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1960 में हरियाणा में ग्राम पंचायतों के आम चुनाव हुए। अब तक भजनलाल अपनी मिलनसारिता के कारण चर्चित व लोकप्रिय हो चुके थे। 30 वर्षीय भजनलाल यह भी जान चुके थे कि आम आदमी का कल्याण केवल व्यापार के माध्यम से नहीं हो सकता, इसके लिए सर्वोपयुक्त माध्यम राजनीति ही है। इसी चुनाव को उचित अवसर समझकर लोकप्रिय भजनलाल ने ग्राम पंच का चुनाव लड़ा तथा विजयी होकर राजनीति में पदार्पण किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। जिला परिषद् के सदस्य व चेयरमैन बने। नौ बार विधायक, तीन बार हरियाणा सरकार में मंत्री, तीन बार हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री,दो बार केन्द्रीय मंत्री, तीन बार लोकसभा सांसद व एक बार राज्यसभा सांसद बने। 50 वर्षों के राजनीतिक जीवन में उन्होंने भारतीय राजनीति व लोकतंत्र को जो नया आयाम व क्षितिज दिया वह किसी से छिपा नहीं है। 80 वर्ष, 7 महीने और 27 दिन तक जनसेवा करने के पश्चात 3 जून, 2011 को भी चौधरी भजनलाल प्रात: उठते ही जनसेवा में तल्लीन हो गये। प्रात: 8 बजे ही अपने हिसार स्थित आवास पर बरामदे में बैठ लोगों के कष्ट निवारण में लग गए। 12.30 बजे तक जनकल्याण की इबारत लिखते रहे। 12.30 बजे दोपहर के विश्राम हेतु उठकर अंदर जाने लगे तो अचानक उनकी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा और यह अंधेरा फैलता-फैलता पूरी सृष्टि में फैल गया। भरी दोपहर में ही सूर्य अस्त हो गया। थोड़े संभले भी परन्तु मस्तिष्क के आघात ने मूछित कर दिया। स्थानीय हस्पताल ले जाया गया, वहीं हृदयाघात ने आशाओं की बची खुची किरणों को भी कुंद कर दिया। 3 जून,2011 को सायं 5 बजे लोकनायक चौधरी भजनलाल सात द्वीपों और नव खण्डों में अपना यश फैलाकर बैकुण्ठवासी हो गये।
अपने चहेतों में चौधरी साहब की संज्ञा से लोकप्रिय रहे चौधरी भजनलाल जी मानवीय संवेदना और रागात्मक भावानुभूति रखने वाले राजनेता थे। जिस निर्धन, निर्बल, निस्सहाय, निरीह, निरालंब व निराश्रितों का इस जग में कोई नहीं था उनके चौधरी भजनलाल जी थे। राग-द्वेष, घृणा-क्रोध जैसे मानवीय विकारों से उपर उठे चौधरी साहब दीन-दलित, किसान कमेरे व शोषितों के मसीहा थे। प्राय: प्रसन्नचित व मृदुल रहने वाले चौधरी भजनलाल जी की जनहित के मुद्दों पर मुखरता देखते ही बनती थी। वे थोथे आदर्शवाद से दूर व धरातल से जुड़े राजनीतिज्ञ थे।
चौधरी भजनलाल जी का निजी जीवन, विचारधारा, राजनीतिक चिंतन व धार्मिक दृढ़ता हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। वे सहज, सुलझे और संजीदा व्यक्ति थे। वे इतने मिलनसार थे कि वरिष्ठ कनिष्ठ या आयुगत श्रेणियां उन्हें जकड़ नहीं पाती थी। उनका जीवन संघर्षों व साहस की गाथा है जिसमें जमीनी सच्चाइयों की उष्मा है। भट्ठी में तपकर सोना जिस तरह चटख रंग लेकर आंखों को चुधिया देता है, उसी प्रकार जीवन के ताप-संतापों व संघर्षों में तपाचौधरी भजनलाल का व्यक्तित्व था, जिसकी अंतप्रतिभा जगमगाती रहती थी।
करोड़ों लोगों की आकांक्षाओं, आशाओं के प्रतिनिधि रहे चौधरी भजनलाल जी उन्हीं लोगों की आवाज बुलंद करते थे, जिनकी जुबान को विषम परिस्थितियों ने काठ की कर दी थी। उनका व्यक्तित्व जमीन से पैदा होकर अपनी छाया का आनन्द बड़े विशाल भू-भाग तक देने वाले वट वृक्ष के समान था। वे कर्मठ कर्मयोगी, कट्टर न्यायपालक, उत्कृष्ट समाजसेवी, श्रद्धावान धर्मप्रमी, दृढ़निश्चयी और आत्मविश्वास से भरपूर युगांतरकारी महापुरुष थे। उन्होंने शिथिल समाज को एक गति प्रदान की थी,परम्पराओं का पुनः सृजन किया था तथा मानव मूल्यों को नई परिभाषा दी थी। वे कुशल प्रशासक, निपुण राजनीतिज्ञ और सफल प्रबंधक थे। इतने सारे गुणों का एक व्यक्ति में होना अचरज नहीं तो और क्या था? चौधरी भजनलालजी के भीतर प्यार का ऐसा पारावार था कि वे उसे बांटते चलते थे। यही कारण है कि आज उनके शिष्यों, समर्थकों, साथियों, मित्रों, प्रशंसकों, अनुयायियों व अनुरागियों की एक बहुत बड़ी जमात है। यह प्यार का पारावार ही उनकी लोकप्रियता का राज था।
आने वाली पीढ़ियां जब यह जानेंगी कि एक व्यक्ति इस सीमा तक अदम्य साहस के साथ अनवरत संघर्ष कर तथा विषम परिस्थितियों में भी अविचल रहकर सफलता के उच्च शिखरों पर पहुंचा था, तो आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहेगी। जो भी चुम्बकीय व्यक्तित्व वाले चौधरी भजनलाल जी से मिला, उनकी झलक पाई वह आगे चलकर फ़ख़ महसूस करेगा कि मैंने चौधरी भजनलाल को देखा था।
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