

सबद-47 ओ३म् काया कंथा मन जो गूंटो, सीगी सास उसासूं।
ओ३म् काया कंथा मन जो गूंटो, सीगी सास उसासूं। मन मृग राखले कर कृषाणी, यूं म्हे भया उदासूं। भावार्थ- वस्त्र से बनी हुई भार स्वरूप कंथा रखना योगी के लिये अत्यावश्यक नियम- कर्म नहीं है तथा गले में गूंटो हाथ में सीगी रखना तथा बजाना कोई नित्य नैमितिक कर्म नहीं है तथा क्योंकि यह तुम्हारा पंचभौतिक शरीर ही कंथा गुदड़ी है जो आत्मा के उपर आवरण रूप से स्वतः ही विद्यमान है तथा तुम्हारा यह चंचल मन जब स्थिर हो…

सबद-48 ओ३म् लक्ष्मण लक्ष्मण न कर आयसां, म्हारे साधां पड़ै बिराऊं
प्रसंग-21 दोहा' नाथ एक विश्नोई भयो, करै भण्डारै सेव। टोघड़ी सोधण टीले गयो, जोगी भुक्त करैव। जोगी आया भुक्त ले, विश्नोई लेवे नांहि। जोगी इण विध बोलियो, हमारी भुक्त में औगुण काहि। घर छोड़या तै नाथ का, हम सूं कीवी भ्रान्त। गेडी ले जोगी उठयो, स्याह मूंढ़े की कांत। और जोगी झालियो, छिमा करो तुम वीर। इसकै मारै क्या हुवै, बुझेंगे गुरु पीर। जोगी सब भेला हुवा, चाल्या जम्भ द्वार। दवागर उन मेल्हियो, आय र करो जुहार। पग चालो तुम…

सबद-49 ओ३म् अबधू अजरा जारले, अमरा राखले
दोहा : जोगी सतगुरु यूं कहै, वाता तणा विवेक। सतगुरु हमने भेटियों, दर्षन किया अलेख। वह जोगी दूत बनकर आया था, , कहने लगा-हे महाराज! वे हमारे लक्ष्मण नाथ तो बड़े विवेकी है। उन्होंने हमें ज्ञान बताया है। इसलिये हमने सतगुरु परमात्मा का दर्शन कर लिया है। तब गुरु जाम्भोजी ने सबद द्वारा इस प्रकार से बतलाया। सबद-ओ३म् अबधू अजरा जारले, अमरा राखले, राखले बिन्द की धारणा। पताल का पानी आकाश को चढ़ायले, भेंट ले गुरु का दरशणा। भावार्थ- हे…

शब्द -50 ओ३म् तइयां सासूं तइया मासूं, तइया देह दमोई। उतम मध्यम क्यूं जाणिजै, बिबरस देखो लोई।
शब्द – ओ३म् तइयां सासूं तइया मासूं, तइया देह दमोई। उतम मध्यम क्यूं जाणिजै, बिबरस देखो लोई। भावार्थ- जब तक योगी की दृष्टि में स्त्री-पुरूष का भेदभाव विद्यमान रहेगा तब तक वह सच्चा योगी सफल योगी नहीं हो सकता। जब तक सर्वत्र एक ज्योति का ही दर्शन करेगा तो फिर भेद दृष्टि कैसी? और यदि भेददृष्टि बनी हुई है तो फिर वह योगी कैसा। इसलिये कहा है-कि जो श्वांस एक पुरूष में चलता है वही स्त्री में भी चलता…

सबद-51 ओ३म् सप्त पताले भुंय अंतर अंतर राखिलो, म्हे अटला अटलूं।
ओ३म् सप्त पताले भुंय अंतर अंतर राखिलो, म्हे अटला अटलूं। भावार्थ- इस शरीर के अन्दर ही सप्त पाताल है जिसे योग की भाषा में मूलाधार चक्र जो गुदा के पास है इनसे प्रारम्भ होकर इससे उपर उठने पर नाभि के पास स्वाधिष्ठान चक्र है इससे आगे हृदय के पास मणिपूर चक्र, कण्ठ के पास अनाहत चक्र, भूमण्डल में विशुद्ध चक्र तथा उससे उपर आज्ञा चक्र है। इन छः पाताल यानि नीचे के चक्रों को भेदन करता हुआ सातवें सहस्रार ब्रह्मर्ध्र…

