

शब्द – 5 : ओउम अइयालो अपरंपर बाणी,महे जपां न जाया जीयूं।
उधरण कान्हावत यूं कहै, जाम्भाजी सूं बात। जाप कुणा रो थे जपो, हमें बताओं तात। अर्थात:कान्हाजी के पुत्र उधरण ने इससे पूर्व शब्द द्वारा आयु का ज्ञान प्राप्त कर के फिर दूसरा प्रश्न पूछा कि हे देव ! आप जप किस का करते हैं, हमें भी बतलायें कि हम किस देवता का जप-नाम स्मरण उपासना करें। गुरू जाम्भोजी ने शब्दोच्चारण इस प्रकार से किया – :: शब्द – 5 :: √ ओउम अइयालो अपरंपर बाणी,महे जपां न जाया जीयूं।| हे…

शब्द -6 : ओउम भवन भवन म्हें एका जोती, चुन चुन लिया रतना मोती
उधरण कान्हावत यूं कहै, दोय कहै छै देव। भिन्न भिन्न समझाइयों, हमें बतावों भेव। उधरण राजपुत्र ने इससे पूर्व तीन शब्दों को ध्यान पूर्वक श्रवण किया तब यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि जीव और ब्रह्या एक ही हैं या दो भिन्न-भिन्न है। इस शंका के समाधानार्थ उधरण ने प्रार्थना की। गुरु महाराज ने उत्तर दिया- :: शब्द -6 :: √ ओउम भवन भवन म्हें एका जोती, चुन चुन लिया रतना मोती। भावार्थ- सम्पूर्ण चराचर सृष्टि के कण-कण में परम तत्व…

शब्द -7 ॐ हिन्दू होय कै हरि क्यूं न जंप्यों, कांय दहदिश दिल पसरायों
ॐ हिन्दू होय कै हरि क्यूं न जंप्यों, कांय दहदिश दिल पसरायों। भावार्थ- हिन्दू होने का अर्थ है कि भगवान विष्णु से सम्बन्ध स्थापित करना। विष्णु निर्दिष्ट मार्ग का अनुसरण करना तथा विष्णु परमात्मा का अनुमान करना, तथा विष्णु परमात्मा का स्मरण करना। यदि हिन्दू होय कर यह कर्तव्य तो किया नहीं और मन इन्द्रीयों को दसों दिशाओं में भटकाते रहे तो फिर तुम कैसे हिन्दू हो सकते थे। सोम अमावस आदितवारी, कांय काटी बन रायों। आप लोग हिन्दू…

सबद-8 ओझ्म् सुण रे काजी सुण रे मुल्ला, सुण रे बकर कसाई
ओझ्म् सुण रे काजी सुण रे मुल्ला, सुण रे बकर कसाई। भावार्थ- भावार्थ-बकरी आदि निरीह जीवों की हत्या करने वाले कसाई रूपी काजी, , मुल्ला तुम लोग मेरी बात को ध्ध्यान पूर्वक श्रवण करो। किणरी थरपी छाली रोसो, किणरी गाडर गाई। किस महापुरूष पैगम्बर ने यह विध्धान बनाया है कि तुम काजी मुल्ला मुसलमान या हिन्दू मिलकर या अलग-अलग इन बेचारी भेड़-बकरी और माता तुल्य गऊ के गले पर छुरी चलावो अर्थात् ऐसा विध्धान किसी ने नहीं बनाया तुम मनमुखी…

शब्द – 9 :: ओ३म् दिल साबत हज काबो नेड़ै, क्या उलबंग पुकारो
ओ३म् दिल साबत हज काबो नेड़ै, क्या उलबंग पुकारो। भावार्थ- यदि तुम्हारे दिल शुद्ध सात्विक विकार रहित है तो तुम्हारे काबे का हजा नजदीक ही है अर्थात् हृदय ही तुम्हारा काबै का हज है तो फिर क्यों मकानों की दिवारों पर चढ़कर ऊंची आवाज से उस अल्ला की पुकार करते हो, , यह तुम्हारी बेहूदी उलबंग तुम्हारा अल्ला नहीं सुन सकेगा क्योंकि वह अल्ला तो तुम्हारे दिल में ही है। भाई नाऊ बलद पियारो, ताकै गलै करद क्यूं सारों। अपने…

सबद-10 ::ओ३म् विसमिल्ला रहमान रहीम, जिहिं कै सदकै भीना भीन।
ओ३म् विसमिल्ला रहमान रहीम, जिहिं कै सदकै भीना भीन। भावार्थ- विसमिल्ला तो रहम-दया भाव रखने वाले स्वयं विष्णु अवतारी राम ही है। उनका मार्ग तो तुम्हारे से भिन्न ही था। वर्तमान में तुमने जो जीव हत्या का मार्ग अपना रखा है यह तुम्हारा मनमुखी है। उनको बदनाम मत करो। तो भेटिलो रहमान रहीम, करीम काया दिल करणी। सभी पर रहम करने वाले श्री राम एवं गोपालक श्री कृष्ण को दिल रूपी हृदय गुहा में स्थिर करके फिर कोई शुभ कार्य…

