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शब्द -25 ओ३म् राज न भूलीलो राजेन्द्र, दुनी न बंधै मेरूं। पवणा झोलै बिखर जैला, धुंवर तणा जै लोरूं।

ओ३म् राज न भूलीलो राजेन्द्र, दुनी न बंधै मेरूं। पवणा झोलै बिखर जैला, धुंवर तणा जै लोरूं। भावार्थ- हे राजेन्द्र!इस राज्य की चकाचौंध में अपने को मत भूल। अपने स्वरूप की विस्मृति तुझे बहुत ही धोखा देगी तथा दुनिया मेरी…

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सबद-26 ओ३म् घण तण जीम्या को गुण नांही, मल भरिया भण्डारूं। आगे पीछे माटी झूलै, भूला बहैज भारूं।

ओ३म् घण तण जीम्या को गुण नांही, मल भरिया भण्डारूं। आगे पीछे माटी झूलै, भूला बहैज भारूं। भावार्थ- यह जमात का महंत अध्धिक भोजन खाने से मोटा-स्थूल हो गया है। किन्तु अधिक खाकर मोटा होने में कोई गुण नहीं है।…

Read Moreसबद-26 ओ३म् घण तण जीम्या को गुण नांही, मल भरिया भण्डारूं। आगे पीछे माटी झूलै, भूला बहैज भारूं।
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सबद-27 ओ३म् पढ़ कागल वेदूं, शास्त्र शब्दूं, पढ़ सुन रहिया कछू न लहिया। नुगरा उमग्या काठ पखाणों,कागल पोथा ना कुछ थोथा,ना कुछ गाया गीयूं |

ओ३म् पढ़ कागल वेदूं, शास्त्र शब्दूं, पढ़ सुन रहिया कछू न लहिया। नुगरा उमग्या काठ पखाणों,कागल पोथा ना कुछ थोथा,ना कुछ गाया गीयूं | भावार्थ- कागज द्वारा निर्मित वेद, शास्त्र और संत-महापुरूषों के शब्दों को आप लोगों ने पढ़ा है…

Read Moreसबद-27 ओ३म् पढ़ कागल वेदूं, शास्त्र शब्दूं, पढ़ सुन रहिया कछू न लहिया। नुगरा उमग्या काठ पखाणों,कागल पोथा ना कुछ थोथा,ना कुछ गाया गीयूं |
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शब्द नंबर 28 मच्छी मच्छ फिरै जल भीतर

मच्छी मच्छ फिरै जल भीतर शेख मनोहर ने जाम्भोजी से पूछा कि -आप मुरीद,पीर,गुरु और देव इनमें से क्या है?क्या आत्मा को जीव कहना अनुचित है? शेख की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने उसे यह शब्द कहा:- ओउम मच्छी मच्छ…

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Jambhguru samadhi

सबद-29 (इलोल सागर) ओ३म् गुरु के शब्द असंख्य प्रबोधी, खार समंद परीलो। खार समंद परै परै रे, चैखण्ड खारूं, पहला अन्त न पारूं। 

ओ३म् गुरु के शब्द असंख्य प्रबोधी, खार समंद परीलो। खार समंद परै परै रे, चैखण्ड खारूं, पहला अन्त न पारूं।  भावार्थ-‘‘स तु सर्वेषां गुरु कालेनानवच्छेदात्‘‘ ‘योग दर्शन‘ वह परम पिता परमात्मा ही सभी का गुरु है तथा काल से परे…

Read Moreसबद-29 (इलोल सागर) ओ३म् गुरु के शब्द असंख्य प्रबोधी, खार समंद परीलो। खार समंद परै परै रे, चैखण्ड खारूं, पहला अन्त न पारूं। 
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सबद-30 (कूंचीवाला) ओ३म् आयो हंकारो जीवड़ो बुलायो, कह जीवड़ा के करण कमायो। थर हर कंपै जीवड़ो डोलै, उत माई पीव न कोई बोलै।

ओ३म् आयो हंकारो जीवड़ो बुलायो, कह जीवड़ा के करण कमायो। थर हर कंपै जीवड़ो डोलै, उत माई पीव न कोई बोलै। भावार्थ-मृत्युकाल रूपी हंकारो जब आता है तो इस जीव को शरीर से बाहर बुला लेता है। आगे स्वर्ग या…

Read Moreसबद-30 (कूंचीवाला) ओ३म् आयो हंकारो जीवड़ो बुलायो, कह जीवड़ा के करण कमायो। थर हर कंपै जीवड़ो डोलै, उत माई पीव न कोई बोलै।
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सबद-31 ओ३म् भल मूल सींचो रे प्राणी, ज्यूं का भल बुद्धि पावै। जामण मरण भव काल जु चूकै, तो आवागवण न आवै। भल मूल सींचो रे प्राणी, ज्यूं तरवर मेल्हत डालूं।

ओ३म् भल मूल सींचो रे प्राणी, ज्यूं का भल बुद्धि पावै। जामण मरण भव काल जु चूकै, तो आवागवण न आवै। भल मूल सींचो रे प्राणी, ज्यूं तरवर मेल्हत डालूं। भावार्थ- -हे प्राणी!इन कल्पित भूत , प्रेत, देवी,देवता को छोड़कर…

Read Moreसबद-31 ओ३म् भल मूल सींचो रे प्राणी, ज्यूं का भल बुद्धि पावै। जामण मरण भव काल जु चूकै, तो आवागवण न आवै। भल मूल सींचो रे प्राणी, ज्यूं तरवर मेल्हत डालूं।
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सबद-32 ओ३म् कोड़ गऊ जे तीरथ दानों, पंच लाख तुरंगम दानों। कण कंचन पाट पटंबर दानों, गज गेंवर हस्ती अति बल दानों।

ओ३म् कोड़ गऊ जे तीरथ दानों, पंच लाख तुरंगम दानों। कण कंचन पाट पटंबर दानों, गज गेंवर हस्ती अति बल दानों। भावार्थ- यदि कोई तीर्थों में जाकर करोड़ों गउवों का दान कर दे तथा किसी अधिकारी अनधिकारी को पांच लाख…

Read Moreसबद-32 ओ३म् कोड़ गऊ जे तीरथ दानों, पंच लाख तुरंगम दानों। कण कंचन पाट पटंबर दानों, गज गेंवर हस्ती अति बल दानों।
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सबद-33 ओ३म् कवण न हुवा कवण न होयसी, किण न सह्या दुख भारूं।

ओ३म् कवण न हुवा कवण न होयसी, किण न सह्या दुख भारूं। भावार्थ- कौन इस संसार में नहीं हुआ तथा कौन फिर आगे नहीं होंगे अर्थात् बड़े बड़े धुरन्धर राजा, तपस्वी, योगी, कर्मठ इस संसार में हो चुके हैं और…

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सबद-34 ओ३म् फुंरण फुंहारे कृष्णी माया, घण बरसंता सरवर नीरे। तिरी तिरन्तै तीर, जे तिस मरै तो मरियो।

ओ३म् फुंरण फुंहारे कृष्णी माया, घण बरसंता सरवर नीरे। तिरी तिरन्तै तीर, जे तिस मरै तो मरियो।  भावार्थ – भगवान श्री कृष्ण की त्रिगुणात्मिका माया फुंहारों के रूप में वर्षा को कहीं अधिक तो कहीं कम बरसाती है। जिससे तालाब…

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सबद-35 : ओ३म् बल बल भणत व्यासूं, नाना अगम न आसूं, नाना उदक उदासूं। 

ओ३म् बल बल भणत व्यासूं, नाना अगम न आसूं, नाना उदक उदासूं।  भावार्थ- वेद में जो बात कही है वह सभी कुछ व्यवहार से सत्य सिद्ध नहीं होते हुए भी उस समय जब कथन हुआ था तब तो सत्य ही…

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सबद-36 : ओ३म् काजी कथै कुराणों, न चीन्हों फरमांणों, काफर थूल भयाणों।

ओ३म् काजी कथै कुराणों, न चीन्हों फरमांणों, काफर थूल भयाणों।  भावार्थ- काजी लोग तो केवल कुरान का पाठ करना तथा कहना ही जानते हैं पर उपदेश कुशल ही होते हैं। जो पर उपदेश देने में रस लेगा वह उसे धारण…

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