जाम्भाणी संत सूक्ति
“सत सीतां जत लखमंणां, सबळाई हंणवंत। जे आ सीत न जावही, अै गुंण मांहि गळंत।। -(मेहोजी गोदारा थापन) -भावार्थ-‘सीता का हरण होने पर ही उनके सतीत्व,लक्ष्मण के जतीपने और हनुमान के बल-पराक्रम का संसार को पता चला अन्यथा तो ये…
Protectors of nature, guardians of life.
Protectors of nature, guardians of life.
“सत सीतां जत लखमंणां, सबळाई हंणवंत। जे आ सीत न जावही, अै गुंण मांहि गळंत।। -(मेहोजी गोदारा थापन) -भावार्थ-‘सीता का हरण होने पर ही उनके सतीत्व,लक्ष्मण के जतीपने और हनुमान के बल-पराक्रम का संसार को पता चला अन्यथा तो ये…
“मरते पावै पीव कूं, जीवंत वंचै काल। नीरभै हरि नाम ले, दोनों हाथ दयाल। -(परमानन्दजी वणियाल) -भावार्थ-‘ भगवान का नाम जीव के लोक और परलोक दोनों संवारता है, जीवित रहते संकटों से रक्षा करता है और मरने के बाद भगवान…
” कै हरि की चरचा कर, कै हरि हिरदै नाम। प्रीतम पल न वीसारिया, चलता करता काम। -(परमानन्दजी वणियाल) -भावार्थ-‘ उत्तम संग मिले तो व्यक्ति भगवदचर्चा करे अथवा तो एकान्त में भगवद् स्मरण करे। अपने कर्तव्यों का पालन करने के…
“बाल तरण अर व्रधपणा, हेत करे हरि ध्याय। जब लग सांस सरीर मां, हरख्य हरख्य गुण गाय। -(परमानन्दजी वणियाल) -भावार्थ-‘ जब तक इस नश्वर शरीर में श्वास चल रही है, बाल, युवा या वृद्ध कोई भी अवस्था हो प्रेम पूर्वक…
“मान बड़ाई तेज धन, तन जाव शरम लाज। भगति मुगति अर ग्यान ध्यान, एते नै जावै भाज। नर नारी कारण नहीं, जांकै अंतरि काम। कामी कदै न हरि भजै, निसदिन आठोंजाम। -(परमानन्दजी वणियाल) -भावार्थ-‘ मान-सम्मान,तेज,धन,तन, लज्जा, भक्तिभावना, मुक्तिकामना, ज्ञान, ध्यान…
“तां मेली करतार, जहां धरम का नहीं धोखा। तां मेली करतार, साध मोमण दिल चोखा। सती संतोषी सीलवंत, सद पूछै पर वेदना। विसन भगत उदो कह, तां मेली मदसूदना। -(उदोजी नैण) -भावार्थ-‘ जहां धर्म के नाम पर धोखा नहीं है,…
“पुत्र विना नहीं वंस, नहीं तया विन गेह। नीत विनां नहीं राज, प्राण विना नहीं देह। धीरज विना नहीं ध्यान, भाव विन भगति न होय, गुरु विना नहीं ज्ञान, जोग विन जुगति न कोय। संतोष विना कहूं सुख नहीं, कोट…
” लाय बुझावण नै मन हुवो, तदे घर जल खैणावै कुवो। उत में लोग हंसै जग जोय, घर जलता कुवो कदि होय। -(केसोजी) -भावार्थ-‘ समय बितने पर किया गया कार्य उसी प्रकार व्यर्थ है जैसे कोई घर में लगी आग…
” पारब्रह्म से सुं हुइ पिछाण्य, निरभै होय भेंट निरवाण। पाठ पढूं परसण होय पीव, आवागवण न आवै जीव। -(केसोजी) -भावार्थ-‘साधक को जब परमतत्व की पहचान हो जाती है तो वह मुक्ति प्राप्ति का अधिकारी हो जाता है।उसे परमात्मा के…
” साध कहै कांनै सुंणौ, अन्तर की अरदास। महे मंडल्य मारै कंवण, परमेसर मो पास। -(केसोजी) -भावार्थ-‘ सच्चा साधक जब अनन्य भाव से आर्त होकर प्रार्थना करता है तो परमात्मा उसकी पुकार को सुनकर उसे अपना संरक्षण प्रदान करता है।जगत…
” डूंगरिया रा बादला, ओछा तणां सनेह। बहता बहै उतावला, अंत दिखावै छेह। -(पदमजी) -भावार्थ-‘ छोटी पहाड़ी पर दिखाई देने वाला बादल और घटिया आदमी द्वारा प्रदर्शित प्रेम क्षणिक होता है, कब गायब हो जाए पता ही नहीं चलता। (जम्भदास)
” व्याह वैर अरू प्रीत राजा, बरोबर से कीजिए। जात योग्य सुजान सुंदर, जाय सगपन कीजिए। -(पदमजी) -भावार्थ-‘ विवाह, दुश्मनी और प्रेम समान अवस्था वालों के साथ ही निभता है। लड़के-लड़की का रिश्ता करते समय यह अवश्य देखें की वह…