क्षमा दया हिरदै धरो,गुरु बतायो जाण

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क्षमा करने का वास्तविक अर्थ यह है कि हम किसी को बदले की भावना से दुःखी न करें।
श्री गुरुजाम्भो जी एक सबद में कहते हैं –
“जै कोई आवै हो हो करता आप ज होइये पाणी”
–अर्थात अगर कोई क्रोधवश आग-बबूला होकर आता है तो आप क्षमाशील हो जाओ।
अगर आपकी किसी के साथ अनबन हो गई है या हो जाये तो सामने वाले के पास जाकर उससे क्षमा याचना करते हुए सुलह कर लेनी चाहिए, यही मानवता है।
विपत्ति काल मे धैर्य धारण करना।
वैभव काल मे क्षमा करना।
श्री गुरुजाम्भो जी कहते है कि–
“वासन्दर क्यू एक भणिजै”
“जिहि के पवण पिराणो”
“आला सुका मेल्हे नाही”
“जिह दिश करै मुहाणो”
“पापे गुन्हे विहे नाही”
“रिस करै रिसाणो”
“बहुली दौरे लावण हारु”
“भावै जाण म्हे जाणो”

–क्रोध और अग्नि एक समान है,हवा अग्नि का प्राण है क्योकि हवा के बिना अग्नि प्रज्वलित नही होती।जिस प्रकार अग्नि के सम्पर्क में आकर हरि-गीली एव सुखी वस्तुएं (नष्ठ)जल कर राख हो जाती है उसी प्रकार क्रोधी व्यक्ति दुसरो को हानि पहुचाने के साथ -साथ स्वयं का भी नुकसान कर लेता है।क्योंकि वह क्रोध में लाभ-हानि,न्याय-अन्याय,धर्म-अधर्म में भेद नही कर पाता है।
क्रोधी व्यक्ति क्रोध के कारण अपने पापों एव गुनाहों से डरता नही है क्रोध व्यक्ति को नरकगामी बना देता है चाहे आप इस बात को मानो या ना मानो।।
मनुष्य का आभूषण रूप है।
रूप का आभूषण गुण है।
गुण का आभूषण ज्ञान है।
ज्ञान का आभूषण क्षमा है।क्षमा बराबर तप नही, संतोष बराबर सुख नही ,तृष्णा से बढ़कर रोग नही और जीव दया से बढ़कर धर्म नही है।
श्री गुरुजाम्भो जी सबद 103 में कहते हैं-
“देख्या अदेख्या सुण्या असुण्या क्षिमा रूप तप कीजै”
–मनुष्य को कई बार किसी अप्रिय दृश्य एवं अप्रिय बातो से सामना करना पड़ता है।ऐसे समय मे व्यक्ति को अपने क्रोध पर नियंत्रण रखते हुए हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए तथा ऐसी बातों को अपने स्मृति पटल से हटा देना चाहिए।कोई व्यक्ति क्रोध में कड़वे वचन बोल देता है तो उसे क्षमा कर देना चाहिए।
समस्त त्रुटियों के लिए क्षमा याचना👏👏

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Sanjeev Moga
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