मंगलवार (मंगल) : व्रत विधि, कथा एवं आरती

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मंगल देवता की चार भुजाएँ हैं। इनके शरीर के रोयें लाल हैं। इनके हाथों में क्रम से अभयमुद्रा, त्रिशूल, गदा और वरमुद्रा है। इन्होंने लाल मालाएँ और लाल वस्त्र धारण कर रखे हैं। इनके सिरपर स्वर्ण मुकुट है तथा ये मेष (भेड़ा) के वाहन पर सवार हैं।

वाराह कल्प की बात है। जब हिरण्यकशिपुका बड़ा भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा ले गया था और पृथ्वी के उद्धार के लिये भगवान् ने वाराहावतार लिया तथा हिरण्याक्ष को मारकर पृथ्वी देवी का उद्वार किया, उस समय भगवान् को देखकर पृथ्वी देवी अत्यन्त प्रसन्न हुई और उनके मन में भगवान् को पति रूप में वरण करने की इच्छा हुई। वाराहावतार के समय भगवान् का तेज करोड़ों सूर्यो की तरह असह्य था। पृथ्वी की अधिष्ठ्ात्री देवी की कामना पूर्ण करने के लिये भगवान् अपने मनोरम रूप में आ गये और पृथ्वी देवी के साथ दिव्य एक वर्ष तक एकान्त में रहे। उस समय पृथ्वी देवी और भगवान् के संयोग से मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई । इस प्रकार विभिन्न कल्पों में मंगल ग्रह की उत्पत्ति की विभिन्न कथाएँ हैं। पूजा के प्रयोग में इन्हें भारद्वाज गोत्र कहकर सम्बोधित किया जाता है। यह कथा गणेशपुराण में आयी है।

मंगल ग्रह की पूजा की पुराणों में बड़ी महिमा बतायी गयी है। वो प्रसन्न होकर मनुष्य की हर प्रकार की इच्छा पूर्ण करते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार मंगल व्रत में ताम्र पत्र पर भौम यन्त्र लिखकर तथा मंगल की सुवर्णमयी प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर पूजा करने का विधान है। मंगल देवता के नामों का पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। यह अशुभ ग्रह माने जाते हैं। यदि ये वक्र गति से न चलें तो एक-एक राशि को तीन-तीन पक्ष में भोगते हुए बारह राशियों को डेढ़ वर्ष में पार करते हैं।

मंगलवार व्रत विधि

  • यह व्रत मंगलवार को रखा जाता है ।
  • वयह हनुमान जी का व्रत है ।
  • इस दिन शाम के समय, हनुमान जी का पूजन करने के बाद एक बार भोजन करना होता है ।
  • वपूजन में लाल फूल और मिष्ठान चढ़ाये जाते हैं ।
  • भोजन में मीठी चीजें खाई जाती हैं ।
  • मंगलवार का व्रत सभी प्रकार के सुखों को देने वाला है ।
  • इसे करने से भक्त के रक्त विकार दूर होते हैं ।
  • उसको राज -सम्मान तथा पुत्र की प्राप्ति होती है ।

मंगलवार व्रत कथा

मंगलवार के व्रत की कथा प्राचीन काल की बात है । एक नगर में ब्राह्मण युगल रहता था । उसके पास सब कुछ था, मगर सन्तान न थी । इससे वे बड़े दुःखी रहते थे । काफी सोच विचार के बाद ब्राह्मण हनुमान जी का पुजन करने के लिए जंगल में चला गया । घर पर रह कर ब्राह्मणी मंगलवार का व्रत रखने लगी । एक बार कुछ ऐसा संयोग हुआ कि मंगलवार को एक और व्रत पड़ गया, फलतः ब्राह्मणी उस मंगलवार को महावीर हनुमान का भोग न लगा सकी । इसका उसको बड़ा खेद था । अन्त में उसने निश्चय किया कि अगले मंगलवार को ही मैं हनुमान जी केा भोग लगाकर भोजन करूँगी । वह सात दिन तक भूखी प्यासी रही । दूसरे मंगलवार को उसको मूर्छा आ गई । उसी मूर्छा में हनुमान जी ने उसे दर्शन देकर कहा, ‘‘ मैं तेरी भक्ति भावना से प्रसन्न हूँ । तुमको मैं मंगल रूपी बालक दिये जाता हूंँ, तू इसे अपना पुत्र जान, यह तेरे सारे कष्ट दूर करेगा ।’’ ऐसा कहकर हनुमान जी अन्र्तध्यान हो गए । सुन्दर बालक को पाकर ब्राह्मणी अत्यन्त प्रसन्न हुई । कुछ दिनों के बाद ब्राह्मण देवता जंगल से लौट आया घर में मंगल नामक बालक को खेलता देकर उसने ब्राह्मणी से उसका परिचय पूछा । ब्राह्मणी ने बताया कि हनुमान जी का प्रसाद है । तो ब्राह्मण को इसका यकीन नहीं आया । उसने समझा कि ब्राह्मणी अपना पाप छुपाने के लिए यह मन घड़त कथा सुना रही है । वह उसी दिन से पत्नी के चाल चलन पर शक करने के कारण बड़ा दुःखी रहने लगा ।

