

श्री गुरु जम्भेश्वरजी ने मूर्ति पूजा के स्थान पर नित्य हवन करने का उपदेश दिया है।सनातन धर्म के मूल वेद है और उनमें यज्ञ का ही विधान निर्धारित किया गया है।
सभी के हित के लिए सचेत होकर प्रेम से हवन करो।उसका फल मुक्ति पद की प्राप्ति का होगा।केवल हवन करना ही पर्याप्त नही है हवन के साथ साथ हित, चित और प्रीत की भावना भी जुड़ी हुई होनी चाहिए।ऐसी पवित्र भावना द्वारा किया हुआ कर्तव्य कर्म कभी भी बंधन में डालने वाला नही होता।प्राचीन काल से ही यज्ञ करने का एकाधिकार ब्राह्मण जाति विशेष के पास ही था।वे लोग जैसा चाहते थे वैसा मनमानी दक्षिणा लेकर यज्ञ करते थे।
श्री गुरु जम्भेश्वर जी ने सर्वप्रथम एकाधिकार समाप्त करके सभी को पूर्ण अधिकार दे दिया।वह चाहे किसी भी जाति का पुरुष हो या स्त्री हो यज्ञ कर सकते हैं।पवित्रता शुद्धता आचार विचारवान मानव तो सभी एक ही जाती के है,वे तो सभी यज्ञ करने के अधिकारी हो सकते हैं।इसलिए बिश्नोई पंथ में प्रत्येक घर मे हवन होता है।
सबदवाणी में सबद नम्बर 7 व 13 में भी हवन करने का संदेश दिया गया है।
“जा दिन तेरे होम न जप न तप न किरिया”
“जान कै भागी कपिला गाई”-7
-जिस दिन आपकी दिनचर्या ईश्वर के समर्पित नही रही,आपने होम,जप व तपस्या नही की उस दिन आपकी सारी दिनचर्या व्यर्थ ही चली गई अर्थात आपकी कपिला गाय जैसी सर्वश्रेष्ठ बुद्धि भृष्ट हो गई या निकल गई है।
“कांय रै मूर्खा तै जन्म गुमायो”
“भुय भारी ले भारू”
“जा दिन तेरे होम न जाप न तप न किरिया”
“गुरु न चिन्हों पंथ न पायो”
“अहल गई जमवारु”- 13
–हे मूर्ख !! तुमने अपना जन्म व्यर्थ क्यो गंवा दिया ?
अपने भार से तुमने धरती को ही भार मारा अर्थात पृथ्वी पर बोझ स्वरूप ही रहा है।
जिस दिन तुमने होम,जप,तप व किरिया नही किया,वह दिन मानो तुम्हारा व्यर्थ ही गया है।तुमने गुरु(परमात्मा) को पहचाना नही,धर्म मार्ग पर चला नही इसलिए तेरा सारा जीवन बेकार ही गया है।
हर मानव को तन व मन की शुद्धि करके हवन व परमात्मा का सुमरिन करना चाहिए।
समस्त त्रुटियों के लिए क्षमा याचना👏👏