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ताराचंद खिचड़ वरिष्ठ उपाध्यक्ष, अ.भा. बिश्नोई महासभा, मुकाम
चला लक्ष्मीश्च चलाः प्राणाश्चलं जीवितयौवनम्॥ चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः॥
यह संसार परिवर्तनशील व चलायमान है। लक्ष्मी, जीवन व युवावस्था सब कुछ अस्थिर है। इस जगत में चलाचली लगी रहती है। केवल धर्म ही एक ऐसा कर्म है जो निश्चल रहता है और इसके बल पर व्यक्ति अपने जीवन को सफल करने के साथ-साथ लोक कल्याण भी करता है। बिश्नोई रत्न चौधरी भजनलाल जी इस तथ्य को बखूबी समझते थे इसलिए वे धार्मिकों में राजनीतिज्ञ और राजनेताओं के मध्य धार्मिक थे। आज के युग में राजनीति व धर्म को साथ-साथ निभाना किसी चमत्कार से कम नहीं है। चौधरी भजनलाल दैवीय अनुकपा से आजीवन यह चमत्कार करते रहे। जितनी राजनीति उनके स्वभाव में थी, धर्म उससे भी कहीं गहरा था।
चौधरी भजनलाल मानवधर्म के प्रतिपालक थे। ईश्वर अराधना व पूजा पाठ के साथ-साथ आम आदमी की आस्था का ख्याल सदैव उनके ख्याल में रहता था। उन्होंने आजीवन धार्मिक समरसता व समन्वयता का परिचय दिया। प्राचीन राजाओं के अनेक वृतान्त मिलते हैं कि उन्होंने मंदिरों व धर्मशालाओं का प्राथमिकता के आधार पर निर्माण करवाया था, परन्तु वर्तमान काल में तो केवल एक ही राजा हुआ है जिसने प्राथमिकता के आधार पर मंदिर व धर्मशालाएं बनवाई थी और वे थे बिश्नोई रत्नचौधरी भजनलालजी। अपने मुख्यमंत्रीत्व काल में विभिन्न धर्मों के धार्मिक स्थलों हेतु भूमि व अनुदान वे अपना कर्तव्य मानकर देते थे। इस कार्य में उन्होंने कभी कोई जाति-धर्म का भेदभाव नहीं किया था। प्रथम बार मुख्यमंत्री बनकर हिसार आने पर उन्होंने समाज की सेवा करने वाले वाल्मिकी भाइयों का वेतन दुगना कर दिया था वजाट समाजको हिसार के हृदय स्थल पर धर्मशाला निर्माण हेतु सरकारी भूमि दान दी थी। आज हरियाणा में कोई भी जाति या धर्म-सम्प्रदाय ऐसा नहीं है जो यह कह सके कि हमें चौधरी भजनलाल जी ने मंदिर या धर्मशाला निर्माण हेतु भूमि या अनुदान नहीं दिया था।
चौधरी भजनलाल जी जितनी रूचि मंदिरों के निर्माण में लेते थे उतनी ही रूचि धर्मशालाओं के निर्माण में भी लेते थे क्योंकि उनकी दृष्टि में सदैव आम आदमी और उसकी सुविधा रहती थी। यही मानवधर्म है, जो सबसे बड़ा है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि बिश्नोई धर्म व समाज के तो वे ध्वज धारक ही थे। पारिवारिक परम्परा में ही उन्हें गुरु जांभो जी के प्रति अपार श्रद्धा व बिश्नोई समाज के प्रति अगाध प्रेम मिला था। ज्यों-ज्यों वे राजनीति में उच्च सोपानों पर चढ़ते गये उनकी यह श्रद्धा व प्रेम बढ़ता ही गया। स्थान-स्थान पर उनके सहयोग से निर्मित गुरु जम्भेश्वर भगवान के मंदिर व बिश्नोई धर्मशालाएं उनके समाज प्रेम के प्रमाण-पत्र हैं। मुक्तिधाम मुकाम का भव्य मंदिर उनके उन्मुक्त सहयोग से पूरा हो सका था। जब मंदिर का निर्माण कार्य आरम्भ हुआ था तो अनुमानित लागत को देखकर सभी चिंतित थे। पंचसदी समारोह के समापान पर जब चौधरी भजनलाल जी को बिश्नोई रत्न की उपाधि से अलंकृत किया गया तो उन्होंने समाज को आश्वस्त किया था कि भव्य से भव्य मंदिर बनाइए धन की चिंता मत कीजिए। विशाल व भव्य समाधि मंदिर में उन्होंने स्वयं भी मुक्त हस्त दान दिया व औरों को भी प्रेरित किया था। इस मंदिर के जीणोद्धार से एक नई परम्परा शुरू हुई और एक चेतना जागृत हुई तथा समाज में गांव-गांव, शहर-शहर मन्दिर व