एक दिन ब्राह्मण जल भरने के कुंए पर जा रहा था ब्राहमणी ने उससे कहा कि साथ में मंगल को भी लेते जाओ । ब्राहमण उसे साथ ले गया और मौका देखकर उसे कुएं में ड़ाल दिया । मंगल को कुएं मे डालकर, जल लेकर जब वह घर लौटा तो ब्राह्मणी ने मंगल के विषय में पूछा । इससे पहलेे कि ब्राह्मण कोई उत्तर दे मंगल मुस्कुराते हुए घर में प्रवेश किया । इस प्रकार मंगल को सही सलामत अपने ही पीछे आता देखकर ब्राह्मण को अपनी पत्नी की बात में कुछ सच्चाई दिखाई देने लगी । उसी रात ब्राहमण को हनुमान जी ने दर्शन दिए और कहा – ‘‘तुम ब्राह्मणी पर व्यर्थ सन्देह करते हो । वह सती साध्वी महिला है । मंगल मेरा वरदान है । उसे अपना पुत्र जानो ।’’ इस सच्चाई को जानकर ब्राहमण को बड़ी खुशी हुई । वह तभी से मंगलवार को हनुमान जी का व्रत रखने और कथा सुनने लगा। धीरे-धीरे उसके सभी दुःख और अभाव समाप्त हो गये ।

मंगलवार के व्रत की दूसरी कथा

प्राचीन काल की घटना है। एक नगर में एक बुढ़िया रहती थी । उसके मंगलियां नाम का एक पुत्र था, वृद्धा को हनुमान जी पर बड़ी आस्था और श्रद्धा थी। वह हरेक मंगलवार को हनुमान जी का व्रत रख कर यथाविधि उनका भोग लगाती थी । इसके अलावा मंगलवार को न तो वह लीपती थी और न ही मिट्टी खोदती थी ।

इसी प्रकार से व्रत रखते हुए जब उसे काफी दिन बीत गये तो हनुमान जी ने सोचा कि चलों आज इस बुढ़िया की श्रद्धा की परीक्षा हो जाये । वे साधु का वेष बनाकर उसके द्वार पर जा पहुँचे और पुकारा- है कोई हनुमान भक्त जो हमारी इच्छा को पूरी करे ? बुढ़िया ने यह पुकार सुनी तो बाहर आई और पूछा कि महाराज क्या आज्ञा है ? साधु के वेष में हनुमान जी बोले कि मैं भूखा हूं । भोजन बनाऊँगा । तू थोड़ी सी जमीन लीप दे । बुढ़िया ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि महाराज लीपने और मिट्टी खोदने के अलावा जो काम आप कहें वह मैं करने को तैयार हूँ। साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला । मैं उसे औंधा लिटाकर, उसकी पीठ पर भोजन बनाऊँगा । बुढ़िया ने सुना तो उसके पैरांे तले से धरती खिसक गई । मगर वह वचन हार चुकी थी । उसने मंगलिया को पुकार कर साधु महाराज के हवाले कर दिया । मगर साधु ऐसे ही मानने वाले न थे । उन्होंने बुढ़िया के हाथों से ही मंगलिया को औधा लिटाकर, उसकी पीठ पर आग जलवायी । आग जलाकर, दुखी मन से बुढ़िया अपने घर के अन्दर जा घुसी । साधु जब भोजन बना चुका तो उसने वृद्धा को बुलाकर कहा कि वह मंगलिया को पुकारे ताकि वह आकर भोग लगा ले। वृद्धा आंखों में आँसू भरकर कहने लगी कि अब आप उसका नाम लेकर मेरे हृदय को और मत दुखाओ । लेकिन साधु महाराज न माने तो वृद्धा को भोजन के लिए मंगलिया को पुकारना पड़ा पुकारने की देर थी कि मंगलिया बाहर से हंसता हुआ घर में दौड़ा आया । मंगलिया को जीता जागता देखकर वृद्धा को सुखद आश्चर्य हुआ । वह साधु महाराज के चरणों में गिर पड़ी । हनुमान जी ने उसे अपने असली रूप में दर्शन दिये । हनुमान जी उसे सभी प्रकार के सुखों का आर्शीवाद देकर अन्र्तध्यान हो गये।

