
झूठ नही बोलना चाहिए
सत्य बोलना ही सभी धर्मों का मूल है, सत्य पर ही सम्पूर्ण पृथ्वी टिकी हुई है।सत्य से ही सम्पूर्ण संसार का व्यवहार चलता है।जिन लोगो ने सत्य धर्म का पालन किया है, उनकी ही महिमा आधपर्यन्त गायी जाती है वे ही सम्मानीय महापुरुष है।” सत्यमेव जयते “सदा सत्य से ही विजय होती है।धर्म का आचरण सत्य बोलने से ही है।सत्य से बढ़कर कोई धर्म नही है और झूठ से बढ़कर कोई पाप नही है।सत्य से बढ़कर कोई ज्ञान नही है।अतः…

वाद-विवाद नहीं करना चाहिए
व्यर्थ का वाद-विवाद नही करना चाहिए।कुछ लोग ऐसे विचार रखते हैं कि सामने वाले को अपनी वाक तर्क शक्ति के द्वारा किसी प्रकार से पराजित कर दिया जाय।कुछ लोग मूर्खता का परिचय देते हुए जिद्द करते है जिससे लड़ाई-झगड़ा, मनमुटाव,वैर-विरोध आदि अनेक प्रकार की बीमारियां खड़ी हो जाती है।यह व्यर्थ के विवाद के अंतर्गत होता है।हमेशा अच्छे विचार रखने चाहिए जो सामने वाले को मनमोहक बना दे।श्री गुरुजाम्भो जी कहते हैं कि –“अठगी ठगण अदगी दागण अगंजा गजण उथन नाथन…

भजन विष्णु बतायो जोय
-परमपिता परमात्मा श्री विष्णु का ही भजन करना चाहिए।श्री गुरुजाम्भो जी स्वयं विष्णु भगवान के ही अवतार हैं।उन्होंने सतयुग में अपने भगत प्रहलाद को दिए वचन कलयुग में बारह करोड़ जीवो का उद्वार करने के लिए अवतार लिया था।अनेकानेक सन्तो ने भगतो ने नाम जप के सम्बंध में भिन्न भिन्न राय प्रकट की है।किसी ने राम नाम का जप बताया है तो किसी ने कृष्ण या शिव या अन्य कुछ बताया है।परंतु श्री गुरुजाम्भो जी ने इन्ही परंपरा से हटकर…

जीव दया पालनी
जीवों पर दया करनी चाहिए।नित्य प्रति जीवो पर दया करना इसे सच्चा आचरण जानना चाहिए।शरीर और मन को अपने वश में करके जीव दया की पालना की जावै तो यह जीवात्मा निर्वाण अर्थात मुक्ति के पद की प्राप्ति की अधिकारिणी होती है।जीव दया का वास्तविक अर्थ उनके प्रति सहानुभूति रखना है।ह्रदय में प्रत्येक प्राणी के प्रति दयाभाव रखना तथा जीव दया पालन करना चाहिए।दया एक सात्विक वृति है, वह समता की मूल है।दयाभाव ह्रदय की उदारता का धोतक है और…

निवण प्रणाम जी आज की चर्चा( मन) को लेकर है।।
श्री गुरुजम्भेश्वर जी ने विभिन प्रसंगों में अनेक बार मन उसकी एकाग्रता और उसको बस में रखने का आदेश-उपदेश दिया है।1-सतगुरु तोड़ै मन का साला2-रे मुल्ला मन माही मसीत निवाज गुजारिये3-काया त कंथा मन जोगूंटो सिंगी सास उसासू4-दोय दिल दोय मन सीवी न कंथा( इस सबद में 14 बार दोय दिल दोय मन सबदो का उल्लेख है जिससे श्री गुरुजम्भेश्वर की एतद विषयक गम्भीरता और विषय के महत्व का पता चलता है)5-मनहट सीख न कायो6-मनहठ पढिया पिंडत, काजी मुल्ला खेलै…

बुलबुल बिश्नोई
बुलबुल बिश्नोई पुत्री अविनाश बिश्नोई पवार (राजस्थान पुलिस) साधुवाली का एयरफोर्स में फ्लाइंग अफसर में चयन होने पर बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं

हरी कंकेड़ी मंडप मेड़ी जहाँ हमारा वासा: श्री गुरु जम्भेश्वर के कथन के गूढ़ वैज्ञानिक अभिप्राय
(Maytenus imarginata: The mystic tree of Bishnoism)बिश्नोई धर्मग्रंथ सबदवाणी (Sabadvani) में पृथ्वी अठारह भार वनस्पति से सुशोभित बताई गयी है एंव बिश्नोई पौराणिकी (Bishnoi Mythology) में वृक्षों की बहुत सी प्रजातियों (Species) का सन्दर्भ प्राप्त होता है. इन सभी प्रजातियों में से कंकेड़ी वृक्ष को बिश्नोइज्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है एंव यह बिश्नोइज्म के प्रथम वृक्ष (First tree of Bishnoism) के रूप में स्थापित है. बिश्नोई इतिहास, पौराणिकी एंव धर्मग्रंथों में कंकेड़ी के प्रति बिश्नोइज्म की प्रगाढ़ श्रद्धा के…

सुगरा-नुगरा
अनादि काल से गुरु प्रथा चली आ रही है।परंतु हम बहुत ज्यादा परम्परावादी व अंधविश्वासी बन गये है अतः इस प्रथा का दुरुपयोग भी बहुत होता आया है।विभिन्न सम्प्रदायों में गुरु धारण करने की प्रथा है इसमें जनता को इतना भयभीत किया जाता है कि गुरु धारण किये बिना यह मानव जीवन व्यर्थ है।अतः पाखंडी,धुर्त, दंभी,दुराचारी,भोगी मनुष्य भी स्वार्थ सिद्धि के लिए गुरु गद्दी पर बैठ जाते हैं और लोगो को पतन की और ले जाते हैं।वे खुद तो डूबते…

कवि केशो जी देहड़ू
जीवन काल 1500-1580 अनुमानित हैं ये हजूरी कवि थे।इनकी एक मात्र ही साखी मिलती है।राग सुहब में गेय कणा की साखी है।इसे जुमलै की तीसरी साखी के रूप में मान्यता प्राप्त है।आवो मिलो जुमलै जुलो,सिंवरो सिरजणहारसतगुरु सतपंथ चालिया,खरतर खण्डाधारजम्भेश्वर जिभिया जपो,भीतर छोड़ विकारसम्पति सिरजणहार की,विधिसू सुणो विचारअवसर ढील न कीजिये,भले न लाभे वारजमराजा वांसे वहै, तलबी कियो तैयारचहरी वस्तु न चाखिये, उर पर तंज अंहकारबाड़े हूंता बिछड़ा जारी,सतगुरु करसी सारसेरी सिवरण प्राणीया, अंतर बड़ो अधारपर निंदा पापां सीरे, भूल उठावै…

निवण प्रणाम जी👏👏
निवण प्रणाम बिश्नोई समाज की मूल अभिवादन प्रणाली है।प्रतिवचन में “जाम्भोजी नै या गुरु महाराज नै विसन भगवान नै या नारायण नै”कहा जाता है।“नै” का अर्थ ‘को’ है -श्री गुरुजाम्भो जी को विसन को आदि।।निवण प्रणाम में नम्रतायुक्त,पूज्यभाव सर्वोपरि है।इसके अंतर्गत विन्रमता, श्रद्धा, अंहकार शून्यता,स्वयं को छोटा और प्रतिवचन कर्ता को बड़ा समझना,आदर और आत्मैक्य -ये सभी भाव मिले-जुले रूप में प्रकट होते हैं।इसकी पुष्टि प्रतिवचन से होती है जिसका आशय है -ऐसे वचन तो श्री जाम्भोजी, गुरु महाराज और…





