

: प्रसंग-9 दोहा :
विश्नोवण एक आय कह्यो, आयस तणों विचार। ढ़ोसी की पहाड़ी हिलावै, ताका कहो आचार।
सम्भराथल पर एक बिश्नोई स्त्री ने आकर जम्भदेवजी से कहा-कि यहां ढ़ोसी नाम की पहाड़ी पर एक योगी बैठा हुआ है। वह कभी कभी ऐसा लगता है कि पहाड़ी को हिला देता है इसमें सच्चाई या झूठ का कुछ पता नहीं है और यह भी मालूम नहीं है कि उसमें सिद्धि है या पाखण्ड? इसका निराकरण कीजिये। इस शंका के निवारणार्थ यह सबद सुनाया-
√√ सबद-24 √√
ओ३म् आसण बैसण कूड़ कपटण, कोई कोई चीन्हत वोजूं वाटे। वोजूं वाटै जे नर भया, काची काया छोड़ कैलाशै गया।
भावार्थ- योग समाधी के लिये जिस स्थिर सुखमय आसन का योगी लोग प्रयोग करते है। उसी आसन का पाखण्डी लोग भी प्रयोग करके यानि बैठकर झूठ कपट और ठगने का व्यवहार करते हैं, अधिकतर तो ऐसा ही होता देखा गया है। किन्तु कोई कोई विरला ही सन्त शूरवीर वास्तविक रूप से आसन पर बैठकर सत्य मार्ग को अपनाकर इस कच्ची काया को समय पर त्याग करके भगवान विष्णु के सर्वोच्च परम धाम को प्राप्त कर लेते हैं।