

सबद-33 ओ३म् कवण न हुवा कवण न होयसी, किण न सह्या दुख भारूं।
ओ३म् कवण न हुवा कवण न होयसी, किण न सह्या दुख भारूं। भावार्थ- कौन इस संसार में नहीं हुआ तथा कौन फिर आगे नहीं होंगे अर्थात् बड़े बड़े धुरन्धर राजा, तपस्वी, योगी, कर्मठ इस संसार में हो चुके हैं और भी भविष्य में भी होने वाले है। इनमें से किसने भारी दुख सहन नहीं किया अर्थात् ये सभी लोग दुख में ही पल कर बड़े हुए है तथा जीवन को तपाकर कंचनमय बनाया है। दुखों को सहन करके भी कीर्ति…