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Lil na laawe

निवण प्रणाम जी👏29-“लील न ला वै अंग देखत दूर ही भागे”इस नियम के दो अर्थ निकाले जा रहे हैं।लील-खत्म हुआ,मरा हुआ,मासलील-नीला वस्त्रमास खाने वालो के लिए नरक का दरवाजा खुला रहता है।व्यक्ति जिस प्राणी के मांस को खाता है, वे जीवन भर नरकगामी जीवन जीते हैं।सभी जीवों का जीने का हक है इसलिए किसी भी जीव की हत्या नही करनी चाहिए।जो आत्मसुख के लिए अहिसंक जीवो का वध करता है वह इस लोक व परलोक में कही सुखी नही रहता…

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होम हित चित प्रीत सूं होय बास बैकुण्ठा पावो

श्री गुरु जम्भेश्वरजी ने मूर्ति पूजा के स्थान पर नित्य हवन करने का उपदेश दिया है।सनातन धर्म के मूल वेद है और उनमें यज्ञ का ही विधान निर्धारित किया गया है।सभी के हित के लिए सचेत होकर प्रेम से हवन करो।उसका फल मुक्ति पद की प्राप्ति का होगा।केवल हवन करना ही पर्याप्त नही है हवन के साथ साथ हित, चित और प्रीत की भावना भी जुड़ी हुई होनी चाहिए।ऐसी पवित्र भावना द्वारा किया हुआ कर्तव्य कर्म कभी भी बंधन में…

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पाणी बाणी ईधनी दूध,इतना लीजै छाण

अग्नि में जलाई जाने वाली लकड़ी को देखकर ही प्रयोग में लेनी चाहिए कही लकड़ी की छाल में कीड़े आदि जीव तो नही है ?दीमक आदि से युक्त लकड़ी को प्रायः प्रयोग में नही लेना चाहिए।थेपड़ियो व कण्डे आदि भी जीव रहित हो,ऐसा निश्चय होने पर ही अग्रि में डाले जाने चाहिए।दूध भी कपड़े से छानकर प्रयोग में लाना चाहिए।आजकल प्रायः प्लास्टिक की छलनी से दूध छानकर प्रयोग में लेने का प्रचलन हो गया है, जो उचित नही है।सूती कपड़े…

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क्षमा दया हिरदै धरो,गुरु बतायो जाण

क्षमा करने का वास्तविक अर्थ यह है कि हम किसी को बदले की भावना से दुःखी न करें।श्री गुरुजाम्भो जी एक सबद में कहते हैं –“जै कोई आवै हो हो करता आप ज होइये पाणी”–अर्थात अगर कोई क्रोधवश आग-बबूला होकर आता है तो आप क्षमाशील हो जाओ।अगर आपकी किसी के साथ अनबन हो गई है या हो जाये तो सामने वाले के पास जाकर उससे क्षमा याचना करते हुए सुलह कर लेनी चाहिए, यही मानवता है।विपत्ति काल मे धैर्य धारण…

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दया

दया का उल्लेख श्रीगुरु जाम्भोजी ने सबदवाणी में अनेक बार किया है।दया को बहुत महत्वपूर्ण मानते हुए उसके पालन का उपदेश दिया है।दया धर्म का पालन परमात्म-प्राप्ति का एक सुगम साधन है।दया एक सात्विक वृति है, वह समता की मूल है।दयाभाव ह्रदय की उदारता का धोतक ओर भेदभाव का भेदक है।एक प्रकार से दया शील का ही अंग है।दया से शरीरस्थ आत्मा बिम्ब रूप में स्पष्ठ होने लगती है।जहाँ दया, प्रेम नही वहा सभी कार्य उल्टे है।जीवदया-पालन एक धार्मिक नियम…

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चोरी नींदा झूठ बरजियो वाद न करणो कोय

ऐसा कहकर आखड़ी में तेहरवें,चौदहवें,पन्द्रह व सोहलवे नियम का संकेत किया गया है।चोरी नही करनी चाहिए।मनुष्य जिस धन पर लोक-मर्यादा व धर्म -मर्यादा को छोड़कर अधिकार करता है-वह धन उसके पुण्य हरण करता है तथा बुद्धि का नाश करता है।जो मनुष्य पराये धन को मिट्टी के ढेले के समान तुच्छ समझता है वह मनुष्य सच्चे अर्थों में वैष्णव है।पराये धन की चोरी के समान ही समय,वचन व परिश्रम की चोरी भी हानिकारक होती है।परिश्रम से जी चुराकर चालाकी से पैसा…

