🌺 जाम्भाणी संत सूक्ति 🌺
परमानन्दजी वणियाल विष वेली अपणै कर वाहै,इम्रत फल कैसे पाई।करै जका लेखा हरि मांगै,जदि जीवड़ो पछताई भावार्थ अपने हाथ से जहर की बेल बोई है तो उसके अमृत फल कहां से लगेंगे।जीवन भर पापकर्मों में रत रहने के बाद मरणोपरांत सद्गति की इच्छा करना बेकार है।किये हुए कर्मों का हिसाब जब भगवान लेता है तो पापी जीव बहुत पछताता है।