अथ मंगलवार की आरती

आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।
जाके बल से गिरवर काँपे, रोग दोष जाके निकट न झाँके ।
अन्जनी पुत्र महा बलदाई, सन्तन के प्रभु सदा सहाई ।
दे बीड़ा रधुनाथ पठाये, लंका जारी सिया सुधि लाये ।
लंका अस कोट समुद्र अस खाई, जात पवनसुत वार न लाई ।
लंका जारि असुर सब मारे, राजा राम के काज संवारे ।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े धरनि में,अनि संजीवन प्राण उबारे ।
पैठि पाताल तोर चमत्कार, अहिरावण के भुजा उखारे ।
बायीं भुजा सब असुर संहारे, दाहिनी भुजा सब सन्त उबारे ।
सूर नर मुनि आरती उतारें, जय जय जय हनुमान उचारें।
कंचन थार कपूर की बाती, आरती करत अंजनी माई।
जो हनुमान की आरती गावै, बसि बैकुण्ठ बहुरि नहि आवै ।
लंक विघ्वंस कियो रघुराई, तुलसीदास स्वामी आरती गाई।

श्री हनुमान चालीसा

‘दोहा’’ श्री गुरू चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।
बरनउं रघुबर बिमल जश, जो दायकु फल चारि ।।
बुद्विहीन तनु जानिके, सुमीरों पवन कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस विकार ।।
”चैपाई“ जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ।।
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनी-पुत्र पवन सुत नामा ।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ।।
कंचन वरन विराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा ।।
हाथ ब्रज औ ध्वजा बिराजे । काँधे मूंज जनेऊ साजै ।।
शंकर सुवन केसरी नंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ।।
बिधावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ।।
प्रभुु चऱित्र सुनिबे को रसिया। राम लषन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ।।
भीम रूप धरि असुर संहारे । रामचद्र के काज संवारे।।
लाय संजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरत सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो यश गावें । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावें ।।
सनकादिक ब्रह्राादि मुनीशा । नारद शारद सहित अहीसा।।
यम कुबेर दिगपाल जहँा ते । कवि कोविद कहि सके कहाँ ते ।।
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना ।।
जुग सहस्त्र योजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही । जलधि लांघ गये अचरज नाहीं ।।
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हारे तेते ।।
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ।।
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हांक ते कांपै ।।
भूत पिशाच निकट नहीं आवे । महावीर जब नाम सुनावें।।
नाशे रोग हरे सब पीरा। जपत निंरतर हनुमत बीरा ।।
संकट ते हनुमान छुड़ावे । मन क्रम वचन ध्यान जो लावैं ।।
सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ।।
और मनोरथ जो कोइ लावे। सोई अमित जीवन फल पावै ।।
चारों जुग प्रताप तुम्हारा । है प्रसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निंकदन राम दुलारे ।।
अष्टसिद्धि नव निधि के दाता । अस वर दीन्ह राम जानकी माता ।।
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रधुपति के दासा ।।
तुम्हरे भजन राम को पावें। जन्म जन्म के दुख बिसरावै।।
अंतकाल रधुवर पुर जाई। जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।
और देवता चित्त न धरई । हनुतम सेइ सर्व सुख करई ।।
संकट कटे मिटे सब पीरा । जो सुमरै हनुमत बलवीरा ।।
जय जय जय हनुमान गोसाई । कृपा करहु गुरूदेव की नाई ।।
यह शत बार पाठ कर कोई । छूटहिं बंध महासुख होई।।
जो यह पढ़े हनुमान चलीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।
।। दोहा ।। पवनतनय संकट हरण। मंगल मूरति रूप।। राम लखन सीता सहित। हृदय बसहु सुर भूप।। ।। इति।।

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Sanjeev Moga
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