन है, अंततः नष्ट हो जाएगा। इसलिए, व्यक्ति को परमात्मा (विष्णु) के नाम का जाप करना चाहिए ताकि जीवन के अंत में, आत्मा पुनर्जन्म के चक्र में न फंसे।
आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता: आज की दुनिया में, शारीरिक बनावट, भौतिक संपत्ति और इंद्रिय सुखों पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता है। यह शब्द उस जुनून का एक शक्तिशाली तोड़ है। यह हमें अपने अस्थायी, भौतिक स्वरूप के बजाय अपने आंतरिक, शाश्वत स्व से पहचान करना सिखाता है। यह दृष्टिकोण उम्र बढ़ने, मृत्यु और भौतिक हानि के बारे में चिंता को कम करने में मदद करता है। यह हमें केवल नश्वर शरीर और उसकी इच्छाओं में निवेश करने के बजाय आध्यात्मिक और नैतिक विकास—आत्मा के गुणों—में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस वैराग्य का अभ्यास करने से स्थायी शांति और निर्भयता प्राप्त होती है।
मारवाड़ी: दूसरो शब्द है, “ॐ मोरे छायान माया, लोह न मांसु। न तेस रकत न रूपु, न तेस भूख न प्यासु।” इण रो मतलब है, “मारो असली रूप एक परछाई री माया है; इण में न खून है अर न मांस। इण रो न कोई खून है, न कोई रूप, अर न इने भूख लागे अर न तिस।“
आ सीख आपां ने नश्वर शरीर अर हमेशा रहवण वाळी आत्मा रे बीच रो फरक बतावे है। ओ शरीर, जिने आपां देखां हां अर महसूस करां हां, ओ तो पांच तत्वां सूं बण्योड़ो एक टेम रो बर्तन है। इने भूख, तिस अर बुढ़ापो आवे है। पण, आपां रो असली रूप—आत्मा—बिना कोई रूप रो, बिना कोई समय रो है, अर उण पर इण शारीरिक चीजां रो कोई असर कोनी पड़े। शब्द आगे कहवे है के ओ शरीर, जिको पाणी अर हवा (पांच तत्व) सूं बण्योड़ो है, एक दिन खतम हो जावेला। इण वास्ते, भगवान (विष्णु) रो नाम लेवणो चाईजे ताकि जीवन रे आखिर में, आत्मा वापस जनम-मरण रे फेरा में न फँसे।
आज रे जीवन में महत्व: आज री दुनिया में, लोग बाहरी दिखावा, धन-दौलत अर सुख-सुविधा माथे घणो ध्यान देवे है। ओ शब्द उण दीवानगी री एक अचूक दवा है। ओ आपां ने सिखावे है के आपां खुद ने ओ टेम रो शरीर समझण रे बजाय, आपणी भीतरी, अमर आत्मा सूं ओळखाणां। आ सोच बुढ़ापा, मौत अर धन-दौलत रे नुकसान री चिंता ने कम करे है। आ आपां ने सिर्फ नाशवान शरीर अर उणरी इच्छावां पर ध्यान देवण रे बजाय, आध्यात्मिक अर नैतिक विकास—आत्मा रा गुणां—माथे जोर देवण सारू प्रोत्साहित करे है। इण वैराग्य ने अपनावण सूं साची शांति अर निडरता मिले है।