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नींदा न करना

अपने अवगुणों को छिपाकर दूसरो के अवगुणों को प्रगट करने को सामान्य रूप से नींदा कहा जाता हैं।ऐसे लोगो का यह कर्तव्य कर्म ही हो जाता है कि वह दूसरों के गुणों को छिपाकर केवल उनके अवगुणों को ही चिंतन मनन करता है।इससे उनके दुर्गुण मिट तो नही जाते किंतु व्यक्ति जैसा चिंतन करता है वह स्वभाव में उसके आ जाता है,वैसा ही उसका जीवन बन जाता है।“परनींदा पापा सिरै भूल उठावै भार”-दुसरो की निदा करना शिरोमणि पाप है।मूर्ख लोग…

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झूठ नही बोलना चाहिए

सत्य बोलना ही सभी धर्मों का मूल है, सत्य पर ही सम्पूर्ण पृथ्वी टिकी हुई है।सत्य से ही सम्पूर्ण संसार का व्यवहार चलता है।जिन लोगो ने सत्य धर्म का पालन किया है, उनकी ही महिमा आधपर्यन्त गायी जाती है वे ही सम्मानीय महापुरुष है।” सत्यमेव जयते “सदा सत्य से ही विजय होती है।धर्म का आचरण सत्य बोलने से ही है।सत्य से बढ़कर कोई धर्म नही है और झूठ से बढ़कर कोई पाप नही है।सत्य से बढ़कर कोई ज्ञान नही है।अतः…

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वाद-विवाद नहीं करना चाहिए

व्यर्थ का वाद-विवाद नही करना चाहिए।कुछ लोग ऐसे विचार रखते हैं कि सामने वाले को अपनी वाक तर्क शक्ति के द्वारा किसी प्रकार से पराजित कर दिया जाय।कुछ लोग मूर्खता का परिचय देते हुए जिद्द करते है जिससे लड़ाई-झगड़ा, मनमुटाव,वैर-विरोध आदि अनेक प्रकार की बीमारियां खड़ी हो जाती है।यह व्यर्थ के विवाद के अंतर्गत होता है।हमेशा अच्छे विचार रखने चाहिए जो सामने वाले को मनमोहक बना दे।श्री गुरुजाम्भो जी कहते हैं कि –“अठगी ठगण अदगी दागण अगंजा गजण उथन नाथन…

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भजन विष्णु बतायो जोय

-परमपिता परमात्मा श्री विष्णु का ही भजन करना चाहिए।श्री गुरुजाम्भो जी स्वयं विष्णु भगवान के ही अवतार हैं।उन्होंने सतयुग में अपने भगत प्रहलाद को दिए वचन कलयुग में बारह करोड़ जीवो का उद्वार करने के लिए अवतार लिया था।अनेकानेक सन्तो ने भगतो ने नाम जप के सम्बंध में भिन्न भिन्न राय प्रकट की है।किसी ने राम नाम का जप बताया है तो किसी ने कृष्ण या शिव या अन्य कुछ बताया है।परंतु श्री गुरुजाम्भो जी ने इन्ही परंपरा से हटकर…

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जीव दया पालनी

जीवों पर दया करनी चाहिए।नित्य प्रति जीवो पर दया करना इसे सच्चा आचरण जानना चाहिए।शरीर और मन को अपने वश में करके जीव दया की पालना की जावै तो यह जीवात्मा निर्वाण अर्थात मुक्ति के पद की प्राप्ति की अधिकारिणी होती है।जीव दया का वास्तविक अर्थ उनके प्रति सहानुभूति रखना है।ह्रदय में प्रत्येक प्राणी के प्रति दयाभाव रखना तथा जीव दया पालन करना चाहिए।दया एक सात्विक वृति है, वह समता की मूल है।दयाभाव ह्रदय की उदारता का धोतक है और…

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निवण प्रणाम जी आज की चर्चा( मन) को लेकर है।।

श्री गुरुजम्भेश्वर जी ने विभिन प्रसंगों में अनेक बार मन उसकी एकाग्रता और उसको बस में रखने का आदेश-उपदेश दिया है।1-सतगुरु तोड़ै मन का साला2-रे मुल्ला मन माही मसीत निवाज गुजारिये3-काया त कंथा मन जोगूंटो सिंगी सास उसासू4-दोय दिल दोय मन सीवी न कंथा( इस सबद में 14 बार दोय दिल दोय मन सबदो का उल्लेख है जिससे श्री गुरुजम्भेश्वर की एतद विषयक गम्भीरता और विषय के महत्व का पता चलता है)5-मनहट सीख न कायो6-मनहठ पढिया पिंडत, काजी मुल्ला खेलै…

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