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उधरण कान्हावत यूं कहै, जाम्भाजी सूं बात।
जाप कुणा रो थे जपो, हमें बताओं तात।
अर्थात:कान्हाजी के पुत्र उधरण ने इससे पूर्व शब्द द्वारा आयु का ज्ञान प्राप्त कर के फिर दूसरा प्रश्न पूछा कि हे देव ! आप जप किस का करते हैं, हमें भी बतलायें कि हम किस देवता का जप-नाम स्मरण उपासना करें। गुरू जाम्भोजी ने शब्दोच्चारण इस प्रकार से किया –
:: शब्द – 5 ::
√ ओउम अइयालो अपरंपर बाणी,महे जपां न जाया जीयूं।|
हे संसार के लोगों ! मेरी बाणी अपरंपार है अर्थात् तुम लोग जिनकी परंपरा से उपासना करते आये हो और अब भी कर रहे हो, ऐसी परंपरा वाली उपासना मैं नहीं करता। आप लोगों ने जिस परम तत्व की कभी कल्पना भी नहीं की होगी, जो लोगों की सामान्य वाणी से परे है। केवल योगी लोगों द्वारा अनुभव गम्य है, उसी परम देव की मैं मन वचन कर्म से उपासना तथा जप करता हूं और आप लोग भी उसी की उपासना करो। हमारे जैसे पुरूष कभी भी जन्में हुए जीवों की उपासना जप नहीं करते यदि आप लोग करते हैं तो छोड़ दीजिये। जन्मा जीव तो स्वयं असमर्थ है, कमजोर व्यक्ति दूसरे की क्या सहायता कर सकता है।
√ नव अवतार नमो नारायण,तेपण रूप हमारा थीयूं।|
परम सत्तावान भगवान विष्णु के ही नवों अवतार हुए हैं, ये नव अवतार-मच्छ, कच्छ, वाराह, नृसिंह, बावन, परशुराम, राम-लक्ष्मण, कृष्ण तथा बुद्ध इत्यादि। ये नवों अवतार ही नमन करने योग्य हैं, इनसे अतिरिक्त अन्य जन्मा जीव उपास्य नहीं है तथा ये नवों अवतार श्री जाम्भोजी कहते हैं कि मेरे ही स्वरूप है। देश काल, शरीर से भिन्न होते हुए भी तत्व रूप से तो मैं और नवों अवतार एक ही है।
√ जपी तपी तक पीर ऋषेश्वर, कांय जपीजै तेपण जाया जीयूं।|
अब आगे जन्मे हुए जीवों को बता रहे हैं, जिनका जप लोग किया करते हैं, उनमे यती, तपस्वी, तकिये पर रहने वाले फकीर, ऋषि,मण्डलेश्वर, इत्यादि जन्मे जीव हैं। हे लोगों ! इनका जप क्यों करते हो ?
√ खेचर भूचर खेत्र पाला परगट गुप्ता,
कांय जपीजै तेपण जाया जीयूं|| आकाश में विचरण करने वाले, धरती पर रहने वाले, खेत्रपाल, भोमियां इत्यादि कुछ तो प्रगट तथा कुछ गुप्त इन्हें आप क्यों जपते हैं ये तो जन्मे हुए जीव हैं।
√ वासग शेष गुणिदां फुणिदां, कांय जपीजै तेपण जाया जीयूं|| वासुकि नाग, शेषनाग, मणिधारी, गुणवान तथा फणधारी, नागराज ही क्यों न हों ये सभी जन्में हुए जीव है इसलिये जप करने के योग्य नहीं है फिर इनके नीचे पड़ कर धोक क्यों लगाते हो ?
√ चैषट जोगनी बावन भैरूं,
कांय जपीजै तेपण जाया जीयूं|| चैंसठ प्रकार की योगनियां तथा बावन प्रकार के बीर – भैरव जो देहातों में अब भी पूजे जाते हैं ये सभी जन्म-मरण धर्मा सामान्य जीव है इनकी आराधना सदा ही वर्जनीय है, आप लोग क्यों भोपों-पुजारियों के चक्कर में पड़ कर धन, बल, समय, व्यर्थ में ही बरबाद करते हो।
√ जपां तो एक निरालंभ शिम्भूं, जिहिं के माई न पीयूं||
एक निराकार निरालंभ, निरंजन, स्वयंभूं का ही हम तो जप करते हैं जिनके न तो कोई माता है और न ही कोई पिता ही है तथा जो सर्वाधार सर्वशक्तिमान है और वह सभी के माता-पिता भाई-बन्धु सभी कुछ है।
√ न तन रक्तूं न तन धातूं,न तन ताव न सीयू||
एक मात्र समादरणीय वह तत्व साकार रूप धारण करके सर्वसृष्टि की रचना करता है। मृत्यु से स्वयं तो रहित है किन्तु सभी जीवों का एक मूल स्थान है। वहीं से जीवों का उद्गम होता है, अन्त में वहीं जाकर जीव विलीन हो जाते हैं। ऐसे परम तत्व मूल को खोजना चाहिये, प्राप्त करना चाहिये।
√ सर्व सिरजत मरत विवरजत,तास न मूलज लेणा कीयों।| एकमात्र समादरणीय वह तत्व साकार रूप धारण करके सर्वसृष्टि की रचना करता है। मृत्यु से स्वयं तो रहित है किन्तु सभी जीवों का एक मूल स्थान है। वहीं से जीवों का उद्गम होता है, अन्त में वहीं जाकर जीव विलीन हो जाते हैं। ऐसे परम तत्व मूल को खोजना चाहिए, प्राप्त करना चाहिए।
√ अइयालों अपरंपर बाणी, महे जपां न जाया जीयूं।|
इसीलिये हे लोगो! मेरा मार्गकुछ विचित्र है किन्तु सत्य सनातन है, संसार की लीक से हटकर होने से आश्चर्य नहीं करना। अतः मैं जन्में जीवों का जप नहीं करता। जो स्वयं फंसे हैं वे दूसरों को कैसे मुक्ति दिला सकते हैं?
साभार- जंभसार
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