जीव दया पालनी

जीवों पर दया करनी चाहिए।नित्य प्रति जीवो पर दया करना इसे सच्चा आचरण जानना चाहिए।शरीर और मन को अपने वश में करके जीव दया की पालना की जावै तो यह जीवात्मा निर्वाण अर्थात मुक्ति के पद की प्राप्ति की अधिकारिणी होती है।जीव दया का वास्तविक अर्थ उनके प्रति सहानुभूति रखना है।ह्रदय में प्रत्येक प्राणी के प्रति दयाभाव रखना तथा जीव दया पालन करना चाहिए।दया एक सात्विक वृति है, वह समता की मूल है।दयाभाव ह्रदय की उदारता का धोतक है और…

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निवण प्रणाम जी आज की चर्चा( मन) को लेकर है।।

श्री गुरुजम्भेश्वर जी ने विभिन प्रसंगों में अनेक बार मन उसकी एकाग्रता और उसको बस में रखने का आदेश-उपदेश दिया है।1-सतगुरु तोड़ै मन का साला2-रे मुल्ला मन माही मसीत निवाज गुजारिये3-काया त कंथा मन जोगूंटो सिंगी सास उसासू4-दोय दिल दोय मन सीवी न कंथा( इस सबद में 14 बार दोय दिल दोय मन सबदो का उल्लेख है जिससे श्री गुरुजम्भेश्वर की एतद विषयक गम्भीरता और विषय के महत्व का पता चलता है)5-मनहट सीख न कायो6-मनहठ पढिया पिंडत, काजी मुल्ला खेलै…

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बुलबुल बिश्नोई

बुलबुल बिश्नोई पुत्री अविनाश बिश्नोई पवार (राजस्थान पुलिस) साधुवाली का एयरफोर्स में फ्लाइंग अफसर में चयन होने पर  बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं  

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हरी कंकेड़ी मंडप मेड़ी जहाँ हमारा वासा: श्री गुरु जम्भेश्वर के कथन के गूढ़ वैज्ञानिक अभिप्राय

(Maytenus imarginata: The mystic tree of Bishnoism)बिश्नोई धर्मग्रंथ सबदवाणी (Sabadvani) में पृथ्वी अठारह भार वनस्पति से सुशोभित बताई गयी है एंव बिश्नोई पौराणिकी (Bishnoi Mythology) में वृक्षों की बहुत सी प्रजातियों (Species) का सन्दर्भ प्राप्त होता है. इन सभी प्रजातियों में से कंकेड़ी वृक्ष को बिश्नोइज्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है एंव यह बिश्नोइज्म के प्रथम वृक्ष (First tree of Bishnoism) के रूप में स्थापित है. बिश्नोई इतिहास, पौराणिकी एंव धर्मग्रंथों में कंकेड़ी के प्रति बिश्नोइज्म की प्रगाढ़ श्रद्धा के…

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सुगरा-नुगरा

अनादि काल से गुरु प्रथा चली आ रही है।परंतु हम बहुत ज्यादा परम्परावादी व अंधविश्वासी बन गये है अतः इस प्रथा का दुरुपयोग भी बहुत होता आया है।विभिन्न सम्प्रदायों में गुरु धारण करने की प्रथा है इसमें जनता को इतना भयभीत किया जाता है कि गुरु धारण किये बिना यह मानव जीवन व्यर्थ है।अतः पाखंडी,धुर्त, दंभी,दुराचारी,भोगी मनुष्य भी स्वार्थ सिद्धि के लिए गुरु गद्दी पर बैठ जाते हैं और लोगो को पतन की और ले जाते हैं।वे खुद तो डूबते…

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कवि केशो जी देहड़ू

जीवन काल 1500-1580 अनुमानित हैं ये हजूरी कवि थे।इनकी एक मात्र ही साखी मिलती है।राग सुहब में गेय कणा की साखी है।इसे जुमलै की तीसरी साखी के रूप में मान्यता प्राप्त है।आवो मिलो जुमलै जुलो,सिंवरो सिरजणहारसतगुरु सतपंथ चालिया,खरतर खण्डाधारजम्भेश्वर जिभिया जपो,भीतर छोड़ विकारसम्पति सिरजणहार की,विधिसू सुणो विचारअवसर ढील न कीजिये,भले न लाभे वारजमराजा वांसे वहै, तलबी कियो तैयारचहरी वस्तु न चाखिये, उर पर तंज अंहकारबाड़े हूंता बिछड़ा जारी,सतगुरु करसी सारसेरी सिवरण प्राणीया, अंतर बड़ो अधारपर निंदा पापां सीरे, भूल उठावै…

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निवण प्रणाम जी👏👏

निवण प्रणाम बिश्नोई समाज की मूल अभिवादन प्रणाली है।प्रतिवचन में “जाम्भोजी नै या गुरु महाराज नै विसन भगवान नै या नारायण नै”कहा जाता है।“नै” का अर्थ ‘को’ है -श्री गुरुजाम्भो जी को विसन को आदि।।निवण प्रणाम में नम्रतायुक्त,पूज्यभाव सर्वोपरि है।इसके अंतर्गत विन्रमता, श्रद्धा, अंहकार शून्यता,स्वयं को छोटा और प्रतिवचन कर्ता को बड़ा समझना,आदर और आत्मैक्य -ये सभी भाव मिले-जुले रूप में प्रकट होते हैं।इसकी पुष्टि प्रतिवचन से होती है जिसका आशय है -ऐसे वचन तो श्री जाम्भोजी, गुरु महाराज और…

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संगीतमय शब्दवाणी (1-30) || Sangeetmay shabdvani (शब्दों के साथ)

साखी सम्राट गायक रवि सोढ़ा जैसलां, जिला जोधपुर राजस्थान 7727991652 पूनम सिवर , गांव बांड , जिला बाड़मेर राजस्थान इन शब्दों की dhun रवि सोढ़ा जैसलां ही बनाई थी बीकानेर के स्टूडियो में रिकॉर्डिंग किया था प्रदीप जी गुप्ता का इसमें संगीत दिया हुआ है और प्रदीप जी के स्टूडियो से ही यह रिकॉर्डिंग की थी महावीर जी पत्रकार श्री बालाजी ने हमसे रिकॉर्डिंग करवाई थी

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Bishnoi

Protectors of nature, guardians of life

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