
” मन मोती अरु दूध का,
ज्यां कां यही सुभाव।
फाट्यां पीछे ना मिले,
क्रोड़न जतन कराव।
अगनी दाह मां पालवे,
कर ही पालण तेल।
वचन दग्ध ज्यां कां हिया,
हिरदै पड़ गया छेल।
-(पदमजी)
-भावार्थ-‘ मन,मोती और दूध एक बार फटने पर करोड़ उपाय करने पर भी दोबारा अपने उसी स्वरूप में नहीं आते। इसलिए सावचेत रहें, अग्नि से जली हुई बाहर की चमड़ी औषधि लगाने से ठीक हो जाती है परन्तु कटु वचनों से जलाए हुए हृदय के कोई औषधि नहीं लगती
🙏 -(जम्भदास)






