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सत्य बोलना ही सभी धर्मों का मूल है, सत्य पर ही सम्पूर्ण पृथ्वी टिकी हुई है।सत्य से ही सम्पूर्ण संसार का व्यवहार चलता है।जिन लोगो ने सत्य धर्म का पालन किया है, उनकी ही महिमा आधपर्यन्त गायी जाती है वे ही सम्मानीय महापुरुष है।
” सत्यमेव जयते “सदा सत्य से ही विजय होती है।धर्म का आचरण सत्य बोलने से ही है।सत्य से बढ़कर कोई धर्म नही है और झूठ से बढ़कर कोई पाप नही है।सत्य से बढ़कर कोई ज्ञान नही है।अतः हमेशा सत्य बोले और झूठ बोलना छोड़ दे।वाद-विवाद भी छोड़ दे,वास्तव में वाद-विवाद झूठा ही होता है तथा अज्ञान और अंहकार से भरा हुआ रहता है।जो अज्ञानी तथा अशुद्ध अंतःकरण वाला होता है वह व्यक्ति अपनी आत्मा का अनुभव कदापि नही कर सकता है।
श्रीगुरु जम्भेश्वरजी कहते है-
“खेत मुक्त ले पंच करोड़ी सो परहलादा”
“गुरु की वाचा बहियो”
“ताका शिखर अपारू ताको तो बैकुण्ठे वासो”।।
— सर्वप्रथम प्रह्लाद ने स्वयं ईश्वर की शक्ति और वचन पर विश्वास किया और पांच करोड़ो जीवो को मुक्ति दिलायी, उनके अपार गुणों के कारण उन्हें बैकुण्ठ वास मिला।
“काजी कथो कुराणो न चिन्हों फरमाणो”
“काफर थूल भयाणो”
“जइया गुरु न चिन्हों तइया सिच्या न मूलु”
“कोई कोई बोलत थूलू”
–काजी कुरान की कथा करता है, परन्तु कुरान के उपदेश नही मानता है वह काफीर है।झूठ बोलता है, डरपोक है।उसने परमतत्व को पहचाना ही नही है केवल झूठा ही प्रचार कर रहा है।
“जा जा गुरु न चिन्हों”
“तइया सिंच्या न मूलू”
“कोई कोई बोलत थूलु”
–जिसने उस परमात्मा रूपी गुरु को पहचाना ही नही ,उस मूल तत्व की आराधना की ही नही वह केवल झूठा प्रचार ही कर रहा है।
“सुवचन बोल सदा सुहलाली”
–हमेशा सत्य वचन ही बोलने चाहिए।
“छदे मंदे बालक बुद्धे कूड़े कपटे रिद्ध न सीधे”
–झूठे एव कपटी लोगों द्वारा स्वार्थवश कही जाने वाली मन लुभावनी बातो,चमत्कार, रिद्धि एवं ऋद्धि से बालक बुद्धि यानी भोले -भाले लोगो को ठगना अनुचित है।
“सुर मा लेणा झींणा सबदु”
“म्हे भूल न भाख्या थुलू”
–श्री गुरुजाम्भो जी कहते हैं कि हे प्राणी ! तुम मेरे सबदो को समझ कर उन्हें आत्मसात करो ताकि तुम्हे गुढ़ रहस्य एव (जिया न जुक्ति मुआ न मुक्ति) मार्ग का ज्ञान हो सके मैंने भूलकर भी कोई झूठी बात नही कही है।
“मोरे सहजै सुंदर लोतर वाणी ऐसो भयो मन ज्ञानी”
“तईया सासू तईया मासू रक्तू रुहियूं खीरु नीरू ज्यूँ कर देखू ज्ञान अदेसू”
–मेरी सहज एव सुंदर वाणी के ज्ञान के कारण मेरा मन ऐसा ज्ञानी हो गया है कि मैं स्त्री-पुरूष में कोई भेद नही करता हूं।सभी प्राणियों में एक जैसा स्वास,एक जैसा मास व खून एव आत्मा है।जिस प्रकार दूध व पानी मिलकर एक से हो जाते हैं, उसी प्रकार परमात्मा प्रत्येक जीव में एक समान है अतः ज्ञान से ही सारे भरमो का निवारण होता है।
“हम ही रावल हम ही जोगी हम राजा के रायो”
“जो ज्यूँ आवै सो त्यू थरपा साचा सू सत भायो”
–हम ही रावल है, हम ही योगी है और हम राजाओ के राजा है जो व्यक्ति जिस भाव से हमारे पास आता है, उसको हम तदनुभाव से ही स्वीकार करते हैं पर जो सच्चे है उनको हम सत्य भाव से स्थापित करते हैं।मेरे पास जो आता है मै उसको परमसत्ता का बोध करवाता हूं और उसके मन की सभी भ्रांतियों को मिटाकर सही राह दिखाता हूं।
“साच सही म्हे कूड़ न कहिबा”
“नेड़ा था पण दूर न रहिबा”
“सदा संतोषी सत उपकरणा”
“म्हे तजिया मान अभिमानू”
–मैं सत्य व सही बातें कहता हूँ,मिथ्या भाषण नही करता हूं।परमतत्व रूप में मैं प्रत्येक प्राणी में हूं, दूर नही हूँ।प्रत्येक जीव में परमतत्व का वास है,वह किसी से दूर नही है।मैं सदा संतोस रखता है, सत्य को धारण करता हूँ,मैंने मान,अपमान और अंहकार को त्याग दिया है।
“कुण जाणे म्हे सती कुसती”
“आप ही सुमर आप ही दाता”
“आप कुसती आप ही सती”
-मैं सत्यवादी हूं या झूठा हू यह कोई नही जानता है।मैं कंजूस भी तथा दाता भी हूं।मैं सत्यवादी तथा असत्यवादी मै ही हूं।
“कूड़ तणो जै करतब कियो”
“ना तै लाव न सायो”
“भूला प्राणी आल बखाणी”
–झूठ का सहारा लेकर तुम यदि कोई भी कार्य करोगे तो उससे तुम्हे कोई प्राप्ति नही होगी।
हे भूले हुये प्राणियों जो तुम व्यर्थ ही झूठ का सहारा ले रहे हो वह छोड़ दो उससे तुम्हे कुछ भी लाभ प्राप्त होने वाला नही है।
“कांय बोलो मुख ताजो”
“भरमी वादी अति अंहकारी पशुआ पड़े भिराती”
–मुंह से अंहकार भरी बातें क्यो करते हो।इस प्रकार भरम में वाद विवाद में पड़कर तुम अंहकारी हो गए हो व सांसारिक विषय भोगों में आप पशुओं की तरह लगे हुए हो।
“आचार विचार न जाणत स्वाद”
“कीरत के रंग राता मूर्खा”
“मंनहठ मरै तो पार गिराये कित उतरै”
-जो लोग भरम में पड़कर वाद-विवाद में ही उलझे हुए हैं वे लोग उत्तम आचार-विचार का फल नही जानते हैं।सांसारिक बड़ाई के लिए मनहठी एव मूर्ख लोग मरते रहते हैं।उनका उद्वार असंभव है।
समस्त त्रुटियों के लिए क्षमा याचना👏👏
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