

Shri Guru Jambheshwar Bhagwan 120 Sabdvani
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रूंखा रा रखवाला कठे अमृता देवी कथा : सोमराज बिश्नोई सिर सांठे रुख रहे तो भी सस्तो जाण
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साँवरिये रा नाम हजार
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शब्द नं 70
हक हलालूं हक साच कृष्णों जोधपुर के राव सांतल तथा अजमेर के मल्लूखान ने गुरु जंभेश्वर महाराज से जिज्ञासा प्रकट की कि वह रास्ता कौन सा है, जिस पर चलने से नरक में न जाना पड़े,भगवान तथा खुदा के दर्शन हो एंव स्वर्ग लोक में मुक्ति का फल मिले। करुणा निधान गुरु महाराज ने भक्तों की जिज्ञासा जान यह शब्द कहा:- हक हलालूं हक साच कृष्णों सुकृत अहलयों न जाई न्याय की कमाई करो न्याय और सत्य से परमतत्व की…

विश्नोई संप्रदाय के प्रवर्तक गुरू जांभोजी एवं उनके शिष्य अलूनाथ जी कविया
सिद्ध महात्मा अलूनाथ जी कविया के पूर्वज अपने मूल स्थान बिराई को छोड़ सणला में आ बसे थे। वहाँ 1520 मे हेमराज जी के घर अलू जी का जन्म हुआ। इनकी माता के नाम आशाबाई था जो सान्दू शाखा से थी। अलू जी की पत्नी का नाम हंसा बाई था। आमेर नरेश कछवाह पृथ्वीराज के पुत्र रूप सिंह जी ने इन्हें कुचामण के पास जसराणा गाँव दिया था। जसराणा ग्राम में ही 1620 मे अलूजी ने 100 वर्ष की आयु…

आरती कीजै श्री जम्भगुरु देवा
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मोहन आवो तो सही ।। माधुरी मंदिर में मीरा अकेली खड़ी ।। सुपरहिट भजन
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शब्द न 71
धवणा धूजै पाहण पूजै जोधपुर के राव सांतल ने जाम्भोजी से जानना चाहा कि विष्णु भगवान के अलावा अन्य देवी देवताओं की पूजा अर्चना करने वालों को पुण्य फल की प्राप्ति होती है या नहीं।सांतल की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने उसे यह शब्द कहा:- धवणा धूजै पाहण पूजै बेफरमाई खुदाई हे जिज्ञासु जन! जो लोग गर्दन हिला हिला कर झूमते हुए पत्थरों की बनी मूर्तियों की पूजा करते हैं, वे अज्ञानी है। पत्थर पूजना खुदा की आज्ञा नहीं है।…

Jambheshwar Bhagwan Bhajan : Nonstop
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शब्द नं 72
वेद कुरांण कुमाया जालूं उत्तर प्रदेश के कन्नौज गांव में रहने वाले काशीदास ब्राह्मण ने गुरु जांभोजी से समराथल धोरे पर कहा कि मनुष्य जाति के चार वर्ण है और उनमें ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ है ।वह वेद पुराणों में लिखे पाप पुण्य के रहस्य को पढ़कर सुनाता है और इस प्रकार अन्य वर्ग के लोगों को जन्म मरण से छुडाता है।गुरु महाराज ने काशीदास का कथन जान उससे यह शब्द कहा:- वेद कुराण कुमाया जालूं भूला जीव कुजीव कु जाणी वेद…

Chalo Bhaya … Bhajan
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शब्द नं 73
हरि कंकहडी मंडप मेडी़ एक समय एक बिश्नोई भक्त ने समराथल पर आकर गुरु जंभेश्वर महाराज से कहा कि उसने एक ऐसा योगी देखा है जो पत्थर की एक बहुत बड़ी सिला को हिला देता है। गुरु महाराज बतलावे कि उसके पास इतनी ताकत एंव करामात कहां से आई ? वह कितना बड़ा योगी है? आगंतुक का प्रसन्न जान जाम्भोजी ने उसे यह शब्द कहा:- हरी कंकैड़ी मंडप मैड़ी जहां हमारा वासा हे जिज्ञासु! तुम देख रही हो यह हरा…