सबद-52 ओ३म् मोह मण्डप थाप थापले, राख राखले, अधरा धरूं। आदेश वेसूं ते नरेसूं, ते नरा अपरंपारूं।
दोहा जोगी इस विधि समझिया, आया सतगुरु भाय। देव तुम्हारे रिप कहो, म्हानै द्यो फुरमाय। सतगुरु कहै विचार, तुम्हारा तुम पालों। जोगी कहै इण भाय, नहीं दुसमण को टालों। देव कहै खट् उरमी, थारे दुसमण जोर। भूख तिस निद्रा घणी, तुम जांणों कई और। तुम्हारा तुम पालो सही, हमारा हम पालेस। सतगुरु शब्द उचारियो, जोग्या कियो आदेष। उपर्युक्त सबदों की बात योगियों के कुछ समझ में आयी, सभी ने प्रेम पूर्वक भोजन किया सतगुरु सभी को अच्छे भी लगे। भोजन…

सबद-53 ओ३म् गुरु हीरा बिणजै, लेहम लेहूं, गुरु नै दोष न देणा
" ‘दोहा‘‘ सुणते ही जोगी गया, सतगुरु के सुण वाच। दुभद्या मन की सब गई, आयो तन में साच। प्रसंग-22 दोहा तब ही जमाती बोल उठे, समझावो गुरु ज्ञान। ज्ञान पाय गुरु आप से, सुखी भये कति जान। भूत भावी यह काल की, हम नहीं जाणै सार। लक्ष्मण पांगल की सुणी, जानन चहि कछु पार। लोहा पांगल और लक्ष्मण नाथ को सबद श्रवण करवा रहे थे तभी अन्य साधु भक्तों की जमात ने भी ध्यान पूर्वक वार्तालाप को श्रवण…

सबद-54 ओ३म् अरण विवाणे रै रिव भांणे, देव दिवाणें, विष्णु पुराणें। बिंबा बांणे सूर उगाणें, विष्णु विवाणे कृष्ण पुराणे।
दोहा‘‘ अज्ञानी हम अन्ध भये, नहिं जानत दिन रैण। कृपा करो यदि पूर्ण गुरु, खुल जाये दिव्य नैण। तत विवेक ज्ञाता बने, रहे शांत प्रभु चित। रवि स्वयं ही रमण करे, या कछु और उगात। ऊपर के शब्द को श्रवण करके फिर उन्हीं जमाती लोगों ने प्रार्थना की और कहने लगे – हे प्रभु! आप तो अन्तर्यामी सर्व समर्थ हैं किन्तु हम तो सांसारिक अज्ञानी जीव हैं। हमें तो सत्य असत्य का कुछ भी विवेक नहीं है और न ही…

शब्द 55
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 *रिणघटिये के खोज फिरंता सुण सेवन्ता* नाथपंथी जोगी लोहा पांगल श्री जंभेश्वर का शिष्य बन, रूपा नाम धारण कर धरनोक गांव में एक प्याऊ पर पानी पिलाया करता था।एक समय घास कड़वी काटने वाले कुछ मजदूर किसान रूपा के पास पानी पीने आये और उन्होंने रूपे के साथ छेड़-छाड़ की। उसे ताना दिया कि पहले इतने बड़े महंत,सिद्ध योगी कहलाते थे।अब यहाँ प्याऊ पर पानी पिला रहा है?रूपे को क्रोध आ गया।उसने अपनी सिद्धि के बल पर उन मजदूरों…

जन्माष्ठमी के अवसर पर बिशनोई मंदिर हिसार का दृश्य
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गुरु जम्भेश्वर भगवान के 570वें जन्मोत्सव पर विशेष
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