धर्मशालाएँ बनने लगी इसका श्रेय चौधरी भजनलालजी को जाता है।
पूरे समाज की हार्दिक इच्छा थी कि भारत की राजधानी दिल्ली में हमारी भी धर्मशाला हो। समाज ने यह इच्छा तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल जी के सामने रखी। चौधरी साहब ने केन्द्र सरकार से दिल्ली के हृदय स्थल सिविल लाईन में जगह अलॉट करवाई। अक्तूबर, 1984 में जब उसकी रजिस्ट्री हेतु चंदे की बात आई तो चौधरी साहब दिवाली पर आदमपुर आये हुए थे। उनके आहवान पर एक घंटे में ही 6.5 लाख रुपये चंदा इकट्ठा हो गया। सभी उपस्थितजन यह चाहते थे कि उक्त जगह की रजिस्ट्री बिश्नोई सभा, हिसार के नाम करवाई जाये परन्तु चौधरी साहब का हृदय व विजन बड़ा विशाल था। वे पूरे समाज को एक इकाई के रूप में देखते थे, इसलिए उन्होंने आदेश दिया कि उक्त जगह की रजिस्ट्री अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के नाम करवाई जाये। उसी स्थान पर उन्होंने तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन से गुरु जम्भेश्वर संस्थान भवन का शिलान्यास करवाया, जो पूरे समाज के लिए अत्यन्त ही गौरव का क्षण था। इस अत्यन्त ही भव्य व आधुनिक भवन के निर्माण में चौधरी साहब का आर्थिक सहयोग वप्रेरणा उल्लेखनीय रही।
मुक्तिधाम मुकाम एवं दिल्ली के अतिरिक्त भी उन्होंने पंचक्ला, डबवाली, टोहाना, कुरुक्षेत्र आदि अनेक स्थानों पर बिश्नोई मंदिर व धर्मशालाएं बनाने में यथासामथ्र्य सहयोग दिया था। हरियाणा से बाहर भी वे सामाजिक व धार्मिक कार्यक्रमों में रूचिपूर्वक भाग लेते थे। मंदिरों एवं धर्मशालाओं के निर्माण के साथ-साथ सामाजिक समरसता में भी उनकी बहुत बड़ी भूमिका थी। वे सही अर्थों में सामाजिक नेता थे। लोगों के बीच में रहना उन्हें पसंद था। पूरे समाज को एक परिवार के रूप में देखना उनका बड़प्पन था। समाज ने भी उन्हें सदैव सिर-आंखों पर बैठाया था तथा अपना मुखिया माना था। चौधरी साहब ने भी एक मुखिया की भांति पूरे समाज का हित बिना किसी भेदभाव के किया था।
28 से 30 अक्तूबर, 2010 को बिश्नोई धर्म के 525 वर्ष पूरे होने पर मुकाम में रजत जयंती समारोह का आयोजन किया गया। चौधरी भजनलाल जी वृद्धावस्था में अस्वस्थ होते हुए भी 30 अक्तूबर को समापन समारोह में पहुंचे व मुकाम से संभराथल तक निकाली गई शोभायात्रा का नेतृत्व किया। पाठक स्वयं ही अनुमान करे कि समाज से उन्हें कितना प्रेम था। अतिशयोक्ति नहीं वास्तविकता है कि बिश्नोई रत्न चौधरी भजनलाल जी के उपकारों को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता व बिश्नोई समाज उन्हें कभी भूलेगा नहीं। शतशत नमन।
ताराचंद खिचड़
वरिष्ठ उपाध्यक्ष, अ.भा. बिश्नोई महासभा, मुकाम
गांव झलनिया, फतेहाबाद
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