शब्द – 11 : ओ३म् दिल साबत हज काबो नैड़ै, क्या उलबंग पुकारो
ओ३म् दिल साबत हज काबो नैड़ै, क्या उलबंग पुकारो। भावार्थ- यदि तुम्हारे दिल में सच्चाई है तो काबे की हज निकट ही है। जब तुम्हारा अपना अन्तःकरण नजदीक ही है तो फिर उसे दूर समझकर इतनी जोर से आवाज क्यों लगाते हो क्योंकि वह अल्ला तो तुम्हारे दिल में ही है। सीने सरवर करो बंदगी, हक्क निवाज गुजारो। उस परमपिता परमात्मा की प्राप्ति करना चाहते हो तो हृदय में प्रेम और दीनता से पुकार करो यही सच्ची प्रार्थना होगी। प्रतिदिन…

सबद-12 : ओ३म् महमद महमद न कर काजी, महमद का तो विषम विचारूं।
‘दोहा‘‘ ‘फिर यो काजी बोलियो, फरमाई यह मुहमद। जम्भगुरु तब यों कही, इसका सुणियो सबद।’ फिर वह काजी कहने लगा-हे देव! यह जीव हत्या करना तो मुहमद साहब ने हम लोगों को बतलाया है, , तब जम्भेश्वर जी ने सबद उच्चारण किया। :: सबद-12 :: ओ३म् महमद महमद न कर काजी, महमद का तो विषम विचारूं। भावार्थ- अपने कुकर्मों पर परदा डालने के लिये हे काजी! तूं मुहमद का नाम बार-बार मत ले। तुम्हारे विचारों,कर्तव्यों से मुहम्मद का कोई मेल…

सबद-13 :: ओ३म् कांय रे मुरखा तै जन्म गुमायो, भुंय भारी ले भारूं।
ओ३म् कांय रे मुरखा तै जन्म गुमायो, भुंय भारी ले भारूं। भावार्थ- रे मूर्ख! तुमने इस अमूल्य मानव जीवन को व्यर्थ में ही व्यतीत क्यों कर दिया। यह तुम्हारे हाथ से निकल गया तो फिर लौटकर नहीं आयेगा। इस संसार में रहकर भी तुमने चोरी , जारी,निंदा,झूठ आदि पापों की पोटली ही बांधी है। जब इस संसार में आया था तो काफी हल्का था,निष्पाप था। किन्तु यहां आकर इन पापों की पोटली से स्वयं ही बोझ से दब रहा है…

सबद-14 : ओ३म् मोरा उपख्यान वेदूं कण तत भेदूं, शास्त्रे पुस्तके लिखणा न जाई। मेरा शब्द खोजो, ज्यूं शब्दे शब्द समाई।
दोहा‘‘ फेर जाट यों बोलियो, जाम्भेजी सूं भेव। वेद तंणां भेद बताय द्यो, ज्यों मिटै सर्व ही खेद। तेहरवां शब्द श्रवण करके फिर वह जाट कहने लगा कि हे देव! वेदों के बारे में मैने बहुत ही महिमा सुनी है। इसका भेद आप मुझे बतला दीजिये। जिससे मेरा संशय निवृत हो सके। श्री देवजी ने उसके प्रति यह दूसरा शब्द सुनाया- √√ सबद-14 √√ ओ३म् मोरा उपख्यान वेदूं कण तत भेदूं, शास्त्रे पुस्तके लिखणा न जाई। मेरा शब्द खोजो, ज्यूं…

सबद-15 ओ३म् सुरमां लेणां झीणा शब्दूं, म्हे भूल न भाख्या थूलूं।
‘‘दोहा‘‘ जाट कहै सुण देवजी, सत्य कहो छौ बात। झूठ कपट की वासना, दूर करो निज तात। इन उपर्युक्त दोनों सबदों को श्रवण करके वह जाट काफी नम्र हुआ और कहने लगा- हे तात! आपने जो कुछ भी कहा सो तो सत्य है किन्तु मेरे अन्दर अब भी झूठ कपट की वासना विद्यमान है। आप कृपा करके दूर कर दो। √√ सबद-15 √√ ओ३म् सुरमां लेणां झीणा शब्दूं, म्हे भूल न भाख्या थूलूं। भावार्थ- हे जाट! तूं इन मेरे वचनों…

सबद-16 : ओ३म् लोहे हूंता कंचन घड़ियो, घड़ियो ठाम सु ठाऊं। जाटा हूंता पात करीलूं, यह कृष्ण चरित परिवाणों।
ओ३म् लोहे हूंता कंचन घड़ियो, घड़ियो ठाम सु ठाऊं। जाटा हूंता पात करीलूं, यह कृष्ण चरित परिवाणों। भावार्थ- प्रारम्भिक अवस्था में सोना भी लोहा जैसा ही विकार सहित होता है। खानों से निकालकर उसे अग्नि के संयोग से तपाकर विकार रहित करके सोना बनाया जाता है तथा उस पवित्र स्वर्ण से अच्छे से अच्छा गहना आभूषण बनाया जाता है जिसे युवक युवतियां पहनकर आनन्दित होते है। उसी प्रकार से इस मरूदेशीय जाट भी लोहे जैसे ही थे किन्तु अब मेरी…