पुरखों की घरा का ऋण चुका गए बिश्नोई रत्न

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पूनमचंद बिश्नोई कस्वां सीनियर सब एडिटर, दैनिक भास्कर, जोधपुर
जितनी अपेक्षाएं, आशाएं और उम्मीदें बिश्नोई रत्न चौधरी भजनलाल जी से हरियाणा के लोगों की थी, उससे कहीं ज्यादा राजस्थान व मारवाड़ की रहती थी। उनके निधन से पूरा मारवाड़ शोकाकुल है। इस असहनीय व दुखदायी घटना की खबर लगी तो यहां का हर चेहरागम में डूब गया। जब इसकी खबर मारवाड़ के हर गांव व ढाणी में आग की तरह फैली तो ऐसा लगा कि न केवल हम बल्कि प्रकृति भी आज कुछ खो जाने के गम में डूबी हुई है। समाज के रत्न रूपी दीपक की लौ बुझने से हर आंख सजल हो गई। हो भी क्यों नहीं?मारवाड़ से उनको गहरा लगाव रहा था। वे तो मारवाड़ को अपना दूसरा घर मानते थे। उन्होंने जीवन पर्यन्त हरियाणा व दिल्ली में राजनीति के शिखर पर रहते हुए भी कभी मारवाड़ को भुलाया नहीं।
मारवाड़ में न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में उनके द्वारा दिए गए योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। मारवाड़ से उनके लगाव का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि उनके पूर्वज विक्रम संवत् 1865 में फलौदी तहसील के मोरिया मूंजासर गांव से वर्तमान हरियाणा में चले गए थे। उस वक्त दूसरे भी कई परिवारों ने पलायन किया था लेकिन पुरखों की धरा को मुड़कर देखने वाले सिर्फ चौधरी साहब ही थे। वे इस धरा को कभी नहीं भूले। वे जब भी राजस्थान के दौरे पर आते तो पूर्वजों की धरा पर कदम रखना नहीं भूलते थे।
मारवाड़ से उनके लगाव का इससे भी पता चलता है कि वे परिचितों से पूछते रहते थे कि यहां इस बार वर्षा और सुकाल की क्या स्थिति है। गत वर्ष 2 मई को मूजासर गांव में भगवान जम्भेश्वर मंदिर के लोकार्पण समारोह में उनका आने का कार्यक्रम बना था लेकिन स्वास्थ्य संबंधी कारणों से वे नहीं आ सके। यहां वे आखिरी बार वर्ष 1995 में जांबोलाव धाम मेले के बाद सती दादी की धोक लगाने गए थे। राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष रहे स्व. पूनमचंदजी बिश्नोई व पूर्व मंत्री स्व. रामसिंहजी बिश्नोई से उनके घनिष्ठसंबंध थे।
चौधरी साहब ने यहां के बिश्नोइयों को राजनीति के क्षेत्र में जिस प्रकार आगे बढ़ाया, वह किसी से छुपा हुआ नहीं है। चौधरी साहब कई बार राजस्थान में चुनाव प्रचार करने आए थे। आखिरी बार जोधपुर वे रामसिंहजी बिश्नोई के निधन पर आए थे। इससे पहले उन्होंने 15 से 17 जनवरी 1988 को जोधपुर के टाउन हॉल में आयोजित पर्यावरण में जन भागीदारीविषयक राष्ट्रीय सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की थी।
मारवाड़ में बिश्नोई समाज के विकास में उनकी अहम भूमिका रही है। उनके कार्यकाल में न केवल खेजड़ली गांव में शहीद स्मारक बनाया जा सका बल्कि बिश्नोइयों के पर्यावरण संरक्षण में दिए गए योगदान को उन्होंने ही विश्व पटल पर रखा। ऐसे बिरले ही शिखरपुरुष होते हैं जो पुरखों की धरा को तन, मन व धन से सींचने में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते हैं। वे पुरखों का ऋण चुकाकर मारवाड़ को ऋणी बना गए। वहीं, मारवाड़ भी मान-सम्मान व उनके स्वागत में पलक पांवड़े बिछाए रहता था। उनके बारे में मुझसे ज्यादा वे लोग जानते हैं जो उनके संपर्क में रहे हैं। फिर भी मुझे याद है जब बचपन में हम जांबोलाव व मुकाम मेले में जाते थे तो बीच राह में यह चर्चा होती थी कि आज मेले में भजनलाल जी आएंगे। उनकी एक झलक पाने के लिए लोग बेताब रहते थे। यह उनके व्यक्तित्वका आकर्षण था।
इस वर्ष जून-जुलाई में जोधपुर में बालिका छात्रावास की आधारशिला उनके कर कमलों से रखवाने का कार्यक्रम तय किया गया था लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। उनकी राह ताकते मारवाड़ की यह हसरत अधूरी ही रह गई। ऐसी महान विभूति को शत-शत नमन.

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Sanjeev Moga
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