हमको भजनलाल जैसा एक बार और दे
घनशयाम तवर लीलस, भिवानी जननी जने तो ऐसा जने या दाता या सूर। नहीं तो जननी बांझ रहे काहे गंवाये नूर॥ यह दोहा बहुत पुराना हो चुका है व न जाने कितने लोगों के लिए प्रयुक्त भी हो चुका है। क्या हम हमारे हीरो के लिए एक छद भी नहीं लिख सकते? जिस इंसान ने लाखों लोगों के लिए रोजी-रोटी लिखी, उनकी भावी पीढ़ियों के भविष्य का सुनिश्चित होना भी लिख दिया होपूत विलक्षण विरला, माता सदियों में जन पाती…