आरती कीजे श्री जम्भ तुम्हारी

आरती कीजे श्री जम्भ तुम्हारी,चरण शरण मोही राखो मुरारी
पहली आरती उनमुन कीजे, मन बच कर्म चरण चित दीजे।।
दूसरी आरती अनहद बाजा, श्रवणे सुना प्रभु शब्द अवाजा।।
तीसरी आरती कंठसुर गावे, नवध्या भक्ति प्रभु प्रेम रस पावे।
चैथी आरती हिरदै में पूजा, आत्मदेव प्रभु और न दूजा।।
पांचवीं आरती प्रेम प्रकाशा, कहत ऊधो साधोचरण निवासा।।

Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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