नींदा न करना

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अपने अवगुणों को छिपाकर दूसरो के अवगुणों को प्रगट करने को सामान्य रूप से नींदा कहा जाता हैं।ऐसे लोगो का यह कर्तव्य कर्म ही हो जाता है कि वह दूसरों के गुणों को छिपाकर केवल उनके अवगुणों को ही चिंतन मनन करता है।इससे उनके दुर्गुण मिट तो नही जाते किंतु व्यक्ति जैसा चिंतन करता है वह स्वभाव में उसके आ जाता है,वैसा ही उसका जीवन बन जाता है।
“परनींदा पापा सिरै भूल उठावै भार”
-दुसरो की निदा करना शिरोमणि पाप है।मूर्ख लोग इस पाप के बोझ को उठाकर वैसे ही भार मरते हैं।
दूसरों की नींदा करने से अनेक प्रकार की कलह लड़ाई झगड़े इसी के बदौलत देखे गए हैं।यदि जीवन मे सदा सुख शांति बनाए रखना चाहते हो तो परायी निंदा कभी न करें।यदि कुछ करने की हिम्मत हो तो अपने ही अवगुणों को प्रकट करके उनसे छूटने के उपाय करना चाहिए।यही निंदा करने का फल है।
सम्पूर्ण संसार ही गुण-दोष मय है।पराई निंदा करने से निंदक में निंदनीय व्यक्ति के अवगुण सूक्ष्म रूप में प्रविष्ट हो जाते हैं।
विधाता ने चर-अचर संसार को गुण दोष मय रचा है।उसमें से संत,हंस की तरह दोष रूपी जल को छोड़कर गुण रूपी दूध को ही ग्रहण करते हैं।ऐसे संत ही नीर-क्षीर विवेकी कहे जाते हैं।
श्री गुरुजाम्भो जी गुरुवाणी में कहते हैं –
“रतन काया सोभति लाभै”
“पार गिराये जीव तिरै”
“पार गिराये सनेही करणी”
“जपो विसन न दोय दिल करणी”
“जपो विसन न निंदा करणी”
“मांडो कांध विसन कै सरणी”

— रतन काया रूपी शरीर मिलने से भव सागर से पार होना सम्भव है।जीव का संसार सागर से तैरना मानव शरीर का स्वभाविक लाभ है।भव सागर से पार जाने के लिए प्रत्येक जीव से प्रेम,विसन जप,दुविधा वृति व निंदा वृति का त्याग जरूरी है।परमात्मा की शरण मे जाने के लिए ये व्यवहारिक बाते जैसे जीव प्रेम,परमात्मा सुमरिन,गुरु की बाणी पर चलना।
समस्त त्रुटियों के लिए क्षमायाचना👏👏

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Sanjeev Moga
Sanjeev Moga
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