

सबद-53 ओ३म् गुरु हीरा बिणजै, लेहम लेहूं, गुरु नै दोष न देणा
" ‘दोहा‘‘ सुणते ही जोगी गया, सतगुरु के सुण वाच। दुभद्या मन की सब गई, आयो तन में साच। प्रसंग-22 दोहा तब ही जमाती बोल उठे, समझावो गुरु ज्ञान। ज्ञान पाय गुरु आप से, सुखी भये कति जान। भूत भावी यह काल की, हम नहीं जाणै सार। लक्ष्मण पांगल की सुणी, जानन चहि कछु पार। लोहा पांगल और लक्ष्मण नाथ को सबद श्रवण करवा रहे थे तभी अन्य साधु भक्तों की जमात ने भी ध्यान पूर्वक वार्तालाप को श्रवण…

सबद-54 ओ३म् अरण विवाणे रै रिव भांणे, देव दिवाणें, विष्णु पुराणें। बिंबा बांणे सूर उगाणें, विष्णु विवाणे कृष्ण पुराणे।
दोहा‘‘ अज्ञानी हम अन्ध भये, नहिं जानत दिन रैण। कृपा करो यदि पूर्ण गुरु, खुल जाये दिव्य नैण। तत विवेक ज्ञाता बने, रहे शांत प्रभु चित। रवि स्वयं ही रमण करे, या कछु और उगात। ऊपर के शब्द को श्रवण करके फिर उन्हीं जमाती लोगों ने प्रार्थना की और कहने लगे – हे प्रभु! आप तो अन्तर्यामी सर्व समर्थ हैं किन्तु हम तो सांसारिक अज्ञानी जीव हैं। हमें तो सत्य असत्य का कुछ भी विवेक नहीं है और न ही…

शब्द 55
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 *रिणघटिये के खोज फिरंता सुण सेवन्ता* नाथपंथी जोगी लोहा पांगल श्री जंभेश्वर का शिष्य बन, रूपा नाम धारण कर धरनोक गांव में एक प्याऊ पर पानी पिलाया करता था।एक समय घास कड़वी काटने वाले कुछ मजदूर किसान रूपा के पास पानी पीने आये और उन्होंने रूपे के साथ छेड़-छाड़ की। उसे ताना दिया कि पहले इतने बड़े महंत,सिद्ध योगी कहलाते थे।अब यहाँ प्याऊ पर पानी पिला रहा है?रूपे को क्रोध आ गया।उसने अपनी सिद्धि के बल पर उन मजदूरों…

जन्माष्ठमी के अवसर पर बिशनोई मंदिर हिसार का दृश्य
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गुरु जम्भेश्वर भगवान के 570वें जन्मोत्सव पर विशेष
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जन्माष्ठमी की हार्दिक शुभकामनाएं
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IAS परी बिशनोई ऑलइंडिया रैंक 30
“बधाई थानै घणी बधाई, बिटिया परी बणी आईएएस” परी बिश्नोई हम सब प्रसन्न है, नाम बिश्नोई पंथ का रोशन है। बधाई थानै घणी घणी बधाई, शानदार उपलब्धी तूने पाई।। माँ श्रीमती सुशीला बिश्नोई, जगत में तुमसा नहीं कोई। गौत्र डेलू शिरोमणी बिश्नोई, बेटी परी जैसा नहीं है कोई।। बिश्नोई हार्दिक शुभकामना है, होना खुशहाली से सामना है। सीआई जीआरपी अजमेर है, ये बेटी देश भर में सिरमोर है।। भारतीय प्रशासनिक सेवा में, चयन भारत माँ की सेवा मे। आईएएस बनी…

डॉक्टर मधु आरती, भजन और साखी
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बिशनोई पंथ का मूल उद्देश्य
श्री गुरु जम्भेश्वरजी ने जिस पंथ की स्थापना की थी उसका मूल उद्देश्य क्या था और आज हम उस पंथ को कहा तक चला पाए यानी कि उसकी सँभाल किस तरह कर रहे हैं। पंथ का मूल उद्देश्य है कि जिया न जुक्ति ओर मुआ न मुक्ति देना। जुक्ति मतलब जीने की कला,जीने का सही ढंग,इस तरीके से जीवन यापन करने का सरल राह दिखाया और मरने उपरांत चौरासी लाख योनिया के बंधन से मुक्ति करना। जीवन जीने की राह…

शब्द 56
कुपात्र कू दान जु दीयों जाणे रैण अंधेरी चोर जु लीयो* कुपात्र को दिया गया दान जैसे अंधेरी रात मैं चोर द्वारा चुराये गये धन के समान है *चोर जु लेकर भाखर चढ़ियो* *कह जीवड़ा तै कैने दीयों* कुपात्र उन चोरों के समान है जो सामान चुराकर पहाड़ों में छुप गया हो उसको दिये गये दान का फल नहीं मिलता है हे जीव बता तूने दान किसको दिया है *दान सुपाते बीज सुखेते* *अमरत फूल फलीजे* अतःदान सदैव सूपत्रों को…

शब्द 57
*अति बलदानों सब स्नानो* सैंसे भगत के पुत्र ने गुरु जंभेश्वर महाराज से अति विनम्रता के साथ दास्य भाव की भक्ति के अनुरूप प्रार्थना की कि गुरु महाराज पतित पावन है, सबके स्वामी है तथा वह स्वय अति मंदबुद्धि पापियों में सिर मोर तथा स्वर्ग प्राप्ति के रास्ते से विमुख चलने वाला है।अतः गुरु महाराज कृपा कर उसका उद्धार करें।सैंसे पुत्र की प्रार्थना सुन गुरु महाराज ने जमाती लोगों के सम्मुख उसे यह शब्द कहा:- *अति बल दानों सब स्नानो…

शब्द 58
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 *तउवा माण दुरर्योधन माण्यां* गुरु जंभेश्वर द्वारा पूर्व शब्द का सुनकर जमाती लोगों के मन में यह संदेह उत्पन्न हुआ कि क्या इस संसार से पार होना इतना कठिन है उन्होंने गुरु महाराज से जिज्ञासा प्रकट की कि क्या चार युगों में इस जन्म मरण के चक्कर से कोई जीव मुक्त हुआ है या नहीं?भक्त-जनों की जिज्ञासा जान गुरु महाराज ने यह शब्द कहा:- *तउवा माण दुर्धोधन माणया अवर भी माणत माणु* राज्य एवं धन दौलत के कारण मान…