सबद-13 :: ओ३म् कांय रे मुरखा तै जन्म गुमायो, भुंय भारी ले भारूं।

ओ३म् कांय रे मुरखा तै जन्म गुमायो, भुंय भारी ले भारूं। भावार्थ- रे मूर्ख! तुमने इस अमूल्य मानव जीवन को व्यर्थ में ही व्यतीत क्यों कर दिया। यह तुम्हारे हाथ से निकल गया तो फिर लौटकर नहीं आयेगा। इस संसार…

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सबद-14 : ओ३म् मोरा उपख्यान वेदूं कण तत भेदूं, शास्त्रे पुस्तके लिखणा न जाई। मेरा शब्द खोजो, ज्यूं शब्दे शब्द समाई।

दोहा‘‘ फेर जाट यों बोलियो, जाम्भेजी सूं भेव। वेद तंणां भेद बताय द्यो, ज्यों मिटै सर्व ही खेद। तेहरवां शब्द श्रवण करके फिर वह जाट कहने लगा कि हे देव! वेदों के बारे में मैने बहुत ही महिमा सुनी है।…

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सबद-15 ओ३म् सुरमां लेणां झीणा शब्दूं, म्हे भूल न भाख्या थूलूं।

‘‘दोहा‘‘ जाट कहै सुण देवजी, सत्य कहो छौ बात। झूठ कपट की वासना, दूर करो निज तात। इन उपर्युक्त दोनों सबदों को श्रवण करके वह जाट काफी नम्र हुआ और कहने लगा- हे तात! आपने जो कुछ भी कहा सो…

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सबद-16 : ओ३म् लोहे हूंता कंचन घड़ियो, घड़ियो ठाम सु ठाऊं। जाटा हूंता पात करीलूं, यह कृष्ण चरित परिवाणों।

ओ३म् लोहे हूंता कंचन घड़ियो, घड़ियो ठाम सु ठाऊं। जाटा हूंता पात करीलूं, यह कृष्ण चरित परिवाणों।  भावार्थ- प्रारम्भिक अवस्था में सोना भी लोहा जैसा ही विकार सहित होता है। खानों से निकालकर उसे अग्नि के संयोग से तपाकर विकार…

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सबद-17 : ओ३म् मोरै सहजे सुन्दर लोतर बाणी, ऐसो भयो मन ज्ञानी।

‘दोहा‘‘ जाट परच पाऐ लग्यो, हृदय आई शांत। सतगुरु साहब एक है, गई हृदय की भ्रान्त। प्रसंग दोहा विश्नोईयां ने आयके, इक बूझण लागो जाट। जाम्भोजी के अस्त्री है, ओके म्हासूं घाट। विश्नोई यूं बोलियां, नहीं लुगाई कोई। निराहारी निराकार…

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सबद-18 ओ३म् जां कुछ जां कुछ जां कुछू न जांणी,नां कुछ नां कुछ तां कुछ जांणी। 

ओ३म् जां कुछ जां कुछ जां कुछू न जांणी,नां कुछ नां कुछ तां कुछ जांणी।  भावार्थ- जो व्यक्ति कुछ जानने का दावा करता है अपने ही मुख से अपनी ही महिमा का बखान करता है। वह कुछ भी नहीं जानता,…

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शब्द – 19 ओ३म् रूप अरूप रमूं पिण्डे ब्रह्मण्डे, घट घट अघट रहायो।

ओ३म् रूप अरूप रमूं पिण्डे ब्रह्मण्डे, घट घट अघट रहायो। भावार्थ- रूपवान अरूपवान प्रत्येक शरीर तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में मैं ब्रह्म रूप से रमण करता हूं। दृष्ट रूप कण कण मे तथा अदृष्ट रूप कण कण में मैं सर्वत्र तिल…

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सबद-20 : ओ३म् जां जां दया न माया, तां तां बिकरम काया।

ओ३म् जां जां दया न माया, तां तां बिकरम काया। भावार्थ- जिस जिस व्यक्ति में दया भाव तथा प्रेम भाव नहीं है, उस व्यक्ति के शरीर द्वारा कभी भी शुभ कर्म तो नहीं हो सकते। सदा ही मानवता के विरूद्ध…

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सबद-21 ओ३म् जिहिं के सार असारूं, पार अपारूं, थाघ अथाघूं। उमग्या समाघूं, ते सरवर कित नीरूं।

देव दवारै चारणी, चल कै आयी एक। बाललो चाड़यो गले को, लीयो नहीं अलेख। देव कहै सुण चारणी, मेरे पहरै कोय। बेटा बहु मेरे न कछु, बाललो पहरै सोय। चारणी कहै सुण देवजी, ऊंठ दरावों मोय। घणी दूर मैं नाव…

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सबद-22 : ओ३म् लो लो रे राजिंदर रायों, बाजै बाव सुवायो। आभै अमी झुरायो, कालर करसण कियो, नैपै कछू न कीयो।

“प्रसंग-दोहा” वरसंग आय अरज करी, सतगुरु सुणियें बात।  तब ईश्वर कृपा करी, पीढ़ी उधरे सात। म्हारै एक पुत्र भयो, झाली बाण कुबाण। माटी का मृघा रचै, तानै मारै ताण। बरसिंग की नारी कहै, देव कहो कुण जीव। अपराध छिमा सतगुरु…

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सबद-23 ओ३म् साल्हिया हुवा मरण भय भागा, गाफिल मरणै घणा डरै

‘प्रसंग-8 दोहा’ विष्णु भक्त गुंणावती, रहे जूं तेली जात। विश्नोई धर्म आचरै, जम्भेश्वर किया पात। एक मृघा और तेल पे, आठ सै एक हजार। खड़े सकल वानै चढ़ै, वह्या करारी धार। थलसिर हरखे देवजी, साथरियां बूझे बात। भाग खुलै किस…

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सबद-24 ओ३म् आसण बैसण कूड़ कपटण, कोई कोई चीन्हत वोजूं वाटे। वोजूं वाटै जे नर भया, काची काया छोड़ कैलाशै गया।

: प्रसंग-9 दोहा : विश्नोवण एक आय कह्यो, आयस तणों विचार। ढ़ोसी की पहाड़ी हिलावै, ताका कहो आचार। सम्भराथल पर एक बिश्नोई स्त्री ने आकर जम्भदेवजी से कहा-कि यहां ढ़ोसी नाम की पहाड़ी पर एक योगी बैठा हुआ है। वह…

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