छव दरसण जिंहि कै रूपण थापण, संसार बरतण निजकर थरप्या। -छः दर्शन उसी ;परमात्माद्ध के रूप का वर्णन कर रहे हैं, जिसने अपने हाथों से संसार की रचना की है। Sanjeev Moga Articles: 794 Previous Post पीपासर नगरी एवं मन्दिर की विशेष कविता Next Post जाम्भाणी संत सूक्ति