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नेकीराम भादू पशु चिकित्सा एवं विकास सहायक राजकीय पशु चिकित्सालय, चुली कलां, जि. फतेहाबाद
बिश्नोई रत्न चौधरी भजनलाल जी केवल एक महान राजनेता ही नहीं थे बल्कि वे दैवीय गुणों और दैवीय शक्ति से सम्पन्न महापुरुष थे, जो अपने लोक कल्याणकारी कार्यों व करिश्मों से देवदूत से जान पड़ते थे। उन्होंने जब राजनीति में प्रवेश किया तब राजनीति का स्वरूप कुछ और ही था। अस्थिर सरकारों के कारण लोगों का लोकतंत्र से विश्वास उठने लगा था। मगर उन विकट परिस्थितियों में भी पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में चौधरी साहब ने 7 वर्ष की लम्बी पारी खेली। 1982 में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद विश्वास मत हासिल करने का वह नाजुक समय आया जिस समय विपक्ष में प्रमुख रूप से चौधरी देवीलाल, डा. मंगलसेन थे। प्रोफेसर सम्पत सिंह पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। सत्ता पक्ष में खुद चौधरी भजनलाल, कर्नल रामसिंह व चौधरी सुरेन्द्र सिंह, शमशेर सिंह सुरजेवाला प्रमुख थे। प्रदेश अध्यक्ष चौधरी सुलतान सिंह थे जो दर्शक दीर्घा में अकेले बैठे थे। हालात नाजुक होने के कारण किसी को विधानसभा देखने की अनुमति नहीं दी गई थी। इन पंक्तियों के लेखक की विधानसभा के द्वार पर ड्यूटी थी, जहां से अंदर का सारा दृश्य स्पष्ट दिखाई दे रहा था। विश्वास मत का वह रोचक दृश्य उन नाजुक परिस्थितियों में भी मैंने उस शेर को दहाड़ते हुए देखा था। उस केबिनेट में चौधरी साहब ने चौधरी सुरेन्द्र सिंह को कृषि मंत्री के रूप में शपथ दिलाकर चौधरी बंसीलाल का अहसान उतारा था।
चौधरी साहब की पहचान नम्र स्वभाव के राजनेता के रूप में की जाती रही है, मगर वक्त पड़ने पर वे सख्त प्रशासक भी थे। बात उस वक्त की है जब 1982 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने एशियाड-82 भारत में करवाने के लिए सभी प्रदेशों के सामने प्रस्ताव रखा और उन्होंने हामी भर दी। उस वक्त पंजाब सूबे के हालात आतंकवाद के चलते बड़े नाजुक थे। आतंकवादियों ने श्रीमती गांधी को धमकी दी थी कि दिल्ली में एशियाड-82 किसी भी कीमत पर नहीं होने देंगे। हरियाणा के रास्ते से ही पंजाब का प्रवेश दिल्ली में होता है। व्यथित श्रीमती गांधी ने चौधरी साहब को बुलाकर इस समस्या का समाधान पूछा। चौधरी भजनलाल जी ने श्रीमती गांधी को भरोसा दिलाया कि मैडम आप चिंता न कीजिए। आतंकवादियों का दिल्ली में घुसना तो बहुत दूर की बात है, ऐसी व्यवस्था कर दूंगा कि आपकी आज्ञा के बिना कोई परिंदा भी पंख नहीं मारेगा और चौधरी साहब ने ऐसा ही कर दिखाया। सफल एशियाड-82 के आयोजन से श्रीमती गांधी गद्गद् हुई और उनके दिलो दिमाग में चौधरी भजनलाल के लिए एक विशेष जगह बन गई। इसके बाद चौधरी साहब ने पंजाब में आतंकवाद खत्म करने के लिए महापंजाब बनाने का फार्मूला पेश किया और सुझाव दिया कि उस महापंजाब की कमान अगर श्रीमती गांधी उन्हें सौंपती हैं तो 90 दिन में आतंकवाद का साया उठा दूंगा। श्रीमती गांधी ने तमिलनाडूकी एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि चौधरी भजनलाल के महापंजाब के प्रस्ताव पर गौर किया जाएगा, परन्तु इसी बीच श्रीमती गांधी आतंकवादियों के हाथों शहीद हो गई।
पंजाब में आतंकवाद के चलते देश में अस्थिरता का माहौल था। आतंकवादी चंडीगढ़ पंजाब को सौंपने का दबाव बना रहे थे। उस वक्त हरियाणा की कमान चौधरी भजनलाल के हाथों में थी। बात 1986 की है जब प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी और तत्कालीन अकाली दल अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लौंगोवाल के बीच एक सहमति बनी कि चंडीगढ़ पंजाब को सौंपा जाए। चौधरी भजनलाल ने चंडीगढ़ के बदले हरियाणा से लगते 102 गांव जो बहुत उपजाऊ क्षेत्र हैं की मांग की, जो पंजाब को मंजूर नहीं थी। इस समझौते को राजीव-लौंगोवाल समझौते का नाम दिया